नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को खुदरा निवेशकों को सरकारी बॉन्ड सीधे खरीदने और बेचने की अनुमति दे दी. इस कदम को केंद्रीय बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने संरचनात्मक सुधार करार दिया है.
दिप्रिंट आपको बता रहा है कि सामान्य खुदरा निवेशक के लिए इसका क्या मतलब है.
आरबीआई ने क्या अनुमति दी है?
आरबीआई ने खुदरा निवेशकों को सरकारी प्रतिभूति बाजार में ऑनलाइन एक्सेस की अनुमति दी है. ‘रिटेल डायरेक्ट’ कहे जाने वाले प्राइमरी और सेकेंडरी मार्केट दोनों तक सीधे आरबीआई के माध्यम से डायरेक्ट एक्सेस दी जाएगी.
आरबीआई ने ‘रिटेल डायरेक्ट’ की अनुमति क्यों दी है?
यह कदम सरकारी प्रतिभूतियों में खुदरा भागीदारी बढ़ाने और इन निवेशकों के लिए एक्सेस सुगम बनाने के आरबीआई के प्रयासों का हिस्सा है.
आरबीआई ने शुक्रवार को कहा कि प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति देने का सरकारी बैंक का निर्णय ‘निवेशक आधार को व्यापक बनाएगा और सरकारी प्रतिभूतियों के बाजार में ज्यादा एक्सेस के साथ खुदरा निवेशकों की भागीदारी बढ़ाएगा.’
केंद्रीय बैंक ने ये भी कहा कि इससे 2021-22 के लिए गवर्नमेंट बारोइंग प्रोग्राम को सुचारू ढंग से पूरा करने में मदद मिलेगी.
वर्ष 2020-21 और 2021-22 के लिए राजकोषीय घाटे के अनुमानों में तेजी से वृद्धि के साथ सरकार ने बजट में इन दोनों वर्षों के लिए क्रमशः 12.8 लाख करोड़ रुपये और 12 लाख करोड़ रुपये की उधारी का प्रावधान किया है.
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इससे खुदरा निवेशकों पर क्या फर्क पड़ता है?
अभी तक, खुदरा निवेशक व्यक्तिगत रूप से सरकारी प्रतिभूतियों के लिए बोली नहीं लगा सकते थे. हालांकि, आरबीआई ने उन्हें समायोजित करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे प्राथमिक नीलामी में गैर-प्रतिस्पर्धी बोली लगाना और स्टॉक एक्सचेंज को प्राथमिक खरीद की अनुमति देना.
इसका मतलब यह था कि स्टॉक एक्सचेंजों को खुदरा डिमांड को एक साथ एकत्र करके खरीद का ऑर्डर देने की अनुमति थी. लेकिन केंद्रीय बैंक ने अब इस एग्रीगेटर मॉडल से आगे बढ़ने का फैसला किया है.
खुदरा निवेशक अब सीधे निवेश कैसे करेंगे?
लोगों को निजी स्तर पर आरबीआई के इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म ई-कुबेर में एक गिल्ट अकाउंट खोलने की अनुमति होगी.
इसके बाद खुदरा निवेशक सरकारी प्रतिभूतियों में सेकेंडरी मार्केट ट्रेडिंग के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक एनॉनिमस ऑर्डर मैचिंग सिस्टम एनडीएस-ओएम का इस्तेमाल करके सीधी बोली लगा सकते हैं. सिस्टम आरबीआई के स्वामित्व में है. अभी, एनडीएस-ओएम सदस्यों में बैंक, प्राइमरी डीलर और बीमा कंपनियां शामिल हैं.
बैंक डिपॉजिट, फिक्स्ड इनकम म्यूचुअल फंड्स के लिए डायरेक्ट रिटेल का क्या मतलब है?
यह नया निवेश खुदरा निवेशकों के लिए मौजूदा बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट, फिक्स्ड इनकम म्यूचुअल फंड्स और सरकार की छोटी बचत योजनाओं जैसे पब्लिक प्रॉविडेंट फंड से इतर निवेश के लिए अधिक विकल्प मुहैया कराएगा.
दरअसल, सरकारी प्रतिभूतियों पर ब्याज दरें कुछ निश्चित अवधि के दौरान बैंक एफडी से अधिक हो सकती हैं. लेकिन आरबीआई का मानना है कि इस अतिरिक्त विकल्प से बैंक जमाओं में आमद में कमी नहीं आएगी.
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर दास ने कहा कि आने वाले वर्षों में बचत का टोटल वॉल्यूम बढ़ेगा और यह हिस्सा इतना बड़ा होगा कि बैंक जमा में कमी के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी.
उन्होंने कहा, ‘यह बैंकों और म्यूचुअल फंड के जरिये होने वाले जमा के प्रवाह को कम नहीं करेगा. आज भी, छोटी बचत दरें बैंक जमाओं की तुलना में अधिक दरों की पेशकश करती हैं फिर भी बैंक जमा में पर्याप्त धन प्रवाह होता है.’
क्या अन्य देश ऐसी प्रत्यक्ष खुदरा भागीदारी की अनुमति देते हैं?
दास के अनुसार, दुनिया के बहुत कम देश सरकारी प्रतिभूति बाजार में प्रत्यक्ष खुदरा भागीदारी की अनुमति देते हैं. इनमें अमेरिका और ब्राजील शामिल हैं. उन्होंने बताया कि एशिया में ऐसा करने वाला भारत पहला देश है.
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