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Sunday, 3 November, 2024
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वादा अधिक, कम खर्च: राज्य अपने बजट का उपयोग कैसे कर रहे, यह उनकी वित्तीय हालत के बारे में क्या कहता है

FY 23-24 के लिए हायर कैपिटल आउटले का बजट बनाया गया है, पिछले वित्त वर्ष के रुझानों से पता चलता है कि राज्यों ने कैपेक्स पर कम खर्च किया है.

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केंद्रीय बजट की घोषणा के हफ्तों बाद, 20 राज्यों ने चालू वित्त वर्ष के लिए अपना बजट पेश किया है. बजट विवरण हाल ही में समाप्त हुए वित्तीय वर्ष (2022-23) में राज्यों की वित्तीय स्थिति और वर्तमान वित्तीय वर्ष (2023-24) के लिए उनकी प्राथमिकताओं के बारे में अनुमान प्रदान करते हैं.

सभी आधारों पर, चालू वित्त वर्ष में खर्च की गति पिछले वित्तीय वर्ष के लगभग 25 प्रतिशत से घटकर लगभग 10 प्रतिशत रहने की उम्मीद है.

जबकि चालू वित्त वर्ष के लिए एक उच्च पूंजी परिव्यय का बजट बनाया गया है, पिछले वित्तीय वर्ष के रुझानों से पता चलता है कि राज्यों ने कैपेक्स पर कम खर्च किया है और पिछले वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए अपने कैपेक्स लक्ष्यों को प्राप्त करने की संभावना नहीं है. आर्थिक विकास के अनुमान जो घाटे के लक्ष्यों को तय करने और टैक्स कलेक्शन में वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण हैं, कुछ राज्यों के लिए अत्यधिक महत्वाकांक्षी प्रतीत होते हैं.

कैपेक्स पर अधिक का वादा और कम खर्च

बीस राज्यों ने 2022-23 के संशोधित अनुमानों (आरई) की तुलना में चालू वित्त वर्ष के लिए पूंजी परिव्यय (capital outlay) में 21 प्रतिशत की वृद्धि की है. हालांकि, पिछले वित्तीय वर्ष में, इन राज्यों ने पूंजीगत व्यय (capital expenditure) पर अपनी बजटीय प्रतिबद्धता में 3 प्रतिशत की कमी की.

राज्यों के स्तर पर विविधताएं हैं. बजट घोषणा के समय की गई प्रतिबद्धताओं की तुलना में आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और हरियाणा ने आरई के अनुसार अपने पूंजीगत व्यय में भारी कटौती की है. राजस्थान, झारखंड, पंजाब, तमिलनाडु और तेलंगाना ने भी बजटीय अनुमानों की तुलना में 2022-23 के लिए कैपेक्स पर अपने व्यय को संशोधित किया है.


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यहां तक कि उन राज्यों के लिए भी जिनका कैपेक्स पर आरई 2022-23 के लिए उनके बजटीय अनुमानों से अधिक है, खर्च करने के वास्तविक रुझान विपरीत तस्वीर पेश करते हैं.

उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश ने 2022-23 में अपने पूंजी परिव्यय (capital outlay) का बजट 1.24 लाख करोड़ रुपये रखा. यह 71,443 रुपये (2021-22 के लिए वास्तविक) से एक तेज छलांग थी. संशोधित अनुमानों में पूंजी परिव्यय को और बढ़ाकर 1.26 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है. लेकिन फरवरी तक वास्तविक खर्च बजटीय प्रतिबद्धता के आधे से भी कम रहा है. महाराष्ट्र भी बजट अनुमान से अधिक खर्च करने की उम्मीद करता है लेकिन फरवरी तक वास्तविक खर्च बजटीय आंकड़े का महज 40 फीसदी ही रहा है. इन राज्यों के वित्त वर्ष 23 के लिए अपने कैपेक्स लक्ष्यों को प्राप्त करने की संभावना नहीं है.

राजकोषीय अनुशासन और राजकोषीय मार्क्समैनशिप

पंद्रहवें वित्त आयोग ने 2023-26 के दौरान राज्यों के राजकोषीय घाटे की सीमा को उनके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 3 प्रतिशत करने की सिफारिश की. यदि राज्य पावर सेक्टर में सुधार करते हैं तो उन्हें जीएसडीपी के 3.5 प्रतिशत के अतिरिक्त घाटे की अनुमति है. जिन 20 राज्यों ने अपने बजट की घोषणा की है, उनमें से सात ने 2023-24 के लिए जीएसडीपी के 3.5 प्रतिशत से अधिक घाटे का बजट रखा है. उच्च घाटे के परिणामस्वरूप राज्यों की देनदारियां बढ़ जाएंगी.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
ग्राफिक: रमनदीप कौर | दिप्रिंट

वित्त वर्ष 2022-23 के लिए, बजट अनुमानों (बीई) और आरई की तुलना से पता चलता है कि राज्यों के वित्तीय प्रदर्शन में व्यापक अंतर हैं.


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जबकि ओडिशा ने राजकोषीय अधिशेष (Fiscal Surplus) की सूचना दी है. मध्य प्रदेश, केरल, झारखंड, तेलंगाना, गुजरात, तमिलनाडु, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने बजट अनुमानों की तुलना में जीएसडीपी के राजकोषीय घाटे के संशोधित अनुमानों को कम होने की सूचना दी है.

वहीं दूसरी ओर बिहार और असम जैसे राज्य हैं जो अपने प्रतिबद्ध राजकोषीय घाटे (Committed Fiscal Deficit) की संख्या से काफी अंतर से भटक गए हैं. 2022-23 के लिए असम का बजटीय राजकोषीय घाटा 3.2 प्रतिशत था. यह आरई के अनुसार जीएसडीपी के 8.1 प्रतिशत से विचलित (Deviate) हो गया है. इसी तरह, बिहार का बजटीय राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 3.5 प्रतिशत था, आरई का सुझाव है कि यह जीएसडीपी का 8.8 प्रतिशत होगा.

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ऊपर दिए गए आंकड़े से पता चलता है कि आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और असम के लिए, 2022-23 (आरई) और 2023-24 (बीई) दोनों में जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय घाटा 3.5 प्रतिशत से अधिक अनुमानित किया गया है.

दिलचस्प बात यह है कि आरई भी कुछ राज्यों की राजकोषीय स्थिति का उचित आकलन प्रस्तुत नहीं करता है. बीई, आरई और वास्तविक (Actuals) के बीच विसंगतियां हैं. ये विसंगतियां अनुमानों में त्रुटियों या अप्रत्याशित घटनाओं के घटित होने को दर्शाती हैं.

आमतौर पर, आरई वास्तविक (Actuals) के करीब होना चाहिए, क्योंकि उनमें वित्तीय वर्ष के 9-10 महीनों के लिए वास्तविक डेटा होता है. कुछ राज्यों के लिए यह देखा गया है कि आरई, बीई और वास्तविक (Actuals) से काफी अधिक है. बिहार के लिए, 2021-22 के लिए बीई, आरई और वास्तविक की तुलना से पता चलता है कि राजकोषीय घाटे का संशोधित अनुमान जीएसडीपी के 11.4 प्रतिशत तक पहुंच गया, लेकिन बीई और वास्तविक क्रमशः 3.3 प्रतिशत और जीएसडीपी के 3.8 प्रतिशत के करीब थे.

इस प्रकार, वास्तविक (Actuals) आरई के संबंध में गिरावट का संशोधन दर्शाते हैं. दरअसल, बिहार के संशोधित अनुमानों की विश्वसनीयता पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. पिछले तीन वर्षों के आरई ने राजकोषीय घाटे के अनुमानों (जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में) को दी अनुमति की सीमा से अधिक आंका है. इन वर्षों के वास्तविक आंकड़े बहुत कम निकले.

समग्र राजस्व स्थिति के भीतर, जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में राज्य का अपना कर राजस्व (ओटीआर) राज्यों में आर्थिक गतिविधियों से टैक्स प्राप्त करने की राज्यों की क्षमता को दर्शाता है. उल्लेखनीय रूप से हिमाचल प्रदेश के लिए, आरई के अनुसार 5.6 प्रतिशत पर जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में ओटीआर समान अवधि के लिए सभी राज्यों के औसत 6.7 प्रतिशत से कम है.

उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में 2023-24 में जीएसडीपी के हिस्से के रूप में सबसे अधिक अनुमानित ओटीआर है. हालांकि, 2021-22 के वास्तविक आंकड़ों के अनुसार, यह केवल 7.9 प्रतिशत था. ऐसे समय में जब केंद्र सरकार से जीएसटी मुआवजा (GST compensation) बंद कर दिया गया है, राज्यों के लिए अपनी राजस्व उत्पादन क्षमता बढ़ाना महत्वपूर्ण है.

विकास की धारणाएं

सरकार ने 2023-24 के लिए 10.5 प्रतिशत की मामूली जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया है. 2023-24 के लिए नॉमिनल जीडीपी विकास अनुमान बजट में सबसे महत्वपूर्ण आंकड़ों में से एक है क्योंकि यह राजकोषीय घाटे और टैक्स कलेक्शन में वृद्धि जैसे अनुमानों को निर्धारित करता है.

ग्यारह राज्यों ने अपनी सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को केंद्र सरकार के सकल घरेलू उत्पाद के 10.5 प्रतिशत के अनुमान से ऊपर रखा है. इनमें से कुछ राज्यों के लिए, जीएसडीपी वृद्धि का प्रोजेक्शन व्यापक रूप से सरकार के जीडीपी अनुमानों के अनुरूप नहीं लगता है. उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश ने अपनी जीएसडीपी को 19 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया है. जबकि जीएसडीपी के लिए एक हायर प्रोजेक्शन, घाटे के लक्ष्यों से विचलन को सहारा (Cushion) देने के रूप में कार्य कर सकता है. यह संख्या ऐसे समय में अत्यधिक अवास्तविक लग रही है जब चालू वर्ष के लिए भारत के विकास अनुमानों को कम किया जा रहा है.

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(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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