नयी दिल्ली, 25 जुलाई (भाषा) बरसात के मौसम और त्योहारी मांग के बावजूद देश में खाद्य तेलों (सूरजमुखी एवं सोयाबीन डीगम) के शुल्कमुक्त आयात की छूट के कारण खाद्य तेलों के दाम पहले से और कमजोर हो गए हैं। इसकी वजह इनका काफी मात्रा में आयात है। आयातित तेल खरीद भाव के मुकाबले और सस्ता होने से कारोबारी गतिविधियां काफी हद तक ठहराव की स्थिति में है जिससे दिल्ली तेल- तिलहन बाजार में सोमवार को सरसों, मूंगफली, सोयाबीन तेल-तिलहन तथा सीपीओ, बिनौला, पामोलीन तेल सहित अधिकांश खाद्य तेल पूर्वस्तर पर बने रहे।
बाजार सूत्रों ने कहा कि आयातकों ने जिस भाव पर सोयाबीन डीगम और कच्चे पाम तेल का लाखों टन की मात्रा में आयात कर रखा है, बाजार टूटने के वजह से उन तेलों के दाम आयात भाव से काफी सस्ते हो गये हैं। अब नौबत यह है कि आयातक ने जिन कारोबारियों को यह तेल पहले से बेच रखा है वे महंगे भाव पर सौदे उठाने से कतरा रहे हैं और आयातक से महीने-डेढ़ महीने का समय मांग रहे हैं। अब आयातक न तो उस सौदे को बेच पा रहा है और आगे कोई सौदा नहीं कर पा रहा है। नतीजा यह है कि आयातित माल उठाया नहीं जा रहा और ठहराव जैसी स्थिति है।
इससे आयातकों के बैंक के कर्ज डूबने का खतरा बढ़ गया है। आयातकों की तरह तेल उद्योग भी संकट के दौर से गुजर रहा है। इसके अलावा देश में तेल-तिलहन उत्पादन बढ़ाने की मुहिम को भी धक्का लग सकता है। अक्टूबर में सोयाबीन की फसल आने पर किसानों को अपनी उपज बेचने को लेकर चिंता है कि सस्ते आयातित तेल की देश में प्रचुर मात्रा में मौजूदगी के बीच उनकी तिलहन फसल का ऊंचे भाव पर कौन लिवाल होगा। इस स्थिति के बीच सोपा जैसे कई तेल संगठनों और खाद्य तेल कारोबार के विशेषज्ञों ने सरकार से आयातित तेलों पर आयात शुल्क लगाने की मांग की है।
सूत्रों ने कहा कि बाजार में कारोबारी गतिविधियां कम हुई हैं और आयातित तेलों के लिए सही भाव पर खरीद करने वाले लिवाल नहीं हैं। मजबूरी में आयातकों को कुछ मात्रा का सस्ते में बेचने की नौबत है। अभी जब पामोलीन तेल लगभग 90 रुपये लीटर (अगस्त शिपमेंट) है तो इसके मुकाबले अगले बढ़े हुए एमएसपी (संभावित) वाला सरसों महंगा पड़ेगा और ऐसे में उसे सस्ते सीपीओ और सोयाबीन डीगम जैसे तेलों से प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल होगा। सूत्रों ने कहा कि सरकार को परिस्थितियों पर सूक्ष्मता के साथ लगातार निगरानी रखते हुए फैसले करने पड़ेंगे नहीं तो हमारे देश को तेल-तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता दिलाने का सपना धराशायी हो सकता है। सूत्रों ने कहा कि इसके अलावा खाद्य तेलों से मिलने वाला पशु आहार कहां से आयेगा? गौरतलब है कि सीपीओ और पामोलीन से हमें पशु आहार (खल) प्राप्त नहीं होता।
सूत्रों ने कहा कि खाद्य तेलों के दाम बढ़ने पर अधिकारियों के पास एक पहले से तैयार उपाय है कि आयात शुल्क घटा दो या शुल्क मुक्त कर दो लेकिन उन्हें इन फैसले के घरेलू तेल-तिलहन उत्पादन पर होने वाले असर के बारे में भी सोचना होगा। शुल्क बढ़ाना तात्कालिक उपाय है लेकिन अपना खुद का उत्पादन बढ़ाना एक स्थायी समाधान है।
सोमवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:
सरसों तिलहन – 7,120-7,170 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली – 6,795 – 6,920 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 16,000 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली सॉल्वेंट रिफाइंड तेल 2,670 – 2,860 रुपये प्रति टिन।
सरसों तेल दादरी- 14,200 रुपये प्रति क्विंटल।
सरसों पक्की घानी- 2,250-2,330 रुपये प्रति टिन।
सरसों कच्ची घानी- 2,280-2,395 रुपये प्रति टिन।
तिल तेल मिल डिलिवरी – 17,000-18,500 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 13,100 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 12,850 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 11,600 रुपये प्रति क्विंटल।
सीपीओ एक्स-कांडला- 11,000 रुपये प्रति क्विंटल।
बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 13,950 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 12,750 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन एक्स- कांडला- 11,600 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।
सोयाबीन दाना – 6,250-6,300 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन लूज 6,025- 6,100 रुपये प्रति क्विंटल।
मक्का खल (सरिस्का) 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।
भाषा राजेश राजेश अजय
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