नयी दिल्ली, चार अप्रैल (भाषा) राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को आईएलएंडएफएस समूह की इकाई बालासोर खड़गपुर एक्सप्रेसवे लि. के साथ रियायती समझौता रद्द नहीं करने को कहा है। साथ ही उसके ऋण शोधन समाधान के लिए उपयुक्त उपाय करने को कहा है।
अपीलीय न्यायाधिकरण ने कहा कि बालासोर खड़गपुर एक्सप्रेसवे लि. (बीकेईएल) का समाधान अंतिम चरण में है और इस समय यदि समझौते को रद्द किया जाता है, चीजें जटिल हो जाएंगी। बीकेईएल एक विशेष उद्देश्यीय इकाई है। इसका गठन आईएल एंड एफएस ट्रांसपोर्टेशन नेटवर्क्स लि. (आईटीएनएल) ने किया है।
एनसीएलएटी ने कहा, ‘‘यह ध्यान देना भी प्रासंगिक है कि जब बीकेईएल का समाधान अंतिम चरण में है। ऐसे में प्रतिवादी एनएचएआई के लिए किसी इकाई के समाधान को और अधिक जटिल बनाने के लिए रियायती समझौते को समाप्त करने के लिए आगे बढ़ने का कोई मतलब नहीं है।’’
अपीलीय न्यायाधिकरण ने कहा कि बीकेईएल का ऋण शोधन समाधान संकटग्रस्त आईएल एंड एफएस समूह और उसकी संस्थाओं के ऋणों की वसूली के लिए मंजूरी व्यवस्था के अनुसार है।
जब किसी इकाई का ऋण शोधन समाधान अनुमोदित व्यवस्था के अनुसार किया जाना है, तो ऋण देने वालों सहित सभी कर्जदाताओं/दावेदारों को भुगतान समाधान प्रक्रिया के अनुसार होना चाहिए।
एनसीएलएटी ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अंतरिम आवेदन का निपटान करते हुए कहा, ‘‘हमारा निर्देश है कि आवेदक के साथ-साथ प्रतिवादी विशेष उद्देश्यीय इकाई के अंतिम समाधान के लिए उचित उपाय करें।’’
एनएचएआई और बीकेईएल के बीच 24 अप्रैल, 2012 को एक रियायती समझौते पर हस्ताक्षर किये गये थे। इसमें उसने एसबीआई से वित्तीय सुविधाएं प्राप्त की थीं।
रियायती समझौते के तहत बीकेईएल को रियायती शुल्क और प्रीमियम का भुगतान एनएचएआई को करना था। हालांकि, 2016 में एक पूरक समझौता करके एनएचएआई ने प्रीमियम के भुगतान में मोहलत दी थी।
आईएल एंड एफएस में 2018 में संकट हुआ और 2019 में, अपीलीय न्यायाधिकरण की मंजूरी वाली व्यवस्था के अनुसार बीकेईएल को आईएल एंड एफएस समूह की ‘रेड एंटिटी’ के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
‘रेड लिस्ट’ में आईएल एंड एफएस समूह की उन कंपनियों को सूचीबद्ध किया गया था जो अपने कर्जदाताओं को भुगतान दायित्वों सहित वित्तीय और परिचालन दायित्वों को पूरा करने में सक्षम नहीं थीं।
इस बीच, एनएचएआई ने प्रीमियम बकाया, ब्याज आदि के भुगतान की मांग करते हुए कई पत्र लिखे। इस पर एसबीआई ने आपत्ति जताई क्योंकि उसका मानना था कि इससे समाधान प्रक्रिया पटरी से उतर सकती है।
भाषा रमण अजय
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