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Monday, 6 January, 2025
होमदेशअर्थजगत‘पैसा विदेशों में जाने से आई गिरावट’, अप्रैल-अक्टूबर 2024 में FDI पहुंचा 12 साल के निचले स्तर पर

‘पैसा विदेशों में जाने से आई गिरावट’, अप्रैल-अक्टूबर 2024 में FDI पहुंचा 12 साल के निचले स्तर पर

जबकि पिछले कुछ साल में ग्रोस एफडीआई का फ्लो स्थिर रहा है, विदेशी फर्मों द्वारा पैसा न लगाने और विनिवेश में वृद्धि हुई है और तो और भारतीय कंपनियां भी विदेशों में बहुत अधिक निवेश कर रही हैं.

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नई दिल्ली: इस वित्त वर्ष की अप्रैल से अक्टूबर अवधि में भारत में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) फ्लो पिछले कुछ साल की समान अवधि की तुलना में 12 साल के निचले स्तर पर आ गया. नेट राशि में यह गिरावट कंपनियों द्वारा देश से बाहर निकाले जा रहे धन की मात्रा में वृद्धि और उनके द्वारा लगाए जा रहे ग्रोस अमाउंट में ठहराव के कारण है.

इसके अलावा, दिप्रिंट द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि इस वित्त वर्ष में अब तक भारतीय कंपनियों द्वारा किए गए विदेशी निवेश में भी तेज़ी से वृद्धि हुई है.

अर्थशास्त्रियों के अनुसार, दोनों ट्रेंड — विदेशी कंपनियों द्वारा अपना पैसा बाहर निकालना और भारतीय कंपनियों द्वारा विदेश में निवेश करना — भारत की तुलना में अमेरिकी अर्थव्यवस्था के सापेक्ष आकर्षण से प्रेरित हैं, खासकर वैश्विक अनिश्चितता के दौर में.

नेट एफडीआई फ्लो 12 वर्षों में सबसे कम हो गया है | ग्राफिक: वासिफ खान/दिप्रिंट
नेट एफडीआई फ्लो 12 वर्षों में सबसे कम हो गया है | ग्राफिक: वासिफ खान/दिप्रिंट

आरबीआई के पास अब तक अप्रैल से अक्टूबर 2024 की अवधि के आंकड़े हैं और इसलिए पिछले वर्षों की तुलना में भी उन वर्षों की केवल इसी अवधि को शामिल किया गया है.

डेटा से पता चलता है कि अप्रैल-अक्टूबर 2024 में भारत में नेट एफडीआई फ्लो घटकर 14.5 बिलियन डॉलर रह गया, जो 2012-13 के बाद सबसे कम है, जब यह 13.8 बिलियन डॉलर था. डेटा से यह भी पता चलता है कि 2012-13 से 2023-24 तक नेट एफडीआई महामारी के बाद से साल दर साल धीमा होता जा रहा है.

यानी, महामारी वर्ष 2020-21 के अप्रैल से अक्टूबर की अवधि के दौरान नेट एफडीआई 34 बिलियन डॉलर था, जो 2021-22 में घटकर 32.8 बिलियन डॉलर, 2022-23 में 27.5 बिलियन डॉलर और 2023-24 में 15.7 बिलियन डॉलर रह गया.


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आने वाला पैसा स्थिर, जबकि निकासी बढ़ी

नेट एफडीआई फ्लो देश में ग्रोस फ्लो और इन विदेशी कंपनियों द्वारा किए जाने वाले प्रत्यावर्तन और विनिवेश के बीच का अंतर है, जिसमें देश से बाहर जाने वाला पैसा शामिल है.

ग्रोस एफडीआई फ्लो और प्रत्यावर्तन | ग्राफिक: वासिफ खान/दिप्रिंट
ग्रोस एफडीआई फ्लो और प्रत्यावर्तन | ग्राफिक: वासिफ खान/दिप्रिंट

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अप्रैल-अक्टूबर 2024 की अवधि में देश में ग्रोस एफडीआई फ्लो 48.6 बिलियन डॉलर था, जो कम से कम 2011-12 के बाद से संयुक्त रूप से उच्चतम है, जो कि सबसे पहला वर्ष था जिसके लिए आरबीआई ने अलग-अलग डेटा दिए थे. यह आंकड़ा काफी हद तक वही है जो 2020-21 और 2021-22 की समान अवधि में था.

नेट एफडीआई में गिरावट का कारण यह है कि निकासी बढ़ गई है. विदेशी कंपनियों द्वारा प्रत्यावर्तन और विनिवेश के रूप में देश से बाहर जाने वाला पैसा इस वित्तीय वर्ष की अप्रैल-अक्टूबर अवधि में बढ़कर 34.1 बिलियन डॉलर हो गया, जो पिछले साल की इसी अवधि में 26.4 बिलियन डॉलर था. यह आंकड़ा 2017-18 से बढ़ रहा है.

ईवाई इंडिया के मुख्य नीति सलाहकार डी.के. श्रीवास्तव ने दिप्रिंट को बताया, “धीमे होते सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और खराब कॉर्पोरेट लाभप्रदता का इस पर असर है, लेकिन यह एक अल्पकालिक विचार है क्योंकि यह प्रवृत्ति हाल ही की है.”

उन्होंने कहा, “लेकिन जारी कॉन्फ्लिक्ट्स और इसी तरह की अन्य चीज़ों के कारण एक आम धारणा यह है कि ग्लोबल ट्रेड भारत की मदद नहीं करेगा, जहां तक ​​निर्यात, पेट्रोलियम की कीमतों और आपूर्ति का सवाल है, हमारे सामने बहुत मुश्किल परिदृश्य होगा, जबकि एकमात्र अर्थव्यवस्था जिसके सहज रहने की उम्मीद है, वह है अमेरिकी अर्थव्यवस्था.”

नई दिल्ली स्थित प्रोफेशनल सर्विस फर्म ग्रांट थॉर्नटन भारत के पार्टनर ऋषि शाह ने भी भारत से बाहर जाने वाले धन के कारण के रूप में वैश्विक परिदृश्य की ओर इशारा किया.

शाह ने कहा, “अमेरिकी चुनावी चक्र के साथ-साथ चल रही भू-राजनीतिक अनिश्चितता ने निवेशकों के लिए अधिक सतर्क रुख अपनाया है और अधिक डॉलर मूल्य वाले एसेट्स पर पैसा लगाने का ट्रेंड जारी है.”

उन्होंने कहा कि यह ट्रेंड विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के बीच भी देखा गया है — जो प्रतिभूति बाज़ारों में निवेश करते हैं, लेकिन यह संयंत्रों और कारखानों जैसे एसेट्स में प्रत्यक्ष निवेश में भी दिखाई देती है.

आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने इस वित्तीय वर्ष की अप्रैल-दिसंबर 2024 की अवधि के दौरान भारतीय बाज़ारों से 2.5 लाख करोड़ रुपये निकाले हैं.

भारतीय कंपनियों ने किया विदेशों का रुख

जबकि विदेशी कंपनियां निवेश के लिए भारत से दूर होती जा रही हैं, ऐसा लगता है कि भारतीय कंपनियां भी ऐसा ही कर रही हैं.

भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशी निवेश | ग्राफिक: वासिफ खान/दिप्रिंट
भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशी निवेश | ग्राफिक: वासिफ खान/दिप्रिंट

अप्रैल-अक्टूबर 2024 में भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशी निवेश बढ़कर 12.4 बिलियन डॉलर हो गया, जो कम से कम 2011-12 के बाद सबसे अधिक है और पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 55 प्रतिशत की वृद्धि है.

श्रीवास्तव ने बताया, “कंपनियां भारत के बजाय ज़्यादातर विदेश में निवेश कर रही हैं. मुझे लगता है कि उम्मीद है कि, हर जगह वैश्विक अनिश्चितता की उपस्थिति में, पूरी बात भारत और अमेरिका के बीच की दौड़ बन जाती है. चीन और यूरोप आकर्षक नहीं हैं. निवेशकों को उम्मीद है कि अमेरिका अच्छा प्रदर्शन करेगा और भारत से बहुत बेहतर, खासकर अल्पावधि में.”

दूसरे शब्दों में, उन्होंने कहा, भारत में घरेलू निवेशकों को लगता है कि भारत में निवेश करना उतना आकर्षक नहीं है जितना कि अमेरिका में निवेश करना है.

शाह ने कहा, “स्थिति को देखते हुए, भारत जैसे निवेश को आकर्षित करने वाले देशों को यह आकलन करने की ज़रूरत है कि क्या उनके पास दीर्घकालिक उत्पादक पूंजी प्राप्त करने के लिए पर्याप्त आकर्षक कहानी है.”

हालांकि, शाह ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि भारतीय कंपनियां अपनी सप्लाई चैन को सुरक्षित करने और व्यापार को गति देने के लिए रणनीतिक उद्देश्यों के लिए विदेश में निवेश कर सकती हैं.

उन्होंने कहा, “भारतीय कंपनियों द्वारा विदेश में निवेश करने का एक कारण रणनीतिक उद्देश्य प्रतीत होता है. बंदरगाहों और शिपिंग लाइनों पर नियंत्रण ने उन्हें शिपिंग समय में काफी कमी लाने में सक्षम बनाया है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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