नयी दिल्ली, 16 सितंबर (भाषा) नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने भू-तापीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय नीति तैयार की है जिससे देश के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों और वर्ष 2070 तक शुद्ध रूप से शून्य उत्सर्जन लक्ष्य की दिशा में अतिरिक्त सहयोग मिलेगा।
भू-तापीय ऊर्जा पृथ्वी की परतों में संचित ऊष्मा का उपयोग करती है। ज्वालामुखीय क्षेत्रों, गर्म पानी के फव्वारों और गर्म झरनों से निकलने वाली ऊर्जा का इस्तेमाल मुख्य रूप से बिजली उत्पादन में किया जाता है।
भू-तापीय ऊर्जा पर राष्ट्रीय नीति से संबधित दस्तावेज के मुताबिक, सौर, पवन, जलविद्युत और जैव-ऊर्जा के साथ भू-तापीय ऊर्जा भी एक महत्वपूर्ण अतिरिक्त संसाधन बन सकती है। इसका उद्देश्य अनुसंधान क्षमता में सुधार, उन्नत अन्वेषण, ड्रिलिंग तकनीक, कम लागत वाली ऊर्जा उत्पादन तथा प्रत्यक्ष उपयोग तकनीकों को बढ़ावा देना है।
नीति में अंतरराष्ट्रीय संस्थानों और राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों के साथ सहयोग कर वैश्विक सर्वोत्तम गतिविधियों को अपनाने की बात कही गई है। साथ ही तेल और गैस क्षेत्र के सहयोग से परित्यक्त कुओं का पुनः उपयोग कर बड़े पैमाने पर भू-तापीय बिजली उत्पादन की योजना है।
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने देश में 10 भू-तापीय क्षेत्रों की पहचान की है, जिनमें हिमालयी, नागा-लुसाई, अंडमान-निकोबार और सोन-नर्मदा-ताप्ती क्षेत्र शामिल हैं।
मंत्रालय एक राष्ट्रीय भू-तापीय आंकड़ा तैयार करेगा जिसमें सभी सर्वेक्षण और आकलन से प्राप्त आंकड़े अनिवार्य रूप से जमा करने होंगे।
वर्तमान में नवीकरणीय ऊर्जा में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति है। नीति स्वदेशी प्रौद्योगिकी को प्राथमिकता देकर उपकरणों के आयात पर निर्भरता घटाने और स्थानीय नवाचार को प्रोत्साहित करने पर जोर देती है।
केंद्र और राज्य सरकारें भू-तापीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए अतिरिक्त दिशानिर्देश और प्रोत्साहन भी जारी कर सकती हैं।
भाषा प्रेम प्रेम रमण
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