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Friday, 20 December, 2024
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चिप्स खाएं या भुजिया — भारत के स्नैक्स बाज़ार पर पश्चिमी वस्तुओं का दबदबा

एसोचैम का कहना है कि स्नैक्स के संगठित बाज़ार में देशी नमकीन की भागीदारी साल 2026 तक 16% की दर से बढ़कर 204 अरब रुपये हो जाएगी.

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नई दिल्ली: चिप्स और नाचोस या भुजिया और चकली? कौन किस पर है भारी? इसका फैसला अब आ चुका है: भारतीय लोग ‘पारंपरिक’ देशी नमकीन की जगह ‘वेस्टर्न’ स्नैक्स ही ज़्यादा पसंद करते हैं. हालांकि, यह ट्रेंड अब बदलाव के लिए बिल्कुल तैयार है.

एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने ‘इंडियन क्विज़ीन एट क्रॉसरोड’ शीर्षक वाली अपनी हालिया रिपोर्ट में कुछ ऐसे आंकड़ों का हवाला दिया है, जिसमें दिखाया गया है कि भारत का चटपटे नमकीन स्नैक्स का बाजार पिछले 8 वर्षों में काफी बड़ा हो गया है, लेकिन इसमें काफी हद वह उत्पाद हावी हैं जो ‘वेस्टर्न’ स्नैक्स कहलाते हैं.

भारत के चटपटे नमकीन स्नैक्स उद्योग का मूल्य वित्त वर्ष 2015 के 500 अरब रुपये (50,000 करोड़ रुपये) से बढ़कर वित्त वर्ष 2022 तक लगभग 751 अरब रुपये (75,100 करोड़ रुपये) हो गया है.

एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक, इस 751 अरब रुपये के सकल बाज़ार में से करीब 423 अरब रुपये (42,300 करोड़ रुपये) संगठित क्षेत्र (अच्छी तरह से पैक्ड, लेबल, ब्रांडेड) में हैं. इसके भीतर, वेस्टर्न नमकीन स्नैक्स ही हावी है. इनका सकल कारोबार 242 बिलियन रुपये (24,200 करोड़ रुपये) के मूल्य का है, जो कुल संगठित नमकीन स्नैक्स बाज़ार का लगभग 57 प्रतिशत है.

चित्रण: रमनदीर कौर | दिप्रिंट

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि नमकीन स्नैक्स उद्योग के साल 2026 तक 13 प्रतिशत (वार्षिक चक्रवृद्धि) की दर से बढ़ने की संभावना है और उस साल तक इसके 1.23 ट्रिलियन (1,22,700 करोड़ रुपये) के कारोबारी मूल्य तक पहुंच जाने की उम्मीद है.


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‘वेस्टर्न’ स्नैक्स का बोलबाला

भारत में पैकेज्ड और स्वादिष्ट नमकीन स्वाद वाला नाश्ता, जिन्हें मोटे तौर पर पारंपरिक और वेस्टर्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है, के बहुत सारे विकल्पों की पेशकश करता है.

इस रिपोर्ट के अनुसार, वेस्टर्न स्नैक्स के दायरे में चिप्स, एक्सट्रूडर (मकई-आधारित स्नैक्स, पफ्स, रिंग आदि) और पुल (जैसे नाचोस और कुरकुरे) आदि शामिल हैं.

पारंपरिक स्नैक्स में देशी नमकीन, भुजिया, सूखे समोसे, कचौड़ी और चकली आदि शामिल हैं.

नमकीन स्नैक्स के 423 अरब रुपये के संगठित बाज़ार में देशी भुजिया की कीमत 67 अरब रुपये (6,700 करोड़ रुपये) है, जो कुल कारोबार का करीब 16 फीसदी है. अन्य नमकीन और स्नैक्स जैसे पैकेज्ड सूखे समोसे, कचौड़ी और गैर-भुजिया उत्पाद 114 बिलियन रुपये (11,400 करोड़ रुपये) के मूल्य के साथ संगठित बाज़ार का 27 प्रतिशत हिस्सा रखते हैं.

चित्रण: रमनदीप कौर | दिप्रिंट

इस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि संगठित पारंपरिक नमकीन स्नैक्स (गैर-भुजिया उत्पाद), जो फिलहाल 114 अरब रुपये के कारोबार वाले हैं, वास्तव में 16 प्रतिशत चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ सकते हैं और साल 2026 तक लगभग 204 अरब रुपये के मूल्य वाले कारोबार तक पहुंच सकते हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि पैकेज्ड उत्पादों में से सूखे देशी स्नैक्स (गैर-भुजिया उत्पादों) की बिक्री में यह वृद्धि ‘वेस्टर्न’ स्नैक्स की अधिक खपत के चलन को बदलने के लिए पूरी तरह तैयार है.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘वेस्टर्न नमकीन स्नैक्स के दबदबे के बावजूद, संगठित पारंपरिक स्नैक्स का बाज़ार हाल के वर्षों में काफी परिपक्व हो गया है और इसके और आगे बढ़ने की संभावना है, क्योंकि प्रोडक्ट सीरीज़ में कई ऐसे नए उत्पाद जोड़े जा रहे हैं जो न केवल भारतीय स्वाद ग्रंथि को लुभाते हैं, बल्कि अच्छी गुणवत्ता और पोषण सहित कई बेहतर उत्पाद संबंधी (तकनीकी) पहलुओं को भी प्रदर्शित करते हैं.’’

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘यह बेहतर पैकेजिंग और बिक्री की बेहतर कार्यप्रणाली के कारण भी संभव हुआ है जो अब कंपनियों को अपने उत्पादों के प्रामाणिक स्वाद को बरकरार रखते हुए भी पारंपरिक खाद्य पदार्थों की शेल्फ-लाइफ (खराब होने की समय सीमा) को बढ़ाने के लिए बेहतर प्रक्रियाओं को विकसित करने की अनुमति देता है. इसके आदर्श उदाहरण हल्दीराम की भाकरवड़ी, समोसा, भेल पूरी; पेपरबोट द्वारा तैयार आम पन्ना, पैकेज्ड नारियल पानी आदि हैं. इसी प्रवृत्ति के आगे भी जारी रहने की उम्मीद है…’

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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