scorecardresearch
Saturday, 16 November, 2024
होमदेशअर्थजगतविदेशी बाजारों में सोयाबीन डीगम दाम टूटने से बीते सप्ताह अधिकांश तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट

विदेशी बाजारों में सोयाबीन डीगम दाम टूटने से बीते सप्ताह अधिकांश तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट

Text Size:

नयी दिल्ली, 14 अप्रैल (भाषा) विदेशी बाजारों में सोयाबीन डीगम का दाम टूटने के बीच आयातित खाद्य तेलों की कीमतें प्रभावित होने के कारण बीते सप्ताह देश के तेल-तिलहन बाजारों में अधिकांश तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट दर्ज हुई।

इस दौरान सरसों, मूंगफली तेल-तिलहन, सोयाबीन तेल, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तेल कीमतों में गिरावट देखने को मिली जबकि किसानों की अपेक्षा के अनुरूप दाम नहीं मिलने के कारण मंडियों में कम बिक्री करने से सोयाबीन तिलहन तथा बाजार में आवक घटने के बीच बिनौला तेल के दाम तेजी दर्शाते बंद हुए।

बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि बंदरगाह सहित अन्य स्थानों पर खाद्य तेलों के कमजोर स्टॉक के बीच समीक्षाधीन सप्ताह में विदेशों में सोयाबीन डीगम तेल के थोक दाम पहले के 1,015-1,020 डॉलर प्रति टन से घटकर 975-980 डॉलर प्रति टन रह गये। इस गिरावट का असर बाकी तेल-तिलहनों पर भी आया और पिछले सप्ताह के मुकाबले समीक्षाधीन सप्ताह में अधिकांश तेल-तिलहनों के दाम गिरावट दर्शाते बंद हुए। विदेशों में सोयाबीन डीगम के थोक दाम भले ही टूट गये हों पर देश में इन तेलों की बिक्री प्रीमियम दाम के साथ जारी है। बेशक प्रीमियम की राशि पिछले महीने लगभग 10 प्रतिशत थी जो अब घटकर 4-5 प्रतिशत रह गई है।

सूत्रों ने कहा कि सरकार को इस बात पर ध्यान देना होगा कि खाद्य तेलों के दाम मामूली वृद्धि के साथ लगभग 20 साल पहले की कीमत के आसपास हैं जबकि अन्य वस्तुओं के दाम काफी अधिक हुए हैं। यह स्थिति तेल- तिलहन कारोबार के लिए अच्छा नहीं है। इसके अलावा तेल- तिलहन का उत्पादन बढ़ाने की मंशा उचित हो सकती है लेकिन इसके लिए देशी तेल-तिलहन का बाजार विकसित करने तथा आयात नीति और शुल्कों का उचित निर्धारण भी जरूरी है।

उन्होंने कहा कि विदेशी तेलों के थोक दाम सस्ता होने के कारण सरसों जैसा अन्य देशी तेल को बाजार से जूझना पड़ रहा है क्योंकि देशी तेल के दाम बेपड़ता हो रहे हैं और तेल पेराई मिलों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।

सूत्रों ने कहा कि बीते सप्ताह किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सरसों की खरीद तो शुरू हुई मगर यह उम्मीदों से कम थी। इसलिए सरसों की आवक बढ़ने की कुछ विशेषज्ञों की उम्मीद (लगभग 16 लाख बोरी) के विपरीत आवक 7.25-9.25 लाख बोरी पर स्थिर बनी हुई है। इस बार भी लगभग 28.2 लाख टन फसल खरीद का लक्ष्य है लेकिन इससे काम पूरा नहीं होगा। देशी तेल-तिलहनों का बाजार विकसित करने पर ध्यान नहीं दिया गया तो हम खाद्य तेलों के लिए आगे भी भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा खर्च करते नजर आयेंगे।

सूत्रों ने कहा कि विदेशों में सोयाबीन डीगम का दाम टूटने से यहां सोयाबीन तेल कीमतों में गिरावट देखने को मिली लेकिन सोयाबीन तिलहन इसके विपरीत चला।

किसानों को दो साल पहले सोयाबीन के एमएसपी से काफी ऊंचे दाम मिलते रहे हैं। बाजार में पिछले सप्ताह तक किसान सोयाबीन एमएसपी से 2-4 प्रतिशत नीचे दाम पर बेच रहे थे जो अब जाकर लगभग एमएसपी के आसपास हुआ है। किसानों की कम दाम पर बिकवाली कम करने से सोयाबीन तिलहन कीमतों में सुधार दिखा।

उन्होंने कहा कि सोयाबीन की कम बिक्री करना सोयाबीन संयंत्र वालों के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि किसान अगर सोयाबीन खेती से विमुख हुए तो इसका सीधा असर देश के तेल संयंत्रों पर आयेगा।

सूत्रों ने कहा कि मूंगफली तेल-तिलहन में गिरावट का कारण इसके अन्य सस्ते आयातित तेलों के मुकाबले महंगा होना और इस कारण बेपड़ता बैठना है। मूंगफली के किसान इसलिए परेशान हैं क्योंकि उन्हें उपज के दाम नहीं मिल रहे और उन्हें एमएसपी से काफी कम दाम पर फसल बेचने की मजबूरी है। तेल मिल इसलिए नुकसान में हैं कि एमएसपी से नीचे खरीद करने के बाद भी पेराई में उन्हें 5-7 रुपये किलो का नुकसान हो रहा है।

सूत्रों ने कहा कि सीपीओ और पामोलीन की हाजिर में भारी कमी है। पाम, पामोलीन का माल ही नहीं है। जब देश के बंदरगाहों पर लोकप्रिय सॉफ्ट आयल- सोयाबीन और सूरजमुखी 84-85 रुपये लीटर बिक रहा है तो 89 रुपये प्रति किलो वाला पामोलीन (हेवी आयल) कोई क्यों खरीदेगा? यह पाम, पामोलीन में गिरावट का मुख्य कारण है।

सूत्रों ने कहा कि बिनौला तेल में सुधार का कारण नकली खल को माना जाना चाहिये क्योंकि नकली खल की वजह से मंडियों में कपास की आवक कम हो रही है। नकली बिनौला खल के दाम सस्ते में हैं तो कोई असली बिनौला खल महंगे दाम में कैसे खरीद पायेगा। इसी वजह से मंडियों में कपास की आवक कम हो रही क्योंकि उससे सबसे अधिक खल मिलता है जिसके दाम नहीं मिलते। जब असली खल के लिवाल नहीं हों तो इसकी भरपाई बिनौला तेल के दाम को बढ़ाकर पूरा किया जाता है जो बिनौला तेल में सुधार का कारण है।

बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 95 रुपये की गिरावट के साथ 5,340-5,380 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल का भाव 350 रुपये घटकर 10,075 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल का भाव क्रमश: 45-45 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 1,720-1,820 रुपये और 1,720-1,835 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुआ।

समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज का भाव क्रमश: 170-170 रुपये की तेजी के साथ क्रमश: 4,910-4,930 रुपये प्रति क्विंटल और 4,710-4,750 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

इसके विपरीत सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम तेल का भाव क्रमश: 300 रुपये, 400 रुपये और 375 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 10,400 रुपये और 10,050 रुपये और 8,700 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तिलहन के दाम 75 रुपये की गिरावट के साथ 6,105-6,380 रुपये क्विंटल पर बंद हुए। मूंगफली गुजरात और मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल के भाव भी क्रमश: 250 रुपये और 40 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 14,750 रुपये क्विंटल और 2,240-2,505 रुपये प्रति टिन पर बंद हुए।

समीक्षाधीन सप्ताह में कच्चा पाम तेल (सीपीओ) 25 रुपये की गिरावट के साथ 9,425 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पामोलीन दिल्ली का भाव 125 रुपये की गिरावट के साथ 10,625 रुपये प्रति क्विंटल तथा पामोलीन एक्स कांडला तेल का भाव 150 रुपये की गिरावट के साथ 9,650 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

गिरावट के आम रुख के उलट बिनौला तेल 25 रुपये मजबूत होकर 9,725 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

भाषा राजेश

अजय

अजय

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments