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Tuesday, 24 December, 2024
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ज्यादा चिप्स, हवा कम: पेप्सी का ऑफर ठुकराने वाली गुजरात की बालाजी वेफर्स कैसे स्नैक्स की दुनिया में छा गई

सिनेमा हॉल में स्नैक्स बेचने से शुरू हुई बालाजी वेफर्स का कारोबार मार्च में 5,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो कि विरानी परिवार की एक और उपलब्धि थी.

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राजकोट: मर्सिडीज से लेकर पोर्शे तक – शानदार कारों का एक काफिला राजकोट के कलावाड़ी रोड पर गुजरता है. उनका गंतव्य एक कारखाना है, जिसके बारे में नेशनल ज्योग्राफिक चैनल द्वारा इस पर एक डॉक्युमेंट्री दिखाए जाने के बाद से शहर में इसकी चर्चा है.

बालाजी वेफर्स में आपका स्वागत है, एक घरेलू गुजराती ब्रांड जो भारत के नमकीन-स्नैक्स बाजार में सबसे बड़ा है, जिसकी भले ही पूरे देश में उपस्थिति नहीं है फिर भी हल्दीराम और पेप्सिको जैसी दिग्गज कंपनियों के खिलाफ अपनी मज़बूत पकड़ रखता है.

मार्च में, कंपनी का टर्नओवर 5,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो कि उस विरानी परिवार के लिए एक नई उपलब्धि थी, जिसने अपनी यह यात्रा एक सिनेमा हॉल में स्नैक्स बेचने से शुरू की थी.

1982 में अपने भाइयों भीका भाई और कनुभाई के साथ कंपनी की स्थापना करने वाले चंदूभाई विरानी ने कहा, “जिस तरह से पानी में एक कंकड़ फेंकने से छोटी-छोटी लहरें उठती हैं वैसे ही हमारी मेहनत ने भी छोटी-छोटी लहरों का निर्माण किया और उसी के सहारे हम बढ़ते रहे.”

राजकोट के बाहरी इलाके में अपने कार्यालय में दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, ”मैंने कभी भी इसे बड़ा करने के लिए दबाव नहीं डाला.”

विरानी एक पुराने जमाने के व्यवसायी हैं, यह उनके कार्यालय से स्पष्ट होता है, जिसमें लैपटॉप या कंप्यूटर नहीं है.

वे मुस्करा उठे, “अगर मैं सारा दिन अपने लैपटॉप में खोया रहूं तो मेरी कंपनी कौन चलाएगा?”

बालाजी वेफर्स गुजरात में सबसे अधिक मान्यता प्राप्त वेफर्स ब्रांड है और देश भर में इसकी चार फैक्ट्रियां हैं – राजकोट, वलसाड, लखनऊ और इंदौर में.

इस कंपनी के लिए 7,000 लोग काम करते हैं और यह एक फैमिली बिजनेस बना हुआ है. 2014 में इसे पेप्सिको को बेचने से इनकार कर दिया गया था, भले ही वह बहुराष्ट्रीय कंपनी इसके उस समय के टर्नओवर से चार गुना पैसे ऑफर कर रही थी. अब इस घटना का जिक्र अपनी पहचान के प्रति प्रतिबद्धता के रूप में किया जाता है.

वर्तमान में, बालाजी 50 अलग-अलग प्रोडक्ट्स बेचता है. वे वर्तमान में गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान सहित 14 राज्यों में मौजूद हैं.

कंपनी संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका को भी निर्यात करती है.

उनके पास 2,000 स्प्लायर हैं, और विरानी का दावा है कि उनमें से 80 प्रतिशत किसान हैं.

विरानी ने कहा, यह गर्व की बात है कि उनके साथ स्थानीय डिस्ट्रीब्यूटर्स की संपत्ति में वृद्धि हुई है. उन्होंने कहा, “कोई व्यवसाय अपने आप नहीं चल सकता. इसे अपने आस-पास के सभी लोगों की मदद करनी होती है.”

कैसे शुरू हुआ सफर

बालाजी वेफर्स की शुरूआत ऐसे समय में हुई जब उनकी जिंदगी में काफी उठा-पटक चल रही थी. उस वक्त सूखे की वजह से विरानी परिवार को जामनगर में अपने गांव से राजकोट की ओर पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

बात 1974 की है.

शहर में विरानी, भीका भाई और कनुभाई ने तत्कालीन एस्टोरिया सिनेमा की कैंटीन में काम करना शुरू कर दिया. दो साल के भीतर ही उन्हें कैंटीन चलाने का ठेका मिल गया.

अगले पांच वर्षों में, भाइयों ने फिल्म देखने वालों को घर के बने वेफर्स बेचने का फैसला किया.

विरानी ने कहा, “हमें वेफर्स की अच्छी सप्लाई नहीं मिल रही थी, इसलिए हमने खुद ही आलू के चिप्स बनाने का फैसला किया. हमने एक मशीन खरीदी जो आलू छीलती थी, और फिर कटे हुए टुकड़ों को पानी में भिगोया जाता था, और वेफर्स हमारी रसोई में बनाए जाते थे.”

A young Chandubhai Virani during the initial days of Balaji Wafers
बालाजी वेफर्स के शुरुआती दिनों में युवा चंदूभाई विरानी

फिर कुछ ऐसा हुआ कि, भाइयों का मन उनके काम के लिए एक नई भावना से भर गया.

विरानी ने दिप्रिंट को बताया कि उनके पिता पोपटभाई ने अपनी ज़मीन बेच दी और उससे प्राप्त रकम अपने बेटों के बीच बांट दी. उन्होंने कहा, “इस बात ने कि मेरे पिता ने सब कुछ बेच दिया और हमारे पिता ने हम पर जो भरोसा जताया था उसने हमें जिम्मेदारी के अहसास से भर दिया.”

‘बालाजी’ नाम उनकी पुरानी पहचान का प्रतीक है. परिवार ने यह नाम इसलिए चुना क्योंकि सिनेमा के ठीक बाहर एक बालाजी मंदिर था जहां उन्होंने अपना वेफर्स व्यवसाय शुरू किया था.

भाइयों ने एक-एक कर ऋण लेकर कारोबार को आगे बढ़ाया.

उनका पहला ऋण सिनेमा हॉल के बाहर टेम्पो और रिक्शा में चिप्स बेचने का था. एक बार जब वह लोन चुकता हो गया, तो उन्होंने अपनी पहली फैक्ट्री खोलने के लिए 1.5 लाख रुपये का ऋण लिया, इसके बाद वलसाड में एक फैक्ट्री के लिए 1 करोड़ रुपये का ऋण लिया.

उनका कर्ज़ बढ़कर सैकड़ों करोड़ हो गया और उनका सालाना टर्नओवर हज़ारों करोड़ हो गया.

विरानी का फलसफा है कि किसी व्यवसाय के फलने-फूलने के लिए, प्रॉफिट को बढ़ाने से ज्यादा प्रोडक्ट की वैल्यू बढ़ाने पर होनी चाहिए. उन्होंने कहा, “मैं बहुत स्पष्ट था, हमारा बिजनेस बढ़ने के साथ-सात आस-पास के लोगों को भी फायदा मिलना चाहिए.”

उदाहरण के तौर पर, विरानी ने बताया कि कैसे उन्होंने किसानों से छोटे आलू खरीदकर उनकी मदद करने का एक तरीका खोजा.

“हम केवल बड़े आलू से ही वेफर्स बना सकते हैं. लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसानों के छोटे आलू बर्बाद न हों, हम उनसे फ्लेक्स बनाते हैं और इसे अपने विभिन्न नमकीन मिश्रणों में जोड़ने के लिए उपयोग करते हैं, ”उन्होंने कहा. “देश भर से छोटे आलू यहीं संसाधित होते हैं.”


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काम पर सीखना

हालांकि, मंझला बच्चा, विरानी – 60 के दशक का एक दुबला-पतला आदमी – बालाजी वेफर्स की बागडोर संभालता है.

किसी समय उनके भाई ने आइसक्रीम जैसे अन्य व्यवसायों में हाथ आजमाने के लिए छोड़ दिया. हालांकि, विरानी ने यह नहीं बताया कि उन्होंने कब छोड़ा.

2014 में जब बालाजी का टर्नओवर 1,000 करोड़ रुपये था तो पेप्सिको ने ऑफर दिया था.

इसी के आसपास दो भारतीय स्नैक दिग्गजों ने विदेशी कंपनियों को अपनी हिस्सेदारी बेच दी थी. एक तो दिल्ली स्थित डीएफएम ग्रुप (क्रैक्स के निर्माता) ने निवेश फर्म वेस्टब्रिज कैपिटल पार्टनर्स को 25 प्रतिशत हिस्सेदारी बेची थी, जबकि दूसरी राजस्थान स्थित बीकाजी नमकीन ने निजी इक्विटी फंड लाइटहाउस को अपनी 12 प्रतिशत हिस्सेदारी बेच दी थी.

हालांकि, पेप्सिको की पेशकश कभी भी अंतिम रूप नहीं ले सकी क्योंकि बालाजी वेफर्स इस तरह के सौदे के लिए तैयार नहीं था.

विरानी ने कहा, “अगर उन्होंने (पेप्सी) हमें साझेदारी की पेशकश की होती, तो हमने इसे ले लिया होता. 5-10 प्रतिशत हिस्सेदारी ठीक थी लेकिन उससे अधिक नहीं.” जब उनकी कंपनी तेजी से बढ़ रही थी, विरानी ने सोचा था कि पेप्सी जैसी कंपनी गवर्नेंस और पॉलिसी सीखने और आराम से विस्तार करने के लिए एक बेहतरीन भागीदार हो सकती है. उन्होंने आगे कहा, “अब हमने यह सब अपने आप सीख लिया है.”

हालांकि उनके बिजनेस के तरीके अलग हो गए हैं, विरानी परिवार अभी भी एक एकजुट है.

हर दिन दोपहर 1 बजे, परिवार के सदस्य एक विशाल डाइनिंग टेबल के चारों ओर रसोई में बैठते हैं, और ताज़ी पकी रोटियों के साथ घर का बना खाना खाते हैं.

हालांकि, इस फैमिली बिजनेस में महिलाओं की अनुपस्थिति स्पष्ट रूप से दिखती है. जब पूछा गया कि ऐसा क्यों है तो इसका उत्तर मिला कि “वे शादी करके अपना परिवार शुरू करना चाहते थे”.

आगे का रास्ता

कंपनी के एक युवा निदेशक श्याम भाई विरानी ने कहा कि बालाजी का महत्त्व इस बात में है कि एक छोटी कंपनी जो जमीनी स्तर से विकसित हुई है, वह उस समाज को पहचानती है और उससे जुड़ती है जिसमें वह स्थित है, बड़ी कंपनियों को नहीं.

उन्होंने कहा, “मेरे माता-पिता की पीढ़ी ने अपने जीवन का बेहतर हिस्सा किसानों के रूप में काम करके बिताया. वे (बालाजी) जानते हैं कि उनके साथ रिश्ता कैसे बनाना है, उन्हें कैसे मनाना है, यह सुनिश्चित करना है कि उन्हें नुकसान न हो. किसानों को कागजात या अनुबंध के माध्यम से आश्वस्त नहीं किया जा सकता है. आपको बस अपना कमिटमेंट पूरा करना है. अगर कुछ भी गलत होता है और कीमतों में उतार-चढ़ाव होता है, तो आपको उनके साथ खड़ा होना होगा.”

श्याम कंपनी में नई पीढ़ी में से एक हैं जो डाइवर्सिफिकेशन और ऐडवर्टाइज़िंग के माध्यम से इसमें नई जान फूंक रहे हैं.

कंपनी ने हाल ही में ‘नाचोस’ को एक उत्पाद के रूप में लॉन्च किया है, और विरानी ने कहा कि वह हेल्दी स्नैक सेक्टर में उतरने के खिलाफ नहीं हैं, क्योंकि इसकी काफी डिमांड है.

अब तक, बालाजी वेफर्स ने मार्केटिंग पर काफी कम खर्च किया है, जिससे उत्पादन सस्ता था, जिसका लाभ उन्होंने उपभोक्ताओं को दिया है – उनके पैकेट में अधिक चिप्स और कम हवा होती है.

“मैंने मार्केटिंग नहीं की, मेरे पास बिक्री लक्ष्य नहीं थे. चंदूभाई विरानी ने कहा, मैंने इन सभी चीजों की लागत में कटौती की और अपने प्रतिद्वंद्वी के समान कीमत पर अधिक की पेशकश की.

अब जब डिजिटल मीडिया टेलीविजन की तुलना में अधिक लक्षित, कम खर्चीले अभियानों की अनुमति दे रहा है, तो बालाजी ने विज्ञापन बनाना शुरू कर दिया है. विरानी ने कहा, “अब हम एक छवि बना रहे हैं.”

अनुभवी ने विकास पर ध्यान देने से पहले अपने व्यवसाय की नींव को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने कहा, ”आपकी नींव मजबूत होनी चाहिए.” “व्यवसाय को मजबूत करो. विकास होगा.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में दिखाने के लिए यहां क्लिक करें.)


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