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Saturday, 21 December, 2024
होमदेशअर्थजगतUPA काल के विवादास्पद रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स क़ानून को दफ़नाने के लिए आखिर मान ही गई मोदी सरकार

UPA काल के विवादास्पद रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स क़ानून को दफ़नाने के लिए आखिर मान ही गई मोदी सरकार

इस फ़ैसले से वोडाफोन पीएलसी, केयर्न एनर्जी पीएलसी और इसी तरह के 15 अन्य मामलों में भारत सरकार का कंपनियों के साथ चल रहा विवाद समाप्त हो जाएगा. वित्त मंत्री सीतारमण ने यह माना कि पूर्वव्यापी कर (रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स) का मुद्दा निवेशकों के लिए एक 'कष्टकारी बिंदु' बन गया था.

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नई दिल्ली: इस गुरुवार को नरेंद्र मोदी सरकार 2012 में आयकर अधिनियम (इनकम टैक्स एक्ट) में किए गए पूर्वव्यापी कर से संबंधित विवादास्पद संशोधनों को स्थायी रूप से दफनाने के लिए आखिरकार राज़ी हो गई. इन संशोधनों ने एक निवेशक-हितैषी देश के रूप में भारत की छवि पर प्रतिकूल असर डालता है.

इस बारे में सरकार ने लोकसभा के पटल पर एक विधेयक पेश किया है जिसके तहत आयकर कानूनों में पूर्वव्यापी कर संबंधित संशोधन को समाप्त करने के लिए आयकर अधिनियम, 1961 में संशोधन किया जाना है.

इस विधेयक के पारित हो जाने से वोडाफोन पीएलसी और केयर्न एनर्जी पीएलसी के साथ भारत सरकार के विवाद समाप्त हो सकते हैं. यह इसी प्रकार के 15 अन्य मामलों में भी प्रभावी होगा जिनमें आयकर विभाग ने कर कानूनों में इन पूर्वव्यापी परिवर्तनों के आधार पर अतिरिक्त कर की मांग की थी.

यह विधेयक एक ऐसे समय में पेश किया गया है जब सरकार मध्यस्थता वाले न्यायाधिकरणों में वोडाफोन और केयर्न एनर्जी दोनों के खिलाफ अपना केस हार गई है. केयर्न एनर्जी तो विदेशों में भारतीय संपत्तियों को जब्त करके अपने 1.7 बिलियन डॉलर की क्षतिपूर्ति के लिए आक्रामक रूप से सक्रिय हो रही है.

इस विधेयक के उद्देश्यों और कारणों से संबंधित कथन/बयान (स्टेट्मेंट ऑफ ऑब्जेक्ट्स आंड रीज़न्स) में, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि पूर्वव्यापी कर का प्रावधान निवेशकों के लिए एक ‘कष्टप्रद बिंदु’ साबित हुआ है.


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वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि ‘पिछले कुछ वर्षों में, वित्तीय और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में कई बड़े सुधार शुरू किए गए हैं, जिन्होंने देश में निवेश के लिए एक सकारात्मक वातावरण तैयार किया है. हालांकि, यह पूर्वव्यापी स्पष्टीकरण संशोधन (रेट्रोस्पेक्टिव क्लारीफिकटोरी अमेंडमेंट) और इसके कारण कुछ मामलों में की गई कर की मांग संभावित निवेशकों के लिए एक गंभीर समस्या बनी हुई है.’

उन्होंने आगे यह भी कहा कि ‘देश आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां कोविड-19 महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को तेजी से उबारना समय की जरूरत बन चुकी है और तीव्र आर्थिक विकास एवं रोजगार को बढ़ावा देने में विदेशी निवेश की महत्वपूर्ण भूमिका होती है.‘

2012 में, भारत के तत्कालीन वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने उन शेयरों की बिक्री या हस्तांतरण से संबंधित आयकर अधिनियम को पूर्वव्यापी रूप से बदल दिया, जिनमें वित्तीय लेन-देन तो भारत से बाहर होता है लेकिन उनके तहत आने वाली संपत्ति भारत में स्थित है.

यह संशोधन उसी साल सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिए गये एक प्रतिकूल फैसले को रद्द करने के लिए पेश किया गया था, जिसमें देश की शीर्ष अदालत ने वोडाफोन पीएलसी से जुड़े विदेशी शेयरों की बिक्री से संबंधित लेन-देन पर पूंजीगत लाभ लगाने के आयकर विभाग के कदम के खिलाफ निर्णय दिया था.

इस विवादास्पद संशोधन के बाद से ही भारत स्थानीय अदालतों और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता वाले न्यायाधिकरणों में कई कंपनियों के खिलाफ क़ानूनी लड़ाई लड़ रहा है.

विधेयक में क्या प्रस्तावित किया गया है?

यह विधेयक पूर्ववयापी संशोधन के तहत मौजूदा और भावी (भविष्य मे होने वाली) दोनों तरह की कर की मांगों से संबंध रखता है. इसमें यह प्रस्ताव किया गया है कि इस पूर्वव्यापी संशोधन के तहत भविष्य में उन मामलों में कर की कोई मांग नहीं उठाई जाएगी जिनमें लेन-देन वित्त अधिनियम 2012 के 28 मई 2012 को लागू होने से पहले पूरे कर लिए किए गए थे.

इसके अलावा, ऐसे मामलों में जिनमें 28 मई 2012 से पहले पूरे किए गए लेन-देन पर कर की मांग की गई है, यह मांग कुछ निर्दिष्ट शर्तों को पूरा करने पर रद्द कर दी जाएगी.

इन शर्तों में अदालतों में लंबित पड़े मुकदमे को वापस लेना और इस बारे में वचन देना शामिल है कि मुक़दमे की लागत, इससे हुए नुकसान और ब्याज के लिए कोई अन्य दावा दायर नहीं किया जाएगा. इसके अलावा, विधेयक में करों के रूप में एकत्र की गई राशि को बिना किसी ब्याज के वापस करने का भी प्रस्ताव है.

हालांकि, ये संशोधन 28 मई 2012 के बाद किए गए शेयरों के अप्रत्यक्ष हस्तांतरण (इनडाइरेक्ट ट्रान्स्फर) से जुड़े लेन-देन को इस आयकर अधिनियम के प्रावधानों से छूट नहीं प्रदान करेंगे.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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