नयी दिल्ली, 10 दिसंबर (भाषा) दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में शनिवार को मिले-जुले रुख वाले कारोबार के दौरान सरसों तेल-तिलहन और बिनौला तेल कीमतों में सुधार आया।
शिकागो एक्सचेंज में शुक्रवार रात 0.3 प्रतिशत की तेजी आने तथा सस्ते आयातित तेल के कारण किसानों द्वारा बाजार में कम तिलहन बिकवाली करने के चलते ऐसा हुआ।
सस्ते आयात के कारण जहां सोयाबीन तेल कीमतों में गिरावट आई वहीं सामान्य कारोबार के बीच मूंगफली तेल तिलहन, सोयाबीन तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) और पामोलीन तेल कीमतें पूर्ववत बनी रहीं।
बाजार सूत्रों ने कहा, ‘‘देश में सरसों का उत्पादन बढ़ने के बावजूद पिछले साल खाद्य तेलों के आयात में सालाना आधार पर नौ लाख टन या 6.85 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि सस्ते आयातित तेलों के मुकाबले हमारा देशी तेल खप नहीं रहा है। यह तेल तिलहन मामले में निर्भरता हासिल करने के सपने के लिहाज से देश के लिए कोई अच्छा संकेत नहीं है। समय की जरुरत है कि सरकार की ओर से कोई उपचारात्मक कार्रवाई की जाये।’’
सूत्रों ने कहा कि इस संबंध में सबसे बड़ी दिक्कत बड़ी खाद्य तेल कंपनियों के अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) निर्धारण की प्रथा में छुपा है, जिसका कोई नियम नहीं है।
उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से कोई समूह बनाकर बाजार में मॉल या बड़ी दुकानों में जाकर सूरजमुखी, मूंगफली, सोयाबीन रिफाइंड, सरसों आदि खाद्यतेलों के भाव की जांच करनी चाहिये। इस पहलू पर भी ध्यान देना चाहिए कि किसानों से तिलहन की खरीद किस भाव पर की गई थी या बंदरगाह पर इसके आयातित तेल का थोक भाव क्या है।
उन्होंने कहा कि तेल कीमतों के बढ़ने की खबरों के आने पर सरकार जब तेल कंपनियों को कीमतें कम करने के लिए कहती है, तो पहले से 60-100 रुपये के बढ़े हुए एमआरपी में लगभग 15 रुपये प्रति लीटर की कमी करके ये कंपनियां वाहवाही लूटने से पीछे नहीं रहतीं।
सूत्रों ने कहा कि सरकार को एमआरपी निर्धारित करने का कोई स्पष्ट तरीका निर्धारित करना चाहिये।
सूत्रों ने कहा कि यदि खाद्य तेल सस्ता होता है तो पशुचारे में उपयोग होने वाले ‘खल’ और मुर्गीदाने में उपयोग होने वाले डीआयल्ड केक (डीओसी) और भी महंगे हो जाते हैं। संभवत: इसी कारण से दूध, मक्खन, घी, अंडे, चिकेन आदि के दामों में वृद्धि देखी जा रही है, जिसका खुदरा महंगाई पर सीधा असर होता है। इस मसले की ओर गंभीरता से ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि देश के प्रमुख खाद्यतेल संगठनों की यह बात एकदम सही है कि पामोलीन पर अधिक और सीपीओ पर कम आयात शुल्क लगाया जाना चाहिये। साथ ही देश के छोटे तेल तिलहन उद्योग की समस्याओं की ओर भी ध्यान देना चाहिये, जो सस्ते आयातित तेलों के आगे बेबस होकर अपना कारोबार बंद होने के संकट से जूझ रहे हैं।
सूत्रों ने कहा कि अगर आयातित सस्ते तेलों पर आयात शुल्क नहीं लगाया गया तो अगले महीने सूरजमुखी की बिजाई और उसके बाद आने वाली सरसों फसल की खपत प्रभावित होगी।
शनिवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:
सरसों तिलहन – 7,075-7,125 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली – 6,410-6,470 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 15,000 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली रिफाइंड तेल 2,415-2,680 रुपये प्रति टिन।
सरसों तेल दादरी- 14,050 रुपये प्रति क्विंटल।
सरसों पक्की घानी- 2,130-2,260 रुपये प्रति टिन।
सरसों कच्ची घानी- 2,190-2,315 रुपये प्रति टिन।
तिल तेल मिल डिलिवरी – 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 12,900 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 12,850 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 11,150 रुपये प्रति क्विंटल।
सीपीओ एक्स-कांडला- 8,500 रुपये प्रति क्विंटल।
बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 11,450 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,000 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन एक्स- कांडला- 9,000 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।
सोयाबीन दाना – 5,550-5,650 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन लूज 5,360-5,410 रुपये प्रति क्विंटल।
भाषा राजेश राजेश पाण्डेय
पाण्डेय
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