नयी दिल्ली, पांच नवंबर (भाषा) इस्पात उत्पाद विनिर्माता मदर इंडिया फॉर्मिंग (एमआईएफ) के निदेशक धीरेंद्र सांखला ने कहा कि भारत उच्च मूल्य वाले ‘कोल्ड रोल्ड स्टील कंपोनेंट’ और अन्य मूल्यवर्धित वस्तुओं का निर्यात करके वैश्विक बाजारों में उच्च शुल्क के प्रभाव को कम कर सकता है।
एमआईएफ, कस्टमाइज्ड स्टील ट्यूब और प्रोफाइल बनाती है।
अमेरिका ने भारतीय इस्पात पर शुल्क बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया है जबकि यूरोपीय संघ नए शुल्क का प्रस्ताव कर रहा है। इससे वैश्विक इस्पात व्यापार पर प्रभाव पड़ेगा और ब्रिटेन जैसे देशों के लिए अनिश्चितता उत्पन्न होगी।
सांखला ने कहा, ‘‘ दुनिया ने भारत को ‘मेक इन इंडिया’ की चुनौती दी और भारतीय विनिर्माताओं ने ‘मेड इन इंडिया’ के साथ इसका जवाब दिया जो वैश्विक गुणवत्ता एवं मानकों पर खरा उतरता है। भारत अब इस्पात के गुणवत्तापूर्ण साजो सामान बना कर न केवल इस्पात उत्पादक रह गया है बल्कि यह दुनिया के लिए समाधान प्रदाता बन गया है।’’
‘कोल्ड-रोल शीट’ बनाने में ‘स्टील कॉइल’ को ‘इंजीनियर्ड प्रोफाइल’, ट्यूब व घटकों में परिवर्तित किया जाता है। इन्हें अकसर व्यापारिक उद्देश्यों के लिए अलग-अलग वर्गीकृत किया जाता है जिससे मूल उपकरण विनिर्माताओं (ओईएम) के लिए अधिक ‘डाउनस्ट्रीम’ बचत (आपूर्ति श्रृंखला के अंतिम चरणों से प्राप्त होने वाली संभावित लागत में कमी) होती है।
उन्होंने कहा कि ‘स्लिटिंग’, ‘प्रिसिशन फॉर्मिंग’, ‘सरफेस ट्रीटमेंट’ और ‘प्री-असेंबली’ की पेशकश करके भारतीय निर्यातक कच्चे या अर्ध-तैयार श्रेणियों से (जिन पर आमतौर पर मूल्यानुसार शुल्क लगता है) से तैयार माल की ओर स्थानांतरित हो सकते हैं। इन पर कम प्रभावी शुल्क लगता है और खरीदार अधिक इच्छुक होते हैं जिससे कुल लागत कम हो जाती है।
विश्व इस्पात संघ के अनुसार, भारत 2024 में 14.94 करोड़ टन कच्चे इस्पात का उत्पादन करेगा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बना रहेगा।
‘कोल्ड-रोल स्टील फॉर्मिंग’ एक विनिर्माण प्रक्रिया है जिसके तहत इस्पात को जटिल ‘प्रोफाइल’ और घटकों में आकार दिया जाता है। इससे जिससे संरचनात्मक एवं सुंदर घटकों का उत्पादन संभव होता है जिनका उपयोग उद्योगों की विस्तृत श्रृंखला में किया जाता है।
भाषा निहारिका शोभना
शोभना
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