नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की तरफ से मंगलवार को पेश किए गए आम बजट में डिजिटल हेल्थ और मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष जोर दिया गया. बजट भाषण में इस बात को रेखांकित किया गया है कि कोविड महामारी के कारण उपजी स्थितियों ने मानसिक स्वास्थ्य की समस्या को और बढ़ा दिया है.
कुल मिलाकर, स्वास्थ्य के लिए 2022-23 का बजट अनुमान 86,606 करोड़ रुपये है, जो 2021-222 में 74,602 करोड़ रुपये से 16 प्रतिशत अधिक है – इस बजट में 16 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. चालू वित्त वर्ष के लिए संशोधित अनुमान 85,915 करोड़ रुपये है.
अपने बजट भाषण में हेल्थकेयर के संदर्भ में वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा, ‘महामारी ने हर उम्र वर्ग के लोगों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं बढ़ाई हैं. इसे देखते हुए मेंटल हेल्थकेयर और काउंसलिंग जैसी सुविधाओं की बेहतर पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एक नेशनल टेलीमेंटल हेल्थ प्रोग्राम शुरू किया जाएगा. इसके तहत 23 उत्कृष्ट टेली मेंटल हेल्थ सेंटर का एक नेटवर्क स्थापित किया जाएगा, जिसका नोडल सेंटर निमहांस को बनाया जाएगा और इसके लिए टेक्नोलॉजी सपोर्ट इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इनफॉर्मेशन सेंटर बेंगलुरु की तरफ से प्रदान किया जाएगा.’
भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति पर 2019 के एक पेपर में अनुमान लगाया गया था कि 2017 में करीब 19.7 करोड़ लोग यानी हर सात में से एक भारतीय अलग-अलग तरह के गंभीर मानसिक विकारों से पीड़ित था. इनमें अवसाद, एंजाइटी, सिजोफ्रेनिया, बाइपोलर डिसऑर्डर, आइडियोपैथिक डेवलपमेंटल इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी, कंडक्ट डिसऑर्डर और आटिज्म आदि शामिल हैं.
उन्होंने नेशनल डिजिटल हेल्थ इकोसिस्टम के लिए एक खुला मंच शुरू करने की भी घोषणा की. सीतारमण ने कहा, ‘स्वास्थ्य प्रदाताओं और स्वास्थ्य केंद्रों की डिजिटल रजिस्ट्री के साथ इसके जरिये विशिष्ट स्वास्थ्य पहचान, सहमति का फ्रेमवर्क और स्वास्थ्य सुविधाओं तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित हो सकेगी.’
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कोविड ने मानसिक स्वास्थ्य की समस्या बढ़ाई
महामारी के दौरान अलग-थलग पड़ने, रोजमर्रा के कामकाज में व्यवधान और जीवन के अन्य तमाम तनावों के कारण मानसिक स्वास्थ्य व्यापक स्तर पर प्रभावित होता है और कोविड के संदर्भ में इस जोखिम का अनुमान लगाकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मानसिक स्वास्थ्य की अहमियत को रेखांकित किया था.
अगस्त 2021 में पीएलओएस वन में एक लेख में आईआईएम इंदौर के शोधकर्ताओं ने लिखा था, ‘सामान्य तौर पर मानसिक स्वास्थ्य और इससे जुड़े मुद्दों को सार्वजनिक तौर पर स्वीकारा नहीं जाता है, और वैश्विक महामारी के दौरान ‘ढके-छिपे’ रहने वाले और गंभीर किस्म के इन मुद्दों की अनदेखी हो सकती है. किसी जगह विशेष तक सीमित होना, आवाजाही बंद होना, घबराहट में खरीदारी, आय के स्रोत बंद होना, खुद को न्यू नॉर्मल परिस्थितियों में ढालना और स्थितियों में बढ़ती अस्पष्टता कुछ ऐसे सामूहिक अनुभव थे, जिन्होंने लॉकडाउन के दौरान आम तौर पर सभी लोगों को प्रभावित किया है (12).
कोविड-19 महामारी के कारण अतिरिक्त तनाव ने सामान्यत: लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति को और बिगाड़ उन्हें मनोविकारों की ओर धकेला है. अध्ययनों से पता चला है कि कोविड-19 के कारण बढ़े अवसाद और एंजाइटी का नतीजा खराब मानसिक स्वास्थ्य (13), आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ने, पहले से ही खराब मानसिक स्वास्थ्य और बिगड़ने (15) आदि के तौर पर सामने आया है. इसके कारण पारिवारिक रिश्तों और सामाजिक तानेबाने पर तो प्रतिकूल असर पड़ा ही है (16), घरेलू हिंसा के मामले और शराब का सेवन भी बढ़ा है.’
दिलचस्प बात यह भी है कि भारत में ऐसी स्वास्थ्य बीमा योजनाएं शुरू हुई हैं जिनमें मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी कवरेज दी जाती है.
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