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Friday, 15 November, 2024
होमदेशअर्थजगत2022 के पहले 9 महीनों में भारत का लैपटॉप आयात बढ़कर 500 करोड़ डॉलर पहुंचा, करीब 73% चीन से मंगाए गए

2022 के पहले 9 महीनों में भारत का लैपटॉप आयात बढ़कर 500 करोड़ डॉलर पहुंचा, करीब 73% चीन से मंगाए गए

साल 2017 से भारत में कुल लैपटॉप आयात का 75 प्रतिशत चीन से है. लेकिन अब सरकार और ज्यादा इंपोर्टिंग पार्टनर्स की लिस्ट को बढ़ाना चाह रहा है.

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नई दिल्ली: 2022 के पहले नौ महीनों में भारत का लैपटॉप आयात बढ़कर 5.24 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया है और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की तरफ से जारी नवीनतम आंकड़े दर्शाते हैं कि इसमें से करीब तीन-चौथाई को चीन से मंगाया गया.

आंकड़ों के मुताबिक, 2021 की पहली तीन तिमाहियों में भारत ने 4.65 अरब डॉलर के लैपटॉप इंपोर्ट किए थे, जिसमें इस साल इसी अवधि में 12.8 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है.

इसके साथ ही, 2022 के पहले नौ महीनों में भारत ने अकेले चीन से लगभग 3.82 बिलियन डॉलर के लैपटॉप आयात किए हैं. यह आंकड़ा इस वर्ष अब तक भारत के कुल लैपटॉप आयात का 72.9 फीसदी है और 2021 में इसी अवधि के दौरान चीन से आयातित 3.5 बिलियन डॉलर मूल्य के लैपटॉप की तुलना में लगभग 9 प्रतिशत अधिक है.

दिप्रिंट ने पूरी तरह निर्मित लैपटॉप (पर्सनल कंप्यूटर, लैपटॉप, पामटॉप) से संबंधित विशिष्ट डेटा देखा और पाया कि चीन से पूरी तरह निर्मित आयातित वस्तुओं में इनकी हिस्सेदारी सबसे अधिक है.

पिछले पांच वर्षों का डेटा देखने पर पता चलता है कि 2017 के बाद भारत में आयातित लैपटॉप में से लगभग 75 प्रतिशत चीन निर्मित रहे हैं.

भारत ने इस अवधि में दुनिया भर से 23.65 अरब डॉलर के लैपटॉप का आयात किया, जिसमें से 18.13 अरब डॉलर के लैपटॉप चीन से आए थे. दूसरे शब्दों में कहें तो पिछले पांच वर्षों के दौरान भारत में आयातित हर चार में से तीन लैपटॉप चीन से आए हैं.

बहरहाल, भारत के कुल लैपटॉप आयात में चीन की हिस्सेदारी अब घटने लगी है. 2017 में भारत के कुल लैपटॉप आयात में चीन की हिस्सेदारी 94.2 प्रतिशत थी, और पिछले तीन वर्षों में यह आंकड़ा घटकर लगभग 73 प्रतिशत रह गया है.

तो, वे नए क्षेत्र कौन-से हैं जहां से भारत लैपटॉप खरीद रहा है? इनमें अधिकांश चीन से बहुत दूर नहीं हैं.

क्रेडिट: दिप्रिंट टीम

भारत अब हांगकांग (0.55 अरब डॉलर), ताइवान (0.12 अरब डॉलर), सिंगापुर (0.62 अरब डॉलर) और वियतनाम से भी बड़ी संख्या में लैपटॉप खरीद रहा है. 2022 की पहली तीन तिमाहियों में सामूहिक तौर पर इन देशों से करीब 1.29 बिलियन डॉलर के लैपटॉप आयात किए गए जो कि भारत के कुल लैपटॉप आयात का करीब एक चौथाई हिस्सा है. पांच साल पहले, 2017 में भारत के लैपटॉप आयात में इन देशों की हिस्सेदारी 5 प्रतिशत भी नहीं थी.

लगातार बढ़ रही मांग

सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि पर्सनल कंप्यूटर की अपनी बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भारत एक लंबे अरसे से ही चीन पर निर्भर है. ऐसे में दो सवाल उठना लाजिमी है—भारत को इन मशीनों के आयात की जरूरत आखिर क्यों है और इन्हें चीन से ही आयात क्यों किया जा रहा है?

सूचना और संचार प्रौद्योगिकी से जुड़े ताइपे-स्थित थिंक टैंक मार्केट इंटेलिजेंस एंड कंसल्टिंग इंस्टीट्यूट के मुताबिक, दूसरे सवाल का जवाब देना थोड़ा आसान है. 2019 में ग्लोबल नोटबुक पीसी बाजार 160 मिलियन यूनिट का था, जिसमें 90 प्रतिशत तक चीन निर्मित थे.

कोविड-19 महामारी के मद्देनजर चीन की तरफ से लागू किए गए सख्त लॉकडाउन के कारण बाद के वर्षों का डेटा उपलब्ध नहीं है. हालांकि, यह संभावना नहीं दिखती है कि इतनी कम अवधि में लैपटॉप निर्माण में देश की हिस्सेदारी में कोई बहुत बड़ी कमी आई होगी. इसलिए, समझा जा सकता है कि अगर भारत को लैपटॉप आयात करने की आवश्यकता है, तो वह उन्हें चीन से ही आयात करेगा.

गौरतलब है कि घरेलू स्तर पर कोविड-19 महामारी के दौरान और उसके बाद भी वर्क फ्रॉम होम और ऑनलाइन सीखने-पढ़ने का चलन बढ़ने से पोर्टेबल पर्सनल कंप्यूटर की मांग बढ़ी है.

अमेरिका स्थित टेलीकॉम एंड कंज्यूमर टेक मार्केटिंग इंटेलिजेंस कंपनी इंटरनेशनल डेटा सेंटर (आईडीसी) की ओर से खास तौर पर दिप्रिंट के साथ साझा किए गए डेटा का विश्लेषण बताता है कि भारत का नोटबुक बाजार पिछले पांच वर्षों में दोगुने से अधिक हो गया है. यह खासकर 2020 और 2021 में महामारी के पीक के दौरान बढ़ा.

क्रेडिट: दिप्रिंट टीम

अपनी शब्दावली में लैपटॉप के लिए ‘नोटबुक’ शब्द का इस्तेमाल करने वाले आईडीसी के आंकड़ों के मुताबिक, भारत का नोटबुक बाजार 2017 में 3.97 बिलियन डॉलर का था, जो 2018 में 16 प्रतिशत (4.6 बिलियन डॉलर तक पहुंचा) और 2019 में 5 प्रतिशत (4.8 अरब डॉलर तक) बढ़ा.

2020 में देश का नोटबुक बाजार 19.5 प्रतिशत बढ़कर 5.8 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया. हालांकि, बाजार में वास्तविक उछाल 2021 में देखने को मिला जब यह लगभग 60 प्रतिशत बढ़कर 9.3 बिलियन डॉलर हो गया.

ये आंकड़े उस राशि को दर्शाते हैं जो आयातकर्ताओं ने राष्ट्रीय वितरकों से वसूली, जो देश में आयातित शिपमेंट के पहले प्राप्तकर्ता होते हैं.

इस साल भी, पहली तीन तिमाहियों (नौ महीने) में नोटबुक का बाजार 7.4 अरब डॉलर रहने का अनुमान है. यदि रुझान पहले की तरह ही जारी रहे तो यह पहला मौका होगा जब इस साल देश में लैपटॉप आयात 10 बिलियन डॉलर के पार पहुंच जाएगा.


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मेक इन इंडिया क्यों नहीं?

आईडीसी इंडिया के सीनियर मार्केट एनालिस्ट भरत शेनॉय ने दिप्रिंट को बताया कि भारत में स्थानीय स्तर पर लैपटॉप निर्माण काफी कम है, हालांकि, सूरत बदलने की पूरी गुंजाइश बनी हुई है.

शेनॉय ने कहा, ‘सरकार कंपनियों को अपने संसाधनों के लोकलाइजेशन और भारत में ही लैपटॉप बनाने के बदले इंसेटिव स्कीम की सुविधा देती है, लेकिन अभी घरेलू स्तर पर उत्पादित लैपटॉप की हिस्सेदारी न्यूनतम है. हम आने वाले कुछ वर्षों में इन योजनाओं के नतीजे सामने आने की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन फिलहाल बड़े पैमाने पर कुछ नहीं बदलने जा रहा.’

उन्होंने बताया कि इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि बड़े पैमाने पर लैपटॉप उत्पादन के लिए देश में विशेष रूप से कुशल श्रम की उपलब्धता जरूरी है.

उन्होंने कहा, ‘हमारे पास लो-एंड लैपटॉप पर काम करने के लिए कुछ असेंबली लाइन हैं, लेकिन प्रीमियम सेगमेंट के लिए हमें आयात पर निर्भर रहना पड़ता है.’

भारत का स्थानीय स्तर पर लैपटॉप निर्माण के जरिये अपनी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम न हो पाना, पूर्व में हस्ताक्षरित व्यापार समझौतों में भी निहित है.

1997 में भारत ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सूचना प्रौद्योगिकी समझौते (आईटीए) पर हस्ताक्षर किए थे. ऐसा करके उसने देश में आयातित पूरी तरह निर्मित लैपटॉप पर कोई टैरिफ और ड्यूटी न लगाने पर सहमति जताई थी. उस समय, यह परिकल्पना की गई थी कि ऐसी नीति से विकासशील देशों को लाभ होगा जो आईटी उत्पादों के व्यापार से लाभ उठा सकते हैं.

हालांकि, जैसा भारत सरकार बाद में कहती रही है कि, इस समझौते को लेकर हमारा अनुभव ज्यादा सकारात्मक नहीं रहा.

2012 में, आईटीए की 15वीं सालगिरह पर एक संगोष्ठी में भारत ने ‘विकासशील देश के अनुभव’ को रेखांकित करते हुए एक प्रस्तुति दी, जिसमें कहा गया कि समझौता वास्तव में तकनीकी एकाधिकार की वजह बन गया है, जिससे भारत का व्यापार घाटा बढ़ा, नवाचार बाधित हुआ और इस क्षेत्र में नए खिलाड़ियों का आना भी बेहद कठिन हो गया.

2015 में विश्व व्यापार संगठन ने आईटीए-2 पर हस्ताक्षर के लिए विभिन्न देशों को आमंत्रित किया, जो मुक्त व्यापार के लिए आईटी उत्पादों की श्रेणी के विस्तार से संबंधित है. लेकिन भारत ने इसके लिए साइन अप न करने का फैसला किया.

इस मामले पर वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की वेबसाइट कहती है, ‘आईटीए के साथ भारत का अनुभव बेहद निराशाजनक रहा है, जिसने भारत से आईटी उद्योग को लगभग खत्म कर दिया.’

इसमें कहा गया है, ‘इस समझौते से सही मायने में फायदा चीन को ही हुआ है, जिसने 2000-2011 के बीच वैश्विक बाजार में अपनी हिस्सेदारी 2 फीसदी से बढ़ाकर 14 फीसदी कर ली.’

मंत्रालय का कहना है, ‘इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मैन्युफैक्चरिंग के लिए एक उपयुक्त माहौल बनाने की दिशा में सरकार की तरफ से किए गए प्रयासों को देखते हुए अब यह हमारे लिए प्रतिस्पर्धा को अनुचित दबावों से मुक्त रखकर इस उद्योग को इनक्यूबेट करने का समय है. इसी के मद्देनजर और घरेलू आईटी उद्योग की राय को ध्यान में रखते हुए फिलहाल आईटीए के विस्तार संबंधी वार्ता में हिस्सा न लेने का फैसला किया गया है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रावी द्विवेदी)
(संपादन: अलमिना)


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