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Sunday, 24 November, 2024
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गेहूं की तरह ‘हॉट’ नहीं है चावल की मांग, तो क्या इसकी सप्लाई पर भी लग सकता है बैन?

सारी दुनिया इस बात को लेकर चिंतित है कि भारत गेहूं के बाद चावल के निर्यात को भी प्रतिबंधित कर सकता है, जिससे इसकी कीमतें बढ़ सकती हैं और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के हालात बिगड़ सकते है.

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नई दिल्ली: मई की एक शुक्रवार की शाम को जब भारत ने घरेलू खपत के लिए कीमतों को काबू में रखने के मकसद से गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, तो वैश्विक बाजारों में हलचल मच गई. इसके साथ ही इस बात की उम्मीद धराशायी हो गई कि भारत, जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है, वह रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से आपूर्ति में आए ख़ालीपन के एक बड़े हिस्से की भरपाई कर देगा. 16 मई को वीकेंड के बाद व्यापार के फिर से शुरू होने पर शिकागो व्हीट एक्सचेंज अपने अधिकतम अनुमति प्राप्त स्तर से भी ऊपर चला गया.

सारी दुनिया अब इस बात को लेकर चिंतित है कि भारत गेहूं के बाद चावल के निर्यात को भी बैन कर सकता है, जिससे इसकी कीमतें बढ़ सकती हैं और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के हालात बिगड़ सकते है. अब तक, चावल एकमात्र खाद्य उत्पाद है, जो वैश्विक खाद्य कीमतों में 2020 के स्तर की तुलना में मई महीने में आए 60 प्रतिशत के उछाल से बचा रहा है.

और वैश्विक चावल व्यापार में भारत की हिस्सेदारी गेहूं के व्यापार की तुलना में कहीं अधिक है.

यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर (यूएसडीए) के अनुमानों के अनुसार, 2021-22 में वैश्विक गेहूं व्यापार में भारत का योगदान 3.5 प्रतिशत था, लेकिन फिर भी इसके द्वारा लगाए गये प्रतिबंध की प्रतिक्रिया काफ़ी जबरदस्त थी.

चावल के मामले में आंकडें एक अलग ही स्तर पर है. 2021-22 में, भारत ने 21 मिलियन टन चावल का निर्यात किया, जो वैश्विक चावल व्यापार के 40 प्रतिशत के आस-पास है.

नेपाल और मेडागास्कर से लेकर केन्या और इंडोनेशिया तक दुनिया के कई सबसे गरीब, निम्न और मध्यम आय वाले देश भारत से किए जाने वाले सस्ते चावल की आपूर्ति पर ही निर्भर हैं. भारत दुनिया भर के 150 से अधिक देशों में गैर-बासमती किस्म के चावल का निर्यात करता है.

चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष बीवी कृष्ण राव ने कहा कि चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जाने की आशंका अब तक निराधार है. उन्होंने कहा, ‘घरेलू चावल की कीमतें वर्तमान में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से लगभग 10 प्रतिशत कम हैं. इसलिए, चावल के मामले में गेहूं जैसी स्थिति आने की संभावना नहीं है.’

इस साल मार्च-अप्रैल में पड़ी भीषण गर्मी की वजह से गेहूं के उत्पादन में काफ़ी तेज गिरावट आई और इसकी थोक कीमतें एमएसपी से ऊपर चली गईं. सरकार द्वारा अपनी सार्वजनिक खाद्य सुरक्षा योजनाओं के लिए पर्याप्त मात्रा में गेहूं की खरीद में विफल रहने के बाद, उसने मई में इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया.


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मानसून पर है नज़र

जहां गेहूं की बुवाई सर्दियों के महीनों में आमतौर पर सुनिश्चित सिंचाई के साथ की जाती हैं, वहीं चावल का लगभग 40 प्रतिशत इलाक़ा मानसून की बारिश पर निर्भर होता है. जून-सितंबर वाले मानसून का मौसम खरीफ फसलों जैसे अनाज, दलहन और तिलहन के उत्पादन को निर्धारित करता है.

भारत मौसम विज्ञान विभाग से प्राप्त बारिश के आंकड़ों से पता चलता है कि, 1 जुलाई तक, मानसून में लंबी अवधि, या 50 साल के औसत, की तुलना में 6 प्रतिशत की कमी देखी गई है, जिसमें मध्य भारत में 28 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है.

चावल उत्पादित करने वाले शीर्ष 10 राज्यों में, उत्तर प्रदेश (-46 फीसदी), छत्तीसगढ़ (-27 फीसदी) और ओडिशा (-37 फीसदी) में बारिश कम रही है, जबकि असम गंभीर बाढ़ (59 फीसदी अधिक बारिश) की समस्या से जूझ रहा है.

हालांकि, उत्तर प्रदेश (86 प्रतिशत) में सिंचाई के तहत आने वाले चावल का रकबा अधिक है, और चूंकि छत्तीसगढ़, ओडिशा और असम भारत के कुल चावल उत्पादन में पांचवें हिस्से से भी कम का योगदान करते हैं, इसलिए अनिश्चित बारिश का प्रभाव सीमित होने की संभावना है.

कृषि मंत्रालय के अनुमानों से पता चलता है कि मानसून की धीमी प्रगति ने जून में खरीफ फसलों की बुवाई को प्रभावित किया. लेकिन मानसून के आगे बढ़ने के साथ बुवाई में तेजी आने की संभावना है.

शुक्रवार तक विभिन्न खरीफ फसलों के तहत बोया गया रकबा पिछले साल की तुलना में 5 प्रतिशत कम था. धान की बुवाई का रकबा एक साल पहले की तुलना में अब तक 27 प्रतिशत कम है.

राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के राव ने कहा, ‘हमारे पास अभी भी धान की रोपनी और बारिश के लिए समय बचा है.’ उन्होंने यह भी कहा कि भारत में फिलहाल सार्वजनिक एजेंसियों और मिल मालिकों दोनों के पास काफ़ी अधिक मात्रा में चावल का स्टॉक है, जो कीमतों में आई किसी भी तेज बढ़ोतरी को रोकेगा.

जून के मध्य तक, भारत में सार्वजनिक रूप से संजो कर रखे गए चावल का स्टॉक 33 मिलियन टन की आरामदायक स्थिति में था, जो खाद्य सब्सिडी योजनाओं और रणनीतिक भंडार (13.5 मिलियन टन) की आवश्यकता से दोगुने से अधिक था.

कीमतों के रुझान

राव के अनुसार, भारतीय से गैर-बासमती चावल के निर्यात का मूल्य, जिसमें देश के चावल निर्यात का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा शामिल है, वर्ष की शुरुआत से मामूली रूप से $20 प्रति टन की वृद्धि के साथ जून में $350 प्रति टन हो गया.

राव ने कहा, ‘बांग्लादेश द्वारा आयात शुल्क (जून में) में कमी किए जाने के बाद, निर्यात की कीमतों में 2-3 प्रतिशत (उंची मांग की वजह से) की वृद्धि हुई.’ राव ने कहा कि भारत में आया एक अच्छा मानसून कीमतों को काबू में रखेगा.

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन -एफएओ) की वैश्विक खाद्य बाजारों पर जून 2022 की एक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘आयात की जोरदार मांग और आपूर्ति में आई बाधाओं के बीच 2022 की शुरुआत के बाद से अंतरराष्ट्रीय चावल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हुई है, लेकिन मई 2022 में औसत कीमतें अभी भी एक साल पहले की अवधि की तुलना में 1.2 प्रतिशत कम थीं.’

एफएओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे व्यापक रूप से व्यापार की जाने वाली इंडिका किस्मों (जिनके मामले में भारत एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है) की प्रचुर उपलब्धता ने कीमतों में बढ़ोतरी को सीमित कर दिया है.

दिल्ली के व्यापार नीति विश्लेषक एस. चंद्रशेखरन ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय चावल की कीमतें भारत में मानसून के अलावा कई अन्य कारकों पर भी निर्भर करती हैं.

चंद्रशेखरन ने कहा, ‘खाद की उंची कीमतें और श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल जैसे देशों में कम उपभोग उत्पादन को सीमित कर सकता है और वैश्विक चावल की कीमतों को बढ़ा सकता है. वैश्विक बाजारों में भारतीय चावल की जोरदार मांग, विशेष रूप से चीन (जो गैर-बासमती चावल का सबसे बड़ा आयातक है) से, भारत में घरेलू कीमतें बढ़ सकती हैं.’

हालांकि, अगर मानसून में उतार-चढ़ाव होता रहता है, तो दुनिया भर के बाजारों में उथल-पुथल मच सकती है. दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री हिमांशु ने कहा, ‘चावल सहित खरीफ की फसलों पर मानसून का प्रभाव जुलाई के अंत तक ही स्पष्ट होगा.’

हिमांशु ने कहा, ‘भारत के पास सितंबर तक काम चलाने के लिए पर्याप्त स्टॉक है … और इसकी कीमतों को केंद्रीय खाद्य सुरक्षा योजनाओं के तहत मुफ्त और सब्सिडी वाले चावल की पर्याप्त आपूर्ति के साथ नियंत्रित किया गया है.’

मई की शुरुआत में, भारत ने गेहूं के बदले में खाद्य सब्सिडी योजनाओं के तहत लगभग 11 मिलियन टन चावल देने का कदम उठाया , जिससे घरेलू चावल की कीमतें काबू में रहीं.

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि चावल की खुदरा कीमतों में पिछले साल (30 जून तक) की तुलना में 1.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि गेहूं के आटे के मामले में यह 9.4 प्रतिशत था.

फिर भी चावल पर निर्यात प्रतिबंधों के लगाए जाने की आशंका को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है. इस उद्योग के एक अंदरूनी सूत्र, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, ने कहा, ‘यह इस बात पर निर्भर करता है कि आने वाले महीनों में वैश्विक कीमतें और भारत में खाद्य मुद्रास्फीति कैसे आगे बढ़ती है. यदि घरेलू उत्पादन लक्ष्य से कम हो जाता है और भारतीय चावल की जोरदार मांग की वजह से इसकी वैश्विक कीमतों में वृद्धि होती है, तो भारत इसके निर्यात को प्रतिबंधित कर सकता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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