नई दिल्ली: चार दशक पहले, इज़राइल अलग-अलग तरहक की आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहा था- बढ़ती मुद्रास्फीति, प्रति व्यक्ति आय का स्थिर स्तर और आयात पर भारी निर्भरता. 1984 में, इज़राइल की प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद का मूल्य लगभग 6,600 डॉलर था.
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के विश्व आर्थिक आउटलुक डेटाबेस के अनुसार, इज़राइल की प्रति व्यक्ति आय नौ गुना से अधिक बढ़कर 58,273 डॉलर तक पहुंच गई है, जो कतर ($83,890) के बाद मध्य पूर्व में दूसरी सबसे अधिक है. वास्तव में, 2023 की कीमतों में, इज़राइल की प्रति व्यक्ति आय यूनाइटेड किंगडम ($46,370), जर्मनी ($53,800), फ्रांस ($45,190) और सऊदी अरब ($29,920) जैसे कई ‘विकसित’ देशों की तुलना में अधिक है.
इजराइल भी अपने पड़ोसियों के बीच ऊंचा खड़ा है, जिसकी प्रति व्यक्ति आय जॉर्डन ($5,050) से लगभग 11 गुना अधिक है और मिस्र ($3,611) और लेबनान ($4,136) से लगभग 14 गुना अधिक है.
1990 के दशक के उत्तरार्ध से वार्षिक मुद्रास्फीति दर भी एकल अंक में बनी हुई है, और अपेक्षाकृत अमित्र पड़ोस के बावजूद, यह एक निर्यात-अधिशेष देश बन गया है.
तो, इज़राइल इतना बड़ा, इतनी तेज़ी से कैसे विकसित हो गया? विशेषज्ञ देश की सफलता की कहानी का श्रेय आर्थिक संकट के बाद उठाए गए कदमों, अनुसंधान एवं विकास में भारी निवेश, प्रौद्योगिकी के निर्यात और “कुछ भाग्य” को देते हैं.
आईएमएफ वर्किंग पेपर में कहा गया है, “12 महीने की मुद्रास्फीति दर 1985 के मध्य में 450 प्रतिशत से गिरकर 1986 की शुरुआत तक 20 प्रतिशत हो गई. वास्तव में, इज़राइल का स्थिरीकरण कार्यक्रम रिकॉर्ड पर सबसे सफल में से एक है.”
फ़ोन पर दिप्रिंट से बात करते हुए, तेल अवीव विश्वविद्यालय में साइबर, राजनीति और सरकार में मास्टर कार्यक्रम के व्याख्याता और अकादमिक सलाहकार, प्रोफेसर तोमर फैडलॉन ने कहा: “इज़राइल एक ऐसे राष्ट्र की सफलता की कहानी है जिसने संसाधनों की गंभीर कमी का सामना किया. यह वह कमी है जो आर्थिक संकट के साथ जुड़ी हुई है जिसने हमें बेहतर और उससे आगे की ओर देखने और आगे बढ़ने के रास्ते तलाशने पर मजबूर किया है. दुर्लभ संसाधनों ने हमें कड़ी मेहनत करने के लिए मजबूर किया, और यह उसके बाद मिली सभी आर्थिक सफलताओं का सार है.”
संकट से विकास तक
1980 के दशक की शुरुआत में, इज़राइल की सरकार बहुत अधिक खर्च कर रही थी, ज्यादातर रक्षा पर, और इस प्रकार अर्थव्यवस्था भारी घाटे में चल रही थी.
आईएमएफ वर्किंग पेपर में कहा गया है कि इज़राइल में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात के रूप में सार्वजनिक ऋण लगभग 125 प्रतिशत था, जो 1985 तक बढ़कर 157 प्रतिशत हो गया. सरल शब्दों में, इजरायली सरकार का बकाया पैसा उस समय देश के उत्पादन मूल्य से लगभग 50-60 प्रतिशत अधिक था.
1985 में, इज़राइली सरकार ने स्थिति को सुधारने के लिए आर्थिक सुधार करने का निर्णय लिया – जो देश के आर्थिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया.
आईएमएफ वर्किंग पेपर के अनुसार, देश ने सामाजिक क्षेत्र (खाद्य और परिवहन) में सब्सिडी कम करके अपने खर्च में कटौती की, अपने रक्षा व्यय को कम किया और राजकोषीय घाटे को काफी हद तक कम किया.
देश में किए गए कई सुधारों के साथ, इसने अपनी मुद्रा, शेकेल का भी अवमूल्यन किया, और अपने केंद्रीय बैंक – बैंक ऑफ इज़राइल – को अधिक शक्ति दी, जो ऋण आपूर्ति को नियंत्रित करता था.
परिणाम 1986 से ही दिखने लगे थे, जब मुद्रास्फीति की दर गिरकर लगभग 23 प्रतिशत हो गई थी. प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद भी काफी तेजी से बढ़ने लगा.
आईएमएफ के रिकॉर्ड बताते हैं कि इज़राइल की प्रति व्यक्ति जीडीपी (मौजूदा कीमतों पर) 1986 में लगभग 8,000 डॉलर थी, जो 1996 तक बढ़कर लगभग 20,000 डॉलर हो गई.
अगले 10 वर्षों में, इज़राइल की प्रति व्यक्ति जीडीपी उतनी तेज़ी से नहीं बढ़ी, और 2006 में यह $22,700 के आसपास मंडरा रही थी, आंशिक रूप से क्योंकि इज़राइली अर्थव्यवस्था ने 2000 के दशक की शुरुआत में मंदी में प्रवेश किया था.
आईएमएफ के रिकॉर्ड के अनुसार, हालांकि, 2016 तक, देश की प्रति व्यक्ति जीडीपी बढ़कर 37,000 डॉलर हो गई और अगले पांच वर्षों में यह 52,000 डॉलर तक पहुंच गई.
अनुसंधान एवं विकास, उच्च तकनीक निर्यात और कुछ ‘भाग्य’
फैडलॉन ने बताया कि इज़राइल के 1985 के आर्थिक उदारीकरण के कई सकारात्मक परिणामों में से एक अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) में निवेश था.
उन्होंने बताया, “आर्थिक उदारीकरण के बाद, इज़राइल ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए द्वार खोल दिए, और सुरक्षा और रक्षा पर सरकारी खर्च जीडीपी के लगभग 25 प्रतिशत से घटकर लगभग 5-6 प्रतिशत हो गया.”
उन्होंने कहा, “अगले दशक (1990 के दशक की शुरुआत) में, इज़राइल ने अनुसंधान और विकास पर बहुत अधिक खर्च किया. नतीजतन, सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में अनुसंधान एवं विकास पर खर्च नाटकीय रूप से बढ़कर 5 प्रतिशत हो गया और इज़राइल और अन्य देशों के बीच एक अंतर पैदा हो गया.”
2006 के बाद इज़राइल की प्रति व्यक्ति आय में उछाल का श्रेय देश द्वारा विदेशों में उच्च गुणवत्ता वाली प्रौद्योगिकी को बड़ी मात्रा में निर्यात करने को दिया जा सकता है.
यूएन कॉमट्रेड (वैश्विक व्यापार आंकड़ों का भंडार) के अनुसार, उच्च प्रौद्योगिकी निर्यात “उच्च अनुसंधान एवं विकास तीव्रता वाले उत्पाद हैं, जैसे एयरोस्पेस, कंप्यूटर, फार्मास्यूटिकल्स, वैज्ञानिक उपकरण और विद्युत मशीनरी.”
डेटा 2007 से रिपॉजिटरी पर उपलब्ध है. उस वर्ष, इज़राइल का उच्च-तकनीकी निर्यात $ 3.12 बिलियन का था, जो इसके निर्मित निर्यात का 8 प्रतिशत था. 2008 में यह बढ़कर $10 बिलियन (17 प्रतिशत) हो गया. 2009 से 2014 तक यह आंकड़ा 18 से 20 प्रतिशत के बीच रहा और 2015 से 2019 के बीच लगभग 23 प्रतिशत रहा.
हालांकि, 2020 के बाद से, इज़राइल के उच्च-तकनीकी निर्यात में वास्तव में वृद्धि हुई है. 2021 में, इज़राइल ने $17 बिलियन मूल्य की उच्च प्रौद्योगिकी का निर्यात किया, जो उसके निर्मित निर्यात का लगभग एक तिहाई था – चीन के निर्मित निर्यात में ऐसे सामानों की हिस्सेदारी के लगभग बराबर था.
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के आंकड़ों से पता चलता है कि, 1996 में, अनुसंधान एवं विकास पर इज़राइल का खर्च उसके सकल घरेलू उत्पाद का 2.6 प्रतिशत था. उस समय, यह अमेरिका (2.4 प्रतिशत), यूके (1.7 प्रतिशत) और चीन (0.57 प्रतिशत) से अधिक था.
ओईसीडी के अनुमान के अनुसार, 2021 तक, आर एंड डी पर इज़राइल का खर्च सकल घरेलू उत्पाद का 5.6 प्रतिशत हो गया था – जो दुनिया में सबसे अधिक है – इसके बाद दक्षिण कोरिया (4.9 प्रतिशत) और ताइवान (3.8 प्रतिशत) का स्थान है.
फैडलॉन ने कहा, “हम भाग्यशाली थे कि हमने दूसरों से पहले अनुसंधान पर खर्च किया और जब तक सूचना प्रौद्योगिकी का विकास हुआ, हम पहले ही तुलनात्मक लाभ हासिल कर चुके थे, वह भी सीमा पार व्यापार के बिना, क्योंकि अधिकांश सेवाओं के निर्यात प्रकृति में अमूर्त हैं.”
वो कहते हैं, “वस्तुओं में व्यापार के विपरीत, सेवाओं में व्यापार हाल के वर्षों में नाटकीय रूप से बढ़ रहा है.”
विश्व बैंक के डेटा से पता चलता है कि सेवाएँ अब इज़राइल की जीडीपी का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा हैं और फैडलॉन के अनुसार, इज़राइली कंपनियां दुनिया में कुल साइबर सुरक्षा निर्यात का लगभग एक तिहाई हिस्सा बनाती हैं.
यह इज़राइल के पड़ोस के विपरीत है, जिसमें ज्यादातर तेल निर्यातक देश शामिल हैं.
जब इज़राइल के लगभग निकटतम पड़ोसी, सऊदी अरब की बात आती है, तो 2010 से 2020 तक उच्च तकनीक निर्यात में इसकी हिस्सेदारी इसके कुल निर्मित निर्यात का 1 प्रतिशत भी नहीं थी.
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: आंखें नम करती, दिल पिघलाती, इंसान बने रहने की सीख देती है फिल्म ‘2018’