उपभोक्ता कीमत सूचकांक (सीपीआई) में साल के हिसाब से हुए परिवर्तन द्वारा मापी जाने वाली खुदरा महंगाई अक्तूबर में 6.7 फीसदी से घटकर नवंबर में 5.88 फीसदी हो गई. इस साल जनवरी से यह 6 फीसदी की ऊपरी सीमा से ऊपर रही थी, और अब पहली बार इस अंक से नीचे गई.
यह गिरावट खाद्य पदार्थों की कीमतों में नरमी के कारण हुई. उनकी कीमतों में कमी सब्जियों की कीमतों में गिरावट के कारण हुई, हालांकि अनाजों और दूध की कीमतें ऊंची बनी हुई हैं.
ईंधन की महंगाई ने पिछले कुछ महीनों में आ रही नरमी को उलट दिया. नवंबर में यह पिछले महीने के 9.9 फीसदी के स्तर से बढ़कर 10.6 फीसदी हो गई. ‘मूल’ (कोर) मुद्रास्फीति 6 फीसदी से ऊपर बनी रही.
नवंबर में महंगाई में कमी इसलिए भी दिखी क्योंकि पिछले नवंबर में सीपीआई का आंकड़ा ऊंचा था और उसका असर (‘बेस इफेक्ट’) इस पर पड़ा था.
अनुकूल ‘बेस इफेक्ट’ का लाभ आगामी महीनों में नहीं मिल सकता है. खाद्य पदार्थों की कीमतों में नरमी आई मगर अनाजों की कीमतें बढ़ने के कारण ‘कोर’ मुद्रास्फीति यथावत रही.
सब्जियों की महंगाई नवंबर में 8 फीसदी पर आ गई. जाड़े का मौसम आते ही सब्जियों के भाव कम हो जाते हैं. लेकिन गेहूं और चावल की कीमतों में वृद्धि के कारण अनाजों की महंगाई अक्तूबर में 12 फीसदी से बढ़कर नवंबर में 13 फीसदी हो गई.
गेहूं की महंगाई अक्तूबर में 17.64 फीसदी से बढ़कर नवंबर में 19.7 फीसदी हो गई, तो चावल की महंगाई इस बीच 10.2 फीसदी से 10.5 फीसदी हो गई.
खराब मौसम के कारण अनाजों की पैदावार प्रभावित हुई है. प्रथम अग्रिम अनुमानों के मुताबिक, खरीफ के मौसम में धान की पैदावार 10.499 करोड़ टन रहने की उम्मीद है.
पिछले साल के इस अनुमान से यह 20 लाख टन कम है. फसल कटाई से पहले तापमान में वृद्धि के कारण गेहूं की पैदावार में भी कमी आई.
दूध और उसके उत्पादों की महंगाई अक्तूबर में 7.7 फीसदी से बढ़कर नवंबर में 8.2 फीसदी हो गई. चारे आदि की कीमतों में वृद्धि के कारण दूध के दाम बढ़े हैं.
देर से आई भारी बारिश ने फसलों को नुकसान पहुंचाया और मवेशियों के चारे आदि में कमी हुई और उनकी कीमतें बढ़ीं. दूध के उत्पादन में चारों आदि का 60-70 फीसदी तक योगदान होता है.
कोर मुद्रास्फीति लगातार तीसरे महीने 6 फीसदी पर स्थिर रही. घरेलू सामान और सेवाओं, स्वास्थ्य, और परिवहन तथा दूरसंचार आदि की मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई लेकिन मनोरंजन, कपड़ों, और जूतों आदि की महंगाई में नरमी देखी गई. कोर मुद्रास्फीति में स्थिरता की वजह यह रही कि मांग में वृद्धि के साथ लागत को उपभोक्ताओं पर थोप दिया गया. कोर मुद्रास्फीति में स्थिरता घरेलू वस्तुओं की ऊंची कीमत में परिलक्षित होती है. अगले एक साल के लिए ‘मीडियन’ मुद्रास्फीति का अनुमान नवंबर में 10.8 के आंकड़े पर कायम था. हालांकि इसमें थोड़ी नरमी आई है लेकिन यह कोविड वाली अवधि में ‘मीडियन’ मुद्रास्फीति के अनुमान के मुक़ाबले ऊंची है.
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क्या राज्यों में महंगाई में कमी दिखती है?
अखिल भारतीय ‘सीपीआई’ मुद्रास्फीति तो 6 फीसदी के नीचे सीपीआई मगर सात बड़े राज्यों (आंध्र प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, और पश्चिम बंगाल) में यह 6 फीसदी से ऊपर रही. अधिकतर राज्यों में, ग्रामीण क्षेत्र में महंगाई शहरी क्षेत्र में महंगाई से ज्यादा रही. तेलंगाना में यह अधिकतम स्तर 7.9 फीसदी पर रही लेकिन अक्तूबर में यह 8.82 फीसदी थी.
अखिल भारतीय स्तर की तरह तेलंगाना में महंगाई में नरमी खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट के कारण आई. कोर मुद्रास्फीति के तत्वों ‘कपड़ों, बिस्तर, जूतों’ और ‘विविध’ तत्वों की महंगाई दहाई अंकों में रही. राष्ट्रीय आंकड़ों की तरह, खाद्य पदार्थों की महंगाई में कमी सब्जियों की कीमतों में कमी के कारण आई. खाद्य पदार्थों में दूध, तेल, घी, मसालों की कीमतें नवंबर में बढ़ीं. मसालों की महंगाई में ने 22 फीसदी के आंकड़े को छू लिया.
राजस्थान में खाद्य पदार्थों की महंगाई सबसे ऊंचे 8.45 फीसदी के स्तर पर थी. सब्जियों की कीमतें तो घटीं लेकिन अनाजों, दूध, दूध के उत्पादों और मसालों की महंगाई दहाई अंक के आंकड़े से ऊपर चली गई. मसाले उगाने वाले राज्य जबकि दूसरी फसलों की ओर मुड़ रहे हैं तब जीरा, धनिया, काली मिर्च आदि के उत्पादन में कमी के कारण उनकी थोक कीमतें भी बढ़ रही हैं. राज्यों की मुद्रास्फीति के आंकड़े जाहिर कर रहे हैं कोर मुद्रास्फीति पर दबाव है. नीचे दी गई तालिका बताती है कि ‘कपड़ों, बिस्तर, जूतों’ की महंगाई कुछ राज्यों में दहाई के आंकड़े में पहुंच गई है.
राज्यों की मुद्रास्फीति के आंकड़ों में फर्क क्यों?
घरेलू उपभोग की चीजें ‘सीपीआई’ के मुख्य तत्व हैं. सीपीआई में किसे कितना महत्व दिया जाएगा यह नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन द्वारा किए गए उपभोक्ता खर्च सर्वे (सीईएस) के आधार पर तय होता है. यह सर्वे देश भर में शहरी तथा ग्रामीण घरेलू उपभोग के स्वरूप के बारे में सूचनाएं इकट्ठा करने के लिए होता है. चालू सीपीआई सीरीज के महत्व 2011-12 (जुलाई 2011 से जून 2012) में हुए सीईएस पर आधारित हैं.
बार-बार खरीदी जाने वाली चीजों—खाद्य तेल, अंडे, मछली, सब्जी, फल, मसाले, पेय पदार्थों, परिष्कृत खाद्य पदार्थों, पान, तंबाकू, और नशे की चीजों—पर अंतिम सात दिनों में; कपड़ों, बिस्तर, जूतों, शिक्षा, अस्पताल, स्थायी सामान, पर अंतिम 365 में; और बाकी खाद्य पदार्थों, ईंधन, बिजली, विविध सामान और सेवाओं, किराया और टैक्स, पर अंतिम 300 दिनों में किए गए खर्च के आंकड़े जमा किए जाते हैं. इन आंकड़ों का उपयोग राज्यों में ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में उपभोक्ता खर्चों का अंदाजा लगाने के लिए किया जाता है.
हर एक राज्य को राष्ट्रीय उपभोक्ता खर्च में उनके हिस्से के हिसाब से वजन दिया जाता है. महाराष्ट्र को 13.18 फीसदी के उसके आंकड़े के साथ सबसे ज्यादा वजन दिया गया है, इसके बाद उत्तर प्रदेश का नंबर है. हर एक राज्य के ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों को भी इसी तरह वजन दिया जाता है. ये वजन और देश भर के निर्धारित बाज़ारों से इकट्ठा की गई चीजों की कीमतों के आधार पर राष्ट्रीय महंगाई का आंकड़ा तय किया जाता है.
(राधिका पाण्डेय नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में कंसल्टेंट हैं)
(संपादनः शिव पाण्डेय )
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