पिछले शनिवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 55वीं जीएसटी परिषद की बैठक के समापन के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की अध्यक्षता की. इसके ज़रिए, उन्होंने अनजाने में एक नया शब्द बोल दिया — ‘पॉपकॉर्न टैक्सेशन’ — और चंद मिनटों में इस पर लाखों मीम्स बना दिए गए.
हालांकि, यह जीएसटी को कमतर आंकने जैसा लग सकता है, लेकिन यह बताता है कि कैसे सिस्टम अब देश में व्यापार करने में आसानी लाने के अपने शुरुआती वादे पर वापस लौट आया है. पॉपकॉर्न पर टैक्स लगाने के बारे में वित्त मंत्री के चार मिनट के स्पष्टीकरण ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सिस्टम कितना जटिल हो गया है. किसी को भी एक प्रोडक्ट पर लागू टैक्स रेट को समझाने में इतना समय नहीं लगना चाहिए.
तब से, जीएसटी का मज़ाक बनाया गया, शोक व्यक्त किया गया और आम लोगों और यहां तक कि इसे लागू करने पर काम करने वाले पूर्व सरकारी अधिकारियों द्वारा भी इसकी आलोचना की गई है. यही कारण है कि भारत का वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दिप्रिंट का न्यूज़मेकर ऑफ द वीक है.
तो, पॉपकॉर्न पर जीएसटी के पीछे क्या मुद्दा है? देखिए, टैक्स अधिकारी के अनुसार, आपके स्वाद के अनुसार, पॉपकॉर्न या तो नमकीन हो सकता है या मीठा — भूल जाइये कि इन दो शब्दों का प्रयोग कभी भी पॉपकॉर्न के लिए नहीं किया गया है.
पैक्ड, लूज और कैरामेलाइज्ड
स्वाद के लिए नमकीन और मसालेदार रेडी-टू-ईट पॉपकॉर्न, जिसे खुला भी बेचा जाता है, उस पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगता है. वही पॉपकॉर्न, अगर पैक और लेबल किया जाता है, तो यही संख्या 12 प्रतिशत हो जाती है. इसमें हैरानी नहीं कि अगर दुकानदार पैकेट को फाड़कर ग्राहक को खुला पॉपकॉर्न बेच दे, तो क्या होगा. शायद ब्रह्मांड फट जाए, कौन जानता है?
जब आप कैरामेल पॉपकॉर्न की बात करते हैं, तो चीज़ें और भी मुश्किल हो जाती हैं. जो लोग इस स्वाद को पसंद करते हैं, उन्हें 18 प्रतिशत जीएसटी देना होगा, चाहे वह पैक किया हुआ हो या खुला बेचा गया हो. फिर कुछ लोग मूवी हॉल जाते हैं और नमकीन और कैरामेल पॉपकॉर्न को एक साथ मिलाकर मांगते हैं. उनके साथ क्या होता है?
इस पूरे हफ्ते, एक खास मीम बहुत चर्चा में रहा. यह नमकीन कैरामेल पॉपकॉर्न पैकेट की तस्वीर थी, जिसमें कुछ सवाल थे: “अब क्या, टैक्समैन?” अब क्या, वाकई. ज़्यादातर मीम सीतारमण की कीमत पर थे, लेकिन वे सिर्फ फैसलों का चेहरा हैं. जीएसटी काउंसिल में प्रत्येक राज्य के वित्त मंत्री समान रूप से जिम्मेदार हैं, साथ ही विभिन्न दर निर्धारण समितियों में सभी सिविल सेवक भी जिम्मेदार हैं.
टैक्स प्रणाली की जटिलता को शायद इस तथ्य से सबसे अच्छी तरह समझा जा सकता है कि जीएसटी परिषद को इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करना पड़ा क्योंकि जीएसटी अधिकारी खुद भ्रमित थे.
आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, “इस संबंध में कोई नया टैक्स नहीं लगाया गया है और यह केवल एक स्पष्टीकरण है क्योंकि कुछ क्षेत्रीय इकाइयां इस पर अलग-अलग टैक्स रेट की मांग कर रही थीं. इसलिए, यह जीएसटी काउंसिल द्वारा परिभाषा से निकले मसलों को निपटाने के लिए एक स्पष्टीकरण की सिफारिश की जा रही है.”
अगर टैक्स अधिकारी खुद एक ही प्रोडक्ट पर टैक्स को समझ नहीं पा रहे हैं तो गरीब ग्राहकों के बारे में सोचिए. हालांकि, खाद्य उत्पादों पर लागू होने वाली जीएसटी प्रणाली की जटिलता कोई नई बात नहीं है.
दिप्रिंट ने पहले रिपोर्ट की थी कि खाद्य पदार्थों पर जीएसटी दर इस आधार पर कैसे बदल सकती है कि आप इसे कहां से खरीदते हैं, कैसे खरीदते हैं, इसकी रासायनिक संरचना क्या है और कभी-कभी यह किस तापमान पर है.
केवल बिजनेसमेन और आम आदमी ही जीएसटी के बारे में शिकायत नहीं कर रहे हैं. यह अब इतना जटिल हो गया है कि जीएसटी को डिजाइन करने वाले और आमतौर पर सरकार की आलोचना करने से बचने वाले लोग भी इस प्रणाली की आलोचना करने लगे हैं.
पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम — जो 2014 से 2018 तक इस पद पर रहे और जीएसटी के बनने और लागू होने — में शामिल थे, ने सीतारमण की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद एक्स पर कहा, “यह एक राष्ट्रीय त्रासदी है, जो जीएसटी के उद्देश्य से बनाए गए गुड एंड सिंपल टैक्स की भावना का उल्लंघन करती है.”
उन्होंने कहा, “यह मूर्खता और भी जटिल हो गई है क्योंकि सरलता की दिशा में आगे बढ़ने के बजाय हम अधिक जटिलता, प्रवर्तन की कठिनाई और तर्कहीनता की ओर बढ़ रहे हैं.”
उनके उत्तराधिकारी केवी सुब्रमण्यम अधिक सतर्क थे, लेकिन अपने एक्स पोस्ट में उतने ही तीखे थे, “जटिलता नौकरशाहों के लिए खुशी और नागरिकों के लिए दुःस्वप्न है”.
जीएसटी की जटिलता का मूल कारण दरों की बहुलता है. विशेषज्ञों ने बार-बार एक सरल दोहरी दर प्रणाली की सिफारिश की जिसे नज़रअंदाज़ कर दिया गया.
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2009 में ही राज्यों के वित्त मंत्रियों की एक अधिकार प्राप्त समिति ने सिफारिश की थी कि जीएसटी में दो रेट वाली संरचना होनी चाहिए — ज़रूरी वस्तुओं और बुनियादी महत्व की वस्तुओं के लिए कम रेट और सामान्य वस्तुओं के लिए एक स्टैंडर्ड रेट.
फिर 2015 में अरविंद सुब्रमण्यम समिति ने जीएसटी दरों के बारे में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की. इसने भी दोहरी दर वाली संरचना की सिफारिश की.
हमें क्या मिला? 2017 में जीएसटी को शुरू से ही पांच दरों — 0 प्रतिशत, 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत के साथ लागू किया गया था. इसमें 28 प्रतिशत स्लैब में वस्तुओं पर लगाए गए विभिन्न दरों की गणना नहीं की गई है.
यही कारण है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह — जो जीएसटी के मुखर समर्थक हैं — ने इस पर सरकार की आलोचना की.
नवंबर 2017 में सिंह ने अपने चिरपरिचित लेकिन प्रभावशाली अंदाज़ में कहा था, “जीएसटी एक ऐसा विचार है, जिसे कांग्रेस पार्टी का समर्थन है, लेकिन हम इसे उचित सावधानी और पर्याप्त तैयारी के बाद ही लागू करते.”
उसी महीने उन्होंने दुख जताया कि “खामियों और गलत तरीके से तैयार किए गए जीएसटी के कारण लोगों को परेशानी हो रही है.”
जीएसटी परिषद ने इस आलोचना को नज़रअंदाज़ कर दिया है. मानो या न मानो, जीएसटी में अब वास्तव में नौ अलग-अलग दरें हैं, जिनमें विशेष उत्पादों के लिए 0.25 प्रतिशत, 1.5 प्रतिशत, 3 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत स्लैब शामिल हैं.
परिषद वर्तमान में जीएसटी को सरल बनाने के तरीके पर रिपोर्ट का इंतज़ार कर रही है. वह रिपोर्ट इतनी जल्दी नहीं आ सकती. फिलहाल, हमारे पास जो है वह गड़बड़ है.
(इस न्यूज़मेकर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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