चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ने पिछले साल की इसी तिमाही के मुकाबले 6.3% की वृद्धि दर्ज की. यह जून की तिमाही में दिखी 13.5% की वृद्धि से कम थी, जब लो बेस ने वृद्धि के आंकड़े को सांख्यिकीय हिसाब से ऊपर पहुंचा दिया जबकि तिमाही-दर-तिमाही के आधार से वृद्धि दर में इजाफा हुआ.
कोविड महामारी से पहले समान तिमाही में भी वृद्धि दर में अच्छी बढ़त हुई थी.
सेवा क्षेत्र ने जीडीपी की वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जबकि मैन्युफैक्चरिंग और खनन क्षेत्र में सिकुड़न आई. कृषि क्षेत्र में मजबूत वृद्धि हुई है. आगे, मुश्किल होती वित्तीय स्थिति की वजह से बाहरी मांग में कमी के कारण वृद्धि दर में कमी आ सकती है. ज़रूरत की चीज़ों की कीमतों में कमी आने से आगामी तिमाहियों में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को सहारा मिलेगा.
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में सुस्ती
मुनाफे में, जो कि सकल मूल्य संवर्द्धन (जीवीए) का मुख्य तत्व है, गिरावट के कारण मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर सुस्ती का शिकार हुआ. कच्चे माल, एनर्जी की कीमतों में और ब्याज दरों में वृद्धि के कारण मुनाफा अधिक प्रभावित हुआ. यह गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि मैन्युफैक्चरिंग रोजगार के अवसर बढ़ाने का बड़ा स्रोत है.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआइई) के आंकड़ों के मुताबिक, गैर-वित्तीय सेक्टर की 3,319 सूचीबद्ध कंपनियों के शुद्ध मुनाफे में 24 फीसदी की कमी आई. अनुकूल मुद्रा नीति को उलटने के कारण उन्हीं कंपनियों का ब्याज पर खर्च 30 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की कंपनियों का शुद्ध मुनाफा 28 फीसदी से ज्यादा घट गया.
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के जीवीए में 4.3 फीसदी की गिरावट आई. जबकि नेशनल एकाउंट्स स्टैटिस्टिक्स (एनएएस) सब-सेक्टर लेवल पर जीवीए के ब्योरे नहीं देता, सीएमआइई प्रोवेस डेटाबेस के डाटा के आधार पर सब-सेक्टर मैनुफैक्चरिंग जीवीए का अनुमान बताता है कि जुलाई-सितंबर तिमाही में कपड़े, धातुओं और उनके उत्पादों, निर्माण सामग्री में तेज़ गिरावट आई. उपभोक्ता सामान, रसायन, मशीनरी में मजबूत वृद्धि हुई. सीएमआइई प्रोवेस डेटाबेस में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की फर्मों के जीवीए के अनुमान एनएएस के जरिए उभरी दिशा से मेल खाते हैं.
धातुओं और उनके उत्पादों में आई गिरावट धातुओं की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में संशोधन के प्रभाव को दर्शाती है, जो भू-राजनीतिक तनावों के कारण मांग में आई अड़चन के कारण मार्च में काफी बढ़ गई थीं. कपड़ा क्षेत्र के जीवीए में लगातार तीन तिमाही तक गिरावट चिंता का कारण है क्योंकि यह क्षेत्र रोजगार देने का बड़ा क्षेत्र है.
साल के पूर्वार्द्ध में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की वृद्धि सपाट रही. इस सेक्टर में सुस्ती 2014 से शुरू हुई लेकिन अभी तक मजबूत सुधार नहीं हुआ है.
सकारात्मक बात यह है कि कृषि तथा उससे जुड़े क्षेत्रों के जीवीए ने 4.6 फीसदी की मजबूत वृद्धि दर्ज की है. यह तब है जबकि चिंता इस बात को लेकर थी कि सितंबर वाली तिमाही में बुवाई औसत से कम हुई.
खनन क्षेत्र के जीवीए में भी 2.8 फीसदी की गिरावट आई. चालू कीमतों पर इस सेक्टर के जीवीए ने 35 फीसदी की मजबूत वृद्धि दर्ज की, जो कीमतों में वृद्धि के असर को दर्शाती है.
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उपभोग और निवेश में मजबूती
घरेलू उपभोग को दर्शाने वाला प्राइवेट फाइनल कंजन्प्शन एक्स्पेंडीचर (पीएफसीई) निश्चित कीमतों पर जीडीपी के 58.5 प्रतिशत था, जबकि पिछले वर्ष की इसी तिमाही में यह 56.6 प्रतिशत था. उपभोग में वृद्धि शहरी उपभोग में वृद्धि के बूते हो सकती है. ग्रामीण क्षेत्र में उपभोग कमजोर रहा है. उपभोक्ता सामान के उत्पादकों ने ग्रामीण क्षेत्रों में बिक्री में गिरावट की खबर दी है, जो महंगाई का नतीजा है. चुनौतीपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था के कारण घरेलू मांग में सुधार को बनाए रखना जरूरी है.
अर्थव्यवस्था में निवेश की मांग को दर्शाने वाले ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन (जीएफसीएफ) में 10.4 फीसदी की वृद्धि हुई. नियत कीमतों पर जीडीपी के 34.6 फीसदी के स्तर पर जीएफसीएफ पिछली तिमाही के 34.7 फीसदी के स्तर से मामूली ही कम है. जीएफसीएफ में वृद्धि केंद्र सरकार द्वारा पूंजीगत खर्चों में मजबूत वृद्धि को दर्शाती है. निजी निवेश में भी सुधार के संकेत हैं. हाल के महीनों में कॉर्पोरेट सेक्टर को दी जाने वाली क्रेडिट में भी वृद्धि दर्ज की गई है.
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बाहरी सेक्टर एक अड़चन
कुल आयात में वृद्धि ने आर्थिक वृद्धि को पीछे धकेल दिया. निर्यात जीडीपी के 23.3 फीसदी के बराबर रहा, तो वहीं आयात 31.9 फीसदी के बराबर रहा. अमेरिका को छोड़ अधिकतर विकसित देश मंदी की ओर बढ़ रहे हैं तो निर्यात पर असर पड़ेगा. साल के उत्तरार्द्ध में ज़रूरत के सामान की वैश्विक कीमतों में लगातार गिरावट से निर्यात सस्ता हो सकता है.
सरकारी उपभोग खर्च में कमी आई है. पांच तिमाहियों के बाद यह पहली सिकुड़न थी. सरकार वित्तीय मजबूती हासिल करने के लिए अपने राजस्व खर्च पर अंकुश रख रही है.
पहली छमाही में वैश्विक प्रतिकूलताओं और मुद्रा नीति में सख्ती के बावजूद आर्थिक वृद्धि 9.7 फीसदी दर्ज की गई. अगर दूसरी छमाही में यह चार फीसदी रहेगी तो यह अच्छी उपलब्धि होगी.
(राधिका पांडेय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में कंसल्टेंट हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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(अनुवादः अशोक कुमार)
(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)
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