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Monday, 6 May, 2024
होमदेशअर्थजगतभारतीय मछुआरों ने WTO के सब्सिडी पर लगाम लगाने के खिलाफ जिनेवा में विरोध प्रदर्शन किया

भारतीय मछुआरों ने WTO के सब्सिडी पर लगाम लगाने के खिलाफ जिनेवा में विरोध प्रदर्शन किया

गुजरात के एक मछुआरे ने कहा कि अगर यह सब्सिडी हटा ली जाती है तो यह हमारे लिए जिंदगी और मौत का मामला होगा. हम समुद्र को अपने पिता के रूप में मानते हैं.

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नई दिल्ली: भारत के कई मछुआरे समुदाय के सदस्यों ने रविवार को वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गानाइजेशन (डब्ल्यूटीओ) के मछली पालन सब्सिडी पर लगाम लगाने के प्रस्ताव का विरोध किया क्योंकि यह विकासशील देशों की मांगों के अनुकूल नहीं है.

पश्चिम बंगाल के बीमन जैन ने कहा, ‘अगर मछुआरों के लिए सब्सिडी बंद हो जाती है तो उनका जीवन और आजीविका बंद हो जाएगी. यह मछुआरों के खिलाफ नहीं होना चाहिए, अगर सब्सिडी अनुशासन की जरूरत है तो यह औद्योगिक मछुआरों के लिए होना चाहिए. यह हमारी मुख्य मांग है.’

‘ड्राफ्ट फूड सिक्योरिटी और छोटे मछुआरों की आजीविका पर चिंताओं से नहीं निपटता है जबकि इस में वह प्रावधान शामिल हैं जो उन्नत देशों को लंबी दूरी की मछली पकड़ने के लिए अपने विशाल योगदान को बनाए रखने में मदद कर सकते हैं.’

12 जून को शुरू हुई 12वीं वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान, भारत भर के मछुआरे जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के बाहर इकट्ठे हुए और कटौती का विरोध किया. इसके
साथ ही उन्होंने बताया कि कैसे यूरोप और चीन के विशाल मछली पकड़ने वाले दिग्गज समुद्री संसाधनों की कमी के लिए जिम्मेदार हैं.

भारतीय मछुआरे आबादी के हितों की रक्षा के लिए भारत के अलग अलग राज्यों के 34 मछुआरों का एक समूह जिसमें गुजरात (5), महाराष्ट्र (6), गोवा (1), कर्नाटक (2), केरल (6), तमिलनाडु (5), आंध्र प्रदेश (4) और पश्चिम बंगाल (5) शामिल हैं. यह इस विरोध प्रदर्शन का प्रतिनिधित्व करते हुए जिनेवा पहुंचे हैं.

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प्रदर्शन में शामिल महाराष्ट्र के एक मछुआरे ने कहा, ‘मैं नौवीं पीढ़ी का मछुआरा हूं और मेरा परिवार सदियों से मछली पकड़ने में शामिल रहा है. चीन और यूरोप जैसे विकसित देशों की मछली पकड़ने वाली नावें हजारों टन मछलियां पकड़ती हैं, उन्हें नाव पर जमा देती हैं और वे उसे ले जाते हैं.’

भारतीय मछुआरों को अपने अस्तित्व के लिए इस सब्सिडी की आवश्यकता है.

CMFRI जनगणना 2016 के अनुसार, कुल समुद्री मछुआरे लोक आबादी 3.77 मिलियन है जिसमें 0.90 मिलियन परिवार शामिल हैं. वे 3,202 मछली पकड़ने वाले गांवों (डीओएफ, भारत सरकार सांख्यिकी डेटा) में रहते हैं.

लगभग 67.3 प्रतिशत मछुआरों के परिवार बीपीएल श्रेणी में थे. औसत परिवार का आकार 4.63 था और कुल लिंगानुपात प्रति 1000 पुरुषों पर 928 महिलाओं का था.

‘मैं मछुआरों के परिवार हूं. हमारे देश में मछली पकड़ने में अधिक महिलाएं हैं.’

महाराष्ट्र की एक मछुआरिन ज्योतिबुआ ने कहा, ‘हमारे देश में मछली पकड़ने में महिलाओं की संख्या अधिक है. अगर यह सब्सिडी हटा ली जाती है तो सबसे ज्यादा असर महिलाओं पर पड़ेगा. अगर सब्सिडी चली गई तो हमारा ‘कुटुंब’ भी चला जाएगा.’

भारत आईयूयू (इललीगल, अनरिपोर्टिड, अनरेगुलेट) मछली पकड़ने को रोकने और हानिकारक सब्सिडी की जांच करके टिकाऊ मछली पकड़ने का समर्थन करने के पक्ष में है.

विरोध करने वाले एक अन्य भारतीय मछुआरे ने कहा कि वे समुद्र से प्लास्टिक उठाते हैं क्योंकि प्लास्टिक प्रदूषण से मछली पालन में कमी आती है. उन्होंने कहा कि कोई दूसरा देश ऐसा (प्लास्टिक उठाकर) नहीं करता.

विकासशील देशों को पर्याप्त नक्काशी से वंचित रखा जाता है जो आजीविका और खाद्य सुरक्षा हितों दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

गुजरात के एक मछुआरे ने कहा कि अगर यह सब्सिडी हटा ली जाती है तो यह हमारे लिए जिंदगी और मौत का मामला होगा. हम समुद्र को अपने पिता के रूप में मानते हैं और इसका इतना सम्मान करते हैं कि हम ‘अमावस्या’ की रात मछली पकड़ने भी नहीं जाते हैं. अगर यह सब्सिडी छीन ली जाए तो हम जिंदा नहीं रह सकते हैं.


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