नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी से आर्थिक गतिविधि अप्रैल से जून तक लगभग पूरी तरह रुक जाने से वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था 15-25 प्रतिशत सिकुड़ सकती है.
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने सोमवार शाम को तिमाही जीडीपी की संख्या जारी करेगा, लेकिन अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि सिकुड़न 25 प्रतिशत तक हो सकती है, शायद, भारत ने अभी तक सबसे खराब तिमाही सिकुड़नों में से एक देखा है.
निजी खपत में एक तेज संकुचन के साथ, विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के सबसे अधिक प्रभावित होने का अनुमान है. केवल कृषि और सरकारी खपत आर्थिक गतिविधि को कुछ सहारा प्रदान कर रहे हैं.
महामारी ने 2 महीने के लॉकडाउन के दौरान बहुत से लोगों के घर पर रहने के वक्त सोच-समझकर की गई निजी खपत से हुए खर्च ने भी प्रतिकूल असर डाला.
सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) दोनों ने विभिन्न क्षेत्रों और उधारकर्ताओं को राहत देने के लिए कई उपायों की घोषणा की है, जिसमें 21 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज और नीतिगत दरों में 1.15 प्रतिशत की कमी शामिल है, लेकिन कई राज्यों के महामारी के प्रसार को रोकने के लिए बीच-बीच में लॉकडाउन करने से दूसरी तिमाही में आर्थिक संकुचन जारी रहने का अनुमान है.
पूरे साल में अर्थव्यवस्था में कम से कम 10 प्रतिशत की कमी आने की अनुमान है.
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अर्थशास्त्रियों की भविष्यवाणी
25 अगस्त को एक नोट में, भारत के प्रमुख अर्थशास्त्री, राहुल बाजोरिया, बार्कलेज, ने अनुमान लगाया कि पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था 25 प्रतिशत तक सिकुड़ सकती है, जो दिखाता है कि लगभग सभी खर्च वाले सेगमेंट में अभी हाल-फिलहाल में सरकारी खपत में वृद्धि ज्यादातर नहीं होने वाली. उन्होंने कहा कि सबसे बुरा दौर खत्म हो सकता है लेकिन वृद्धि कमजोर बनी रहेगी.
बाजोरिया ने कहा, ‘जबकि अप्रैल और मई आर्थिक दृष्टिकोण से सबसे खराब महीने थे, बढ़ते कोविड के मामले से भारत कई हिस्सों में जून, जुलाई और अगस्त के दौरान लोकल लॉकडाउन की गिरफ्त में रहा. मई और जून में बड़ी संख्या में सुधार के संकेत दिख रहे थे, दूसरे रास्तों से गतिविधि का स्तर ट्रैक पर आना शुरू हो गया है.’
उन्होंने कहा, ‘यह चिंता बढ़ जाती है कि गतिविधि में उछाल अपेक्षाकृत कम समय तक रह सकता है, और इसके उलटने का खतरा हो सकता है.’ जुलाई-सितंबर की तिमाही में 8 प्रतिशत संकुचन होने का अनुमान है.’
पिछले सप्ताह जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में, आरबीआई ने आर्थिक गतिविधि के व्यय में कमी को ‘इतिहास में अभूतपूर्व’ करार दिया. इसने खपत को ‘गंभीर’ रूप अफसोसनाक बताया और ‘पूर्व-कोविड-19’ गति में वापसी करने और इसे फिर से वापस पाने में कुछ समय लगने की बात कही है.
इसने भविष्य में संभावित उत्पादन के नुकसान के बारे में भी चेतावनी दी, यह इशारा करते हुए कि हालांकि महामारी एक स्वास्थ्य संकट है, इससे पूरे ‘रीअल और वित्तीय क्षेत्रों में व्यापक अड़चनें पैदा होंगी.’
‘गंभीर व्यवधान’
इंडिया रेटिंग में पब्लिक फाइनेंस के प्रमुख अर्थशास्त्री और निदेशक सुनील कुमार सिन्हा ने 28 अगस्त के नोट में कहा कि कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जो महामारी और लॉकडाउन से अपेक्षाकृत अछूता बना रहा है.
यह ग्रामीण मांग को बढ़ाने में मदद करेगा, हालांकि उन्होंने कहा कि यह उपभोग की मांग के लिए सबसे अच्छा सहारा दे सकता है… जो कि शहरी मांग का विकल्प नहीं हो सकता.’
‘मार्च-मई 2020 के दौरान कोविड-19 ने उत्पादन, आपूर्ति/व्यापार चैनलों और विशेष रूप से विमानन, पर्यटन, होटल और हॉस्पिटालिटी जैसे क्षेत्रों में गतिविधियों के लिए बहुत गंभीर व्यापारिक मुश्किलें बढ़ाई, जो वित्त वर्ष 80 (1979-80) के बाद जितना पहली बार जीडीपी वृद्धि के सिकुड़ने की संभावना है. हालांकि गैर-कृषि आर्थिक गतिविधियां धीरे-धीरे लड़खड़ाते हुए वापसी कर रही हैं, वे अभी भी कोविड-19 के पहले के स्तर से बहुत कम हैं.’ उन्होंने कहा, अर्थव्यवस्था में पहली तिमाही में 17 प्रतिशत की सिकुड़न का अनुमान है.’
एक साल पहले की इसी अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था 5.2 प्रतिशत और पूरे वर्ष में 4.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी थी.
19 अगस्त के एक नोट में, केयर रेटिंग्स ने अनुमान लगाया कि अप्रैल-जून तिमाही में अर्थव्यवस्था में 20 प्रतिशत की कमी हो सकती है, जो कृषि क्षेत्र में 3.5 प्रतिशत वृद्धि के साथ विनिर्माण क्षेत्र में 35 प्रतिशत और सेवाओं में 17 प्रतिशत के संकुचन को बढ़ाएगा.
‘जीवीए के व्यापक वर्गीकरण के तहत आठ क्षेत्रों में, दो क्षेत्र जिनमें कृषि, वानिकी और मछली पकड़ने; और पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, रक्षा और अन्य सेवाओं के सकारात्मक विकास दर दर्ज करने की उम्मीद है, जबकि मुख्य तौर पर महामारी के कारण अन्य के वित्त वर्ष 2021 में नीचे आने की उम्मीद है.’
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