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Saturday, 23 November, 2024
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IIM-A सर्वे में खुलासा- RBI के रेपो रेट बढ़ाने के बाद आशावादी हो गए हैं भारत के व्यवसाय

मई के लिए IIM-A का बिज़नेस इन्फ्लेशन एक्सपेक्टेशंस सर्वे, जिसे मंगलवार को जारी किया गया, क़रीब 1,000 कंपनियों के जवाबों पर आधारित था.

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नई दिल्ली: भारतीय प्रबंधन संस्थान-अहमदाबाद (आईआईएम-ए) द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में पता चला है कि भारतीय व्यवसायों को उम्मीद है कि अगले साल धीरे-धीरे महंगाई का असर कम हो जाएगा- ये घटनाक्रम मई में आरबीआई के नया रेपो रेट लाने के बाद हुआ है.

मई के लिए आईआईएम-ए के बिज़नेस इन्फ्लेशन एक्सपेक्टेशंस सर्वे (बीआईईएस-मई 2022) में, जिसे मंगलवार को जारी किया गया और जो क़रीब 1,000 कंपनियों के जवाबों पर आधारित था, पता चला कि महंगाई को लेकर व्यवसायों की अपेक्षाएं मई में घटकर 5.58 प्रतिशत रह गईं, जो इस साल अप्रैल में 6.2 प्रतिशत थीं.

‘बीआईईएस-मई 2022’ से- जो सर्वे का 61वां राउण्ड था- ये भी पता चलता है कि कुछ आशावाद के बावजूद, कंपनियों को अपेक्षा है कि ऊंची लागत के दवाबों और मंद बिक्री के बावजूद, पूरे साल उनका मुनाफा कुछ हल्का ही रहेगा.

मुद्रास्फीति अपेक्षा एक आंकलन होता है कि लोग- उपभोक्ता, व्यवसाय, या निवेशक- भविष्य में कितनी महंगाई की अपेक्षा करते हैं. व्यवसायिक मुद्रास्फीति अपेक्षा या बीआईई, एक साल पहले का महंगाई अनुमान होता है, जो कंपनियां अपनी लागत और बिक्री लक्ष्यों का हिसाब लगाने के लिए करती हैं.

व्यवसायों की मुद्रास्फीति अपेक्षाएं नवंबर 2021 में तेज़ी से बढ़ गईं थीं और फरवरी में 6 प्रतिशत हो गईं थीं.

प्रो. अभिमन दास, जो संस्थान में अर्थशास्त्र पढ़ाते हैं और इस मासिक क़वायद की अगुवाई करते हैं, कहते हैं कि इस आशावाद के पीछे का कारण वो ‘मौद्रिक कार्य योजना’ है, जो आरबीआई पिछले दो महीनों में लेकर आया है.

उन्होंने फोन पर दिप्रिंट से कहा, ‘इसने उन्हें पर्याप्त विश्वास दिया है कि केंद्रीय बैंक महंगाई दर को 6 प्रतिशत से नीचे रखने को लेकर गंभीर है. दूसरा कारण कच्चे तेल की क़ीमतों का थोड़ा संयमित होना है. इससे कंपनियों को लगने लगा है कि अगले एक साल में महंगाई उतनी बेलगाम नहीं रहेगी, जैसे पिछले चार महीनों में थी.’

आईआईएम-ए का मासिक सर्वे काफी अहमियत रखता है, क्योंकि देश में व्यवसायों का व्यवहार समझने के लिए, आरबीआई अपने मासिक बुलेटिन्स में इसका हवाला देता है. सर्वे में अल्प और मध्यावधि में महंगाई को लेकर बिज़नेस लीडर्स की अपेक्षाओं के बारे में, उनके एक पैनल से मतदान कराकर अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती (आर्थिक विकार की गति) की जांच की जाती है.

सर्वे में अगले साल के दौरान इनपुट लागत, और मुनाफा तथा बिक्री स्तरों जैसे क़ीमतों को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में, अपेक्षाओं को लेकर सवाल पूछे जाते हैं.

इस साल जैसे ही महंगाई तेज़ी से बढ़ी, आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने रीपरचेज़ रेट को, जिसे रेपो रेट भी कहते हैं- वो दर जिसपर वाणिज्य बैंक आरबीआई से पैसा उधार लेते हैं- दो बार बढ़ा दिया: पहले मई में 40 बेसिस पॉइंट्स, और फिर जून में 50 बेसिस पॉइंट्स से.

आरबीआई को अपेक्षा है कि वार्षिक महंगाई दर- जिसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के ज़रिए मापा जाता है- वैश्विक कमोडिटी की बढ़ी हुई कीमतों पर सवार होकर, 2022-23 के अधिकतर हिस्से में 6.7 प्रतिशत के औसत पर बनी रहेगी. उसे अपेक्षा है कि वित्त वर्ष की केवल आख़िरी तिमाही (जनवरी-मार्च) में, ये 6 प्रतिशत से नीचे जाएगी- जो आरबीआई का ऊपरी सहनशीलता बैण्ड है.

भारत की मौद्रिक नीति रूपरेखा के अनुसार, आरबीआई के लिए मध्यावधि में सीपीआई महंगाई दर को 4 प्रतिशत पर रखना अनिवार्य है, लेकिन कोविड महामारी जैसे अप्रत्याशित झटकों को समभालने के लिए, दोनों ओर 2 प्रतिशत लोच की अनुमति है- जिसे सहनशीलता बैण्ड कहा जाता है.

मंद बिक्री और निरंतर लागत दबाव

बीआईईए-मई सर्वे 2022 से पता चलता है, कि ‘सामान्य से कुछ कम’ बिक्री बताने वाली कंपनियों का प्रतिशत, मई में बढ़कर 34 प्रतिशत हो गया जो अप्रैल में 27 प्रतिशत था. इसी तरह, ‘लगभग सामान्य’ बिक्री बताने वाली कंपनियों की संख्या भी मई में गिरकर 23 प्रतिशत रह गई, जो अप्रैल में 28 प्रतिशत थी.

इसके अलावा, सर्वे की गई 80 प्रतिशत कंपनियां पिछले पांच राउण्ड्स से, ‘सामान्य से काफी कम या सामान्य से थोड़ी कम’ बिक्री बता रहीं थीं.

सर्वे में हिस्सा ले रहीं एक तिहाई से अधिक कंपनियों ने कहा, कि मई में समाप्त हुए चार महीनों में उनकी इनपुट लागत 6 प्रतिशत बढ़ गई थी, जबकि बाक़ी ने कहा कि उनकी लागत में 10 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई थी.

लेकिन ये फरवरी में कराए गए सर्वे पर एक सुधार नज़र आता है, जब उत्तरदाताओं ने कहा था कि पिछले चार महीनों में उनकी लागत 39 प्रतिशत से अधिक बढ़ गई थी.

दास ने कहा कि इस अंतर से लगता है कि कंपनियां स्थिति में सुधार होने की अपेक्षा कर रहीं थीं.

‘बहुत सारे उत्तरदाता ऐसे हैं जिन्हें लगा था, कि पिछले चार महीनों में उनकी लागत 10 प्रतिशत से अधिक बढ़ गई थी. इसका मतलब है कि बहुत सारी कंपनियां जिनकी लागत बहुत बढ़ रही थी (10 प्रतिशत से अधिक) अब अपनी अपेक्षाओं को संयमित कर रही हैं.’

न्यूयॉर्क-स्थित वित्तीय और व्यापार विश्लेषिकी फर्म एसएंडपी ग्लोबल की जून के लिए पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्‍स (पीएमआई) से संकेत मिलता है, कि कंपनियां जिस दाम पर वस्तुएं ख़रीदती है और जिस दाम पर वो अपने उत्पाद को बेंचती हैं, वो तीन महीने के निचले स्तर पर आ गईं थीं, लेकिन अपने अपने दीर्घकालीन औसत से ऊपर बनी रहीं- जो 3 और 5 साल का होता है.

पीएमआई मैन्युफेक्चरिंग और सेवाएं दोनों क्षेत्रों में, व्यावसायिक गतिविधि का सबसे क़रीबी से नज़र रखा जाने वाला संकेतक होता है.

एसएंडपी ग्लोबल ने जून की अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘मॉनिटर की गई कंपनियों ने बहुत तरह के इनपुट्स की लागत में इज़ाफे की ख़बर दी- जिनमें केमिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, इनर्जी, मेटल्स और टेक्सटाइल्स शामिल हैं- जिन्हें उन्होंने बढ़े हुए बिक्री दामों की शक्ल में, आंशिक रूप से ग्राहकों को पास कर दिया.’


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‘खाद्य मुद्रास्फीति को रोकना’

मई में भारत की महंगाई दर अप्रैल के आठ वर्ष के रिकॉर्ड स्तर, 7.79 प्रतिशत से संयमित होकर 7.04 प्रतिशत पर आ गई, लेकिन सीपीआई महंगाई दर लगातार पांचवें महीने (मई तक), आरबीआई के सहनशीलता बैण्ड 2-6 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है. इसके अलावा खाद्य क़ीमतें भी, जिनका सूचकांक में लगभग 50 प्रतिशत वज़न होता है, अप्रैल के 8.3 प्रतिशत से संयमित होकर 8 प्रतिशत हो गईं.

अलग-अलग रिपोर्ट्स के मुताबिक़, जनवरी 2014 और मार्च 2022 के बीच, भारत में खाद्य पदार्थों की क़ीमतों में 70 प्रतिशत इज़ाफा हुआ है.

ईंधन और खाद्य की बढ़ी क़ीमतों, महामारी से उत्पन्न सप्लाई की कमी, रूस-यूक्रेन में चल रही लड़ाई, और अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की ओर से ब्याज दरों में इज़ाफे के नतीजे में, दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में महंगाई देखी जाने लगी.

दास ने कहा कि भारत के पास अभी भी मौक़ा है, कि वो अपनी महंगाई को दुनिया भर में देखे जा रहे स्तरों तक पहुंचने से रोक सकता है. उन्होंने आगे कहा कि बेहतर खाद्य प्रबंधन के साथ इसे हासिल किया जा सकता है.

दास ने कहा, ‘वैश्विक क़ीमतों में हो रही निरंतर वृद्धि से बचने वाला भारत एक असाधारण देश बन सकता है. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि हमारी सीपीआई बास्केट इस तरह से डिज़ाइन की गई है, कि उसका क़रीब 50 प्रतिशत वज़न खाद्य श्रेणी में है, और भारत में खाद्य वस्तुओं के दाम दूसरी वस्तुओं की अपेक्षा कहीं अधिक तेज़ी से समायोजित हो सकते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इसलिए अगर बेहतर खाद्य प्रबंधन से देश अपनी खाद्य क़ीमतों को क़ाबू कर सकता है, तो भारत उस तरह की उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति से बच सकता है, जो अन्य देशों में देखी जा रही है. अगर हम ख़ाद्य क़ीमतों में महंगाई को क़ाबू कर पाएं, तो फिर मज़दूरी, और अन्य सेवाओं आदि पर उसका असर सीमित रहेगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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