नयी दिल्ली, 31 अक्टूबर (भाषा) प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के चेयरमैन एस महेंद्र देव ने शुक्रवार को कहा कि भारत को निर्यात में विविधता लानी चाहिए और मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर बातचीत तेज करनी चाहिए। साथ ही अमेरिका के साथ प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) को अंतिम रूप देने के लिए उसके साथ बातचीत जारी रखनी चाहिए।
देव ने ‘प्रथम आईएसआईडी@40 विशिष्ट व्यक्ति व्याख्यान’ को संबोधित करते हुए कहा कि सुरक्षा नीतियों एवं अंतरराष्ट्रीय व्यापार में कमी के बावजूद भारत के लिए विश्व वस्तु व्यापार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए कई अवसर हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है विनिर्माण के लिए भारत की व्यापार नीति एशिया, लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, कुछ विकसित देशों में निर्यात में विविधता लाने, एफटीए को तेज करने और अमेरिका के साथ बातचीत जारी रखने की होनी चाहिए।’’
प्रख्यात अर्थशास्त्री ने कहा कि नियम-आधारित विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) सदैव संरक्षणवाद से बेहतर है।
उनकी यह टिप्पणी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका, भारत पर रूस से कच्चा तेल खरीदना बंद करने का दबाव बना रहा है। अमेरिका ने 22 अक्टूबर को रूस की दो सबसे बड़ी कच्चा तेल उत्पादक कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लगा दिए थे। साथ ही सभी अमेरिकी संस्थाओं और लोगों को इन कंपनियों के साथ व्यापार करने पर रोक दिया गया है।
अमेरिका ने रूस से तेल खरीदने पर भारत पर 25 प्रतिशत का जुर्माना लगाया है। यह अमेरिकी बाजारों में प्रवेश करने वाले भारतीय सामानों पर 25 प्रतिशत के जवाबी शुल्क के अतिरिक्त है। कुल मिलाकर भारतीय सामानों पर अमेरिका में 50 प्रतिशत का अतिरिक्त आयात शुल्क लग रहा है। भारत ने इन शुल्कों को ‘‘अनुचित और अविवेकपूर्ण’’ बताया है।
उन्होंने कहा कि भारत जैसे आकार का कोई भी उभरता हुआ बाजार मजबूत निर्यात वृद्धि के बिना एक दशक या उससे अधिक समय तक सात या आठ प्रतिशत की दर से नहीं बढ़ा है।
देव ने इस बात पर जोर दिया कि भारत में 200 से 500 कर्मचारियों वाली कई और मध्यम स्तर की विनिर्माण इकाइयां होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि विनिर्माण क्षेत्र में अन्य बातों के अलावा, बड़ी समस्या यह है कि अधिकतर कंपनियां 10 से कम श्रमिकों के साथ काम कर रही हैं और उनका आकार छोटा है।
देव ने कहा, ‘‘ 1700 में विश्व सकल घरेलू उत्पाद में भारत की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत थी। कुछ अनुमानों से पता चलता है कि 2043 तक विश्व सकल घरेलू उत्पाद में भारत की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत हो जाने की संभावना है। सुधार के बाद के पिछले तीन दशकों में भारत की औसत वृद्धि दर छह से 6.5 प्रतिशत प्रति वर्ष रही है।’’
निवेश दर को वृद्धि का चालक बताते हुए उन्होंने कहा, ‘‘ भारत को सात प्रतिशत वृद्धि दर प्राप्त करने के लिए निवेश दर को वर्तमान 31-32 प्रतिशत से बढ़ाकर 34-35 प्रतिशत करने की आवश्यकता है।’’
उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र को भारत में अधिक निवेश करना चाहिए क्योंकि अब दोहरे बही-खाते की कोई समस्या नहीं है।
देव ने कहा, ‘‘ सरकारी पूंजीगत व्यय बढ़ रहा है। इसका कई गुना प्रभाव पड़ेगा।’’ उन्होंने कहा कि ग्रामीण और शहरी मांग बढ़ने से निजी निवेश में वृद्धि होगी।
भाषा निहारिका पाण्डेय
पाण्डेय
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