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Wednesday, 20 November, 2024
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भारत ने डब्ल्यूटीओ बैठक में मत्स्य पालन सब्सिडी पर बातचीत के मसौदे को खारिज किया

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(राजेश राय)

जिनेवा, 14 जून (भाषा) भारत ने मंगलवार को मत्स्य पालन सब्सिडी पर बातचीत की मौजूदा रूपरेखा को खारिज कर दिया है। उसने कहा कि सुदूर जल क्षेत्रों में मछली पकड़ने के काम में लगे विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य देशों को 25 साल के लिये सब्सिडी उपलब्ध कराने पर रोक लगानी चाहिए।

भारत ने कहा कि इसका कारण है कि वे काफी बढ़-चढ़कर सहायता उपलब्ध करा रहे हैं और इससे मत्स्य संसाधनों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है।

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि भारत प्रति मछुआरा परिवार सालाना 15 डॉलर की सब्सिडी देता है। दूसरी तरफ, कई ऐसे देश हैं जो प्रति मछुआरा परिवार 42,000, 65,000 और 75,000 डॉलर तक की सहायता दे रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘क्षेत्र में इस प्रकार की असमानता है और अब मौजूदा मसौदे के जरिये इसे संस्थागत रूप देने की कोशिश हो रही है।’’

मंत्री ने कहा कि प्रतिकूल मौसम में आय और आजीविका को बनाये रखने तथा सामाजिक रूप से पिछड़े मछुआरा समुदाय को सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराने से अधिक मछली पकड़ने की स्थिति पैदा नहीं हो सकती है।

भारत ने कहा कि विकासशील देशों में यह क्षेत्र अभी भी शुरुआती चरण में है। सुदूर जल क्षेत्र में मछली नहीं पकड़ने वाले इन देशों के लिये 25 साल की संक्रमण अवधि होनी चाहिए।

गोयल ने कहा, ‘‘भारत ने बदलाव के लिये 25 साल की अवधि की जो मांग की है, यह कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है। यह हमारे जैसे देशों के लिये होनी चाहिए। हमारा मानना है कि जबतक 25 साल के लिये बदलाव अवधि पर सहमति नहीं होती है, बातचीत को अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचाना हमारे लिये असंभव है। इसका कारण हमारे निम्न आय वाले मछुआरों के लिये दीर्घकालीन सतत वृद्धि को लेकर नीतिगत कदम जरूरी है।’’

डब्ल्यूटीओ के सदस्य देश मत्स्य सब्सिडी समझौते पर बातचीत कर रहे हैं। इसका उद्देश्य कानूनी, अनियमित और बिना सूचना के मछली पकड़ने को लेकर दी जा रही सब्सिडी को समाप्त करना, जरूरत से अधिक मछली पकड़ने के लिये सब्सिडी पर अंकुश लगाना और सतत रूप से मछली पकड़ने की व्यवस्था को बढ़ावा देना है।

भारत में करीब 90 लाख परिवार सरकारी सहायता और समर्थन पर आश्रित हैं।

भाषा

रमण अजय

अजय

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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