श्रम मंत्रालय ने गैर-कृषि सेक्टरों के फर्मों में रोजगार के सर्वे के आंकड़े हाल में जारी किए. यह सर्वे तिमाही होगा और अर्थव्यवस्था के लिए कम अंतरालों पर जुटाए गए आंकड़े (हाइ फ्रिक्वेंसी डेटा) उपलब्ध कराएगा. ये आंकड़े फर्मों से इकट्ठा किए जाएंगे और देश में व्यापक अर्थव्यवस्था (मैक्रोइकोनॉमिक्स) से संबंधित नीति निर्धारण में काम आएंगे.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआइई) और पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे ने हाल के महीनों में रोजगार के जो आंकड़े इकट्ठा किए हैं वे खबरों में हैं, खासकर वे आंकड़े जो कोविड महामारी के कारण रोजगार खत्म होने के हैं. इस तरह के आंकड़े, या परिवारों से इकट्ठा किए गए आंकड़े रोजगार के सवाल को अलग कोण से उठाते हैं. ये श्रमिकों के सप्लायरों से इकट्ठा किए जाते हैं.
इसलिए, उदाहरण के लिए, जब किसी परिवार से पूछा जाता है कि क्या परिवार के किसी आदमी को रोजगार हासिल है, और वह परिवार के एक चरण में इसका ‘हां’ जवाब देता लेकिन दूसरे चरण में ‘न’ जवाब देता है तब यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि रोजगार खत्म हो गया. सीएमआइई साल में तीन चरणों में सर्वे करता है. कभी-कभी व्यक्ति यह जवाब देता है कि अब वह रोजगार नहीं ढूंढ रहा है. इससे यह पता नहीं चलता कि फर्म रोजगार दे रही है या नहीं, और वेतन दे रही है या नहीं.
इसलिए आंकड़ों के दो सेटों में तुलना नहीं हो सकती. आंकड़े पर या तो एक तो मांग करने वाले पक्ष से या नियोक्ता के नज़रिए से विचार किया जा सकता है, या दूसरे पक्ष के रूप में श्रमिकों के सप्लायर के नजरिए से विचार किया जा सकता है.
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रोजगार के आंकड़ों का महत्व
दूसरे देशों, खासकर विकसित देशो में सरकार, मौद्रिक नीति संबंधी कमिटियों, अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वालों और व्यवसाय जगत मैक्रोइकोनॉमिक्स की नीति और उसका विश्लेषण करने में रोजगार को सबसे अहम कारकों में शुमार करता है. भारत में रोजगार के हाइ फ्रिक्वेंसी डेटा की कमी के कारण नीति निर्धारण कमजोर हुआ है.
श्रम मंत्रालय के अप्रैल-जून 2021 के तिमाही रोजगार सर्वे की रिपोर्ट में नौ गैर-कृषि सेक्टरों में, जिनमें 10 या इससे ज्यादा कामगारों को काम दिया जाता है, रोजगार की स्थिति प्रस्तुत की गई है. ये सेक्टर हैं—मैनुफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्सन, व्यापार, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, होटल-रेस्तरां, आइटी/बीपीओ, और वित्तीय सेवाएं. यह सर्वे संगठित क्षेत्र में रोजगार की स्थिति का जायजा देता है. सरकार इस तरह का सर्वे असंगठित क्षेत्र में भी करवाने की योजना बना रही है. दोनों सर्वे मिलकर देश में रोजगार की स्थिति का समग्र चित्र पेश कर सकेंगे.
अधिकतर विकसित देशों में रोजगार पर आधिकारिक मासिक आंकड़े तैयार किए जाते हैं. भारत को लंबे अंतराल पर होने वाले सरकारी सर्वे पर निर्भर रहना पड़ा है, जो रोजगार की पुरानी स्थिति बताते हैं. श्रम बाज़ार के हाइ फ्रिक्वेंसी डेटा भारतीय सांख्यिकीय ढांचे की अहम कमियों को दूर कर सकते हैं. इससे श्रम बाज़ार पर सामयिक निगरानी रखी जा सकती है, जो कि देश रोजगार के अवसर बढ़ाने और हुनर के विकास के लिए जरूरी है. ऐसे सर्वे रोजगार बढ़ाने में विभिन्न सेक्टरों के योगदान का भी जायजा दे सकते हैं.
स्टैटिस्टिक्स ऐंड प्रोग्राम इंप्लेमेंटेशन मंत्रालय के ‘पीएलएफएस’ जैसे सर्वे परिवारों के सर्वे पर आधारित होते हैं और सप्लाई के मामले में रोजगार की स्थिति का आकलन प्रस्तुत करते हैं. ‘पीएलएफएस’ तिमाही आंकड़े पेश करता है जिनमें केवल शहरी भारत को कवर किया जाता है. ‘पीएलएफएस’ के वार्षिक डेटा में शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों को कवर किया जाता है. श्रम मंत्रालय का तिमाही रोजगार सर्वे संस्थागत आधारित होता है और डिमांड के मामले में रोजगार की स्थिति बताता है.
श्रम मंत्रालय के पिछले तिमाही रोजगार सर्वे इनके दायरे और स्तर के मसलों को लेकर स्थगित कर दिए गए थे. सरकार द्वारा गठित एक कमिटी ने पाया कि तिमाही सर्वेक्षणों और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के मासिक पे-रोल के आंकड़ों में अंतर थे. सरकार ने अब ज्यादा व्यापक दायरे में किए गए सर्वे को जारी किया है.
चूंकि यह अपनी तरह का पहला उपक्रम है पिछले साल के तुलनीय आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. वर्तमान सर्वे से पहले के ताजा आंकड़े 2013-14 में हुई छठी आर्थिक जनगणना के हैं. आर्थिक जनगणना संस्था आधारित होते हैं और वे अनियमित अंतरालों पर किए जाते हैं. सबसे ताजा आर्थिक जनगणना 2020 में की गई थी और उसके आंकड़े अभी सार्वजनिक नहीं किए गए हैं. इसलिए छठी आर्थिक जनगणना में शामिल संस्थाओं को हाल में जारी तिमाही रोजगार सर्वे में संदर्भ के तौर पर इस्तेमाल किया गया है.
इस सर्वे में शामिल किए गए अधिकतर सेक्टरों ने 2013-14 में हुई छठी आर्थिक जनगणना के आंकड़ों की तुलना में रोजगार में वृद्धि दर्शाई है. उम्मीद के मुताबिक सबसे प्रभावशाली 152 प्रतिशत की वृद्धि आइटी/बीपीओ सेक्टर में दर्ज की गई है. स्वास्थ्य, वित्तीय सेवा, मैनुफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्सन सेक्टरों में भी रोजगार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. लेकिन व्यापार, होटल-रेस्तरां सेक्टरों में रोजगार 2013-14 के मुक़ाबले कम हुए हैं. इन सेक्टरों पर कोविड महामारी के कारण सबसे ज्यादा मार पड़ी है. महिला कामगारों की संख्या में 29 फीसदी की कमी आई है, जबकि 2013-14 की आर्थिक जनगणना में 31 प्रतिशत की कमी आई थी.
नौ सेक्टरों में काम कर रहे करीब 3.08 करोड़ कामगारों में से 41 फीसदी मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में हैं. इसके अलावा शिक्षा सेक्टर में 22 फीसदी हैं. सबसे कम अनुपात रेस्तरां (2.9 फीसदी) और कंस्ट्रक्सन (2.4 फीसदी) में है. इन दो सेक्टरों में यह अनुपात कोविड और उसके कारण लगी पाबंदियों के कारण हुआ है.
अगले तिमाही सर्वे में, जब कोविड की पाबंदियां हट जाएंगी तब पिछले दशक में बनी दिशा का बेहतर चित्र मिल सकेगा.
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रोजगार के स्वरूप
सर्वे रोजगार के मोटे आंकड़ों के अलावा बारीक विवरण भी उपलब्ध कराता है, मसलन नियमित रोजगार, अनुबंधी या अस्थायी रोजगार, रोजगार में स्त्री-पुरुष का अनुपात, संस्था द्वार हुनर विकास के कार्यक्रमों के विवरण आदि. सर्वे के मुताबिक, नौ सेक्टरों के अनुमानित कामगारों में से 88 प्रतिशत नियमित रोजगार वाले हैं लेकिन कंस्ट्रक्सन सेक्टर में अनुबंधी या अस्थायी कामगारों का अनुपात सबसे ज्यादा है.
गौरतलब है कि औपचारिक सेक्टरों में भी लघु उपक्रमों का अनुपात उल्लेखनीय है. करीब 62 फीसदी संस्थाओं में 10 से लेकर 39 कामगार तक काम कर रहे थे. 27 प्रतिशत संस्थाओं ने कोविड काल में लॉकडाउन के कारण रोजगार में गिरावट दर्ज की, तो सुकून की बात यह रही कि नौ गैर-कृषि सेक्टरों के 81 फीसदी कामगारों को पूरा वेतन मिलता रहा. लेकिन कंस्ट्रक्सन सेक्टर के अधिकांश कामगारों को कम वेतन स्वीकार करना पड़ा.
सरकार ने तिमाही रोजगार सर्वे जारी करने का अच्छा चलन शुरू किया है. आगे चलकर यह शोध और नीति निर्धारण के मामलों में काफी उपयोगी साबित होगा.
(इला पटनायक एक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं. राधिका पांडे एनआईपीएफपी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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