नयी दिल्ली, चार अप्रैल (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) के वरिष्ठ अधिकारियों ने धनप्रेषण की लागत कम करने से संबंधित एक प्रस्तुति विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्यों के समक्ष दी है। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी।
भारत चाहता है कि धनप्रेषण या रेमिटेंस की लागत को कम करने के लिए डब्ल्यूटीओ के सदस्य देशों के बीच यूपीआई जैसी खुली और अंतर-संचालनीय भुगतान प्रणालियों को अपनाया जाए। इसके लिए वह इस समूह पर दबाव डाल रहा है।
प्रेषण लागत में कटौती के लिए भारत डिजिटल हस्तांतरण को प्रोत्साहित करने, अंतर-संचालनीय प्रणालियों को बढ़ावा देने, प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने, नियमों को सुव्यवस्थित करने और मूल्य-निर्धारण पारदर्शिता बढ़ाने का सुझाव दे रहा है।
भारत ने इस संबंध में एक प्रस्ताव फरवरी में अबू धाबी में आयोजित डब्ल्यूटीओ के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भी रखा था।
अधिकारी ने कहा, ‘‘हमने प्रेषण की लागत पर एक प्रस्तुति देने का अनुरोध किया था। आरबीआई और एनपीसीआई ने 25 मार्च को यह प्रस्तुति दी थी। जिनेवा में इस विषय पर आगे भी बैठकें जारी रहेंगी।’’
वैश्विक स्तर पर धनप्रेषण पर आने वाली लागत लगभग 6.18 प्रतिशत है जो संयुक्त राष्ट्र के तीन प्रतिशत के लक्ष्य से काफी अधिक है।
भारत के अधिकारी ने कहा, ‘‘हमने डब्ल्यूटीओ सदस्यों से कहा है कि यह लागत अधिक है। प्रवासी भारतीय नागरिक बड़ी संख्या में विदेशों में रहते हैं। उनका स्वदेश भेजा गया धन भुगतान संतुलन का प्रमुख हिस्सा होता है और यह आय का भी एक महत्वपूर्ण स्रोत है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमारी मांग है कि देशों और बैंकों के बीच बेहतर समझ होनी चाहिए ताकि शुल्क केवल एक तरफ ही लगाया जाए, जो कि तीन प्रतिशत है। व्यापार के लिए दोहरा कराधान कभी भी अच्छा विचार नहीं है। इसमें यूपीआई जैसा डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा भुगतान को आसान बना सकता है।’’
हालांकि, डब्ल्यूटीओ के सदस्यों की एक बड़ी तादाद भारत के प्रस्ताव का समर्थन कर रही है लेकिन अमेरिका और स्विट्जरलैंड इसका विरोध कर रहे हैं। इसकी वजह यह है कि इन देशों के बड़े बैंक हैं और उन्हें इन शुल्कों के माध्यम से भारी कमाई होती है।’’
इन देशों ने अबू धाबी सम्मेलन में भी भारत के प्रस्ताव पर वीटो करते हुए कहा था कि उन्हें इसपर और विचार करने की जरूरत है।
भाषा प्रेम प्रेम अजय
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