नयी दिल्ली, 26 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि किसी विवाद की स्थिति में ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवाला संहिता (आईबीसी) को सीमा-शुल्क अधिनियम के ऊपर अहमियत दी जाएगी।
मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण की अगुआई वाली पीठ ने एक आदेश में कहा कि अगर किसी मामले में आईबीसी कानून के तहत कार्यवाही शुरू हो चुकी है तो सीमा-शुल्क अधिकारियों के पास कर्जदार कंपनी से बकाया वसूली की प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार नहीं रह जाता है।
शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि दिवाला प्रक्रिया शुरू हो जाने पर सीमा-शुल्क विभाग न तो सामान के मालिकाना हक का दावा कर सकता है और न सामान की बिक्री का नोटिस ही जारी कर सकता है।
पीठ ने राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय पंचाट (एनसीएलएटी) के उस आदेश को निरस्त कर दिया जिसके जरिये केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा-शुल्क बोर्ड को अपने गोदामों में पड़े हुए कुछ सामान को रिहा करने की छूट दी गई थी।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘यह ध्यान रखा जाए कि सीमा-शुल्क अधिनियम और आईबीसी अधिनियम अपने-अपने क्षेत्र में लागू होते हैं लेकिन किसी संघर्ष की स्थिति में आईबीसी अधिनियम सीमा-शुल्क अधिनियम पर अधिमानता पाता है।’
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