नयी दिल्ली, दो जनवरी (भाषा) भारतीय निर्यातक उच्च ब्याज दरों तथा निर्यात वित्त में गिरावट के कारण नगदी संबंधी चुनौतियों से जूझ रहे हैं, जिसका असर उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता पर पड़ रहा है।
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की निर्यात-आयात (एक्जिम) पर राष्ट्रीय समिति के चेयरमैन संजय बुधिया ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि इन मुद्दों से निपटने के लिए सरकार तथा बैंकों को मिलकर प्रभावी समाधान निकालना होगा।
बुधिया ने सुझाव दिया कि सरकार को एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु व मझौले उद्यम) सहित सभी विनिर्माण निर्यातकों के लिए ब्याज समानीकरण योजना (जो 31 दिसंबर 2024 को समाप्त हो रही है) को तीन साल के लिए बढ़ा देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि योजना का दीर्घावधि तक विस्तार एक महत्वपूर्ण कदम होगा, क्योंकि इसके सीमित विस्तार से भारतीय विनिर्माता नुकसान में रहेंगे।
बुधिया ने कहा, ‘‘ निर्यातक वास्तव में नगदी के मोर्चे पर महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उच्च ब्याज दरें तथा निर्यात वित्त में गिरावट से उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो रही है।’’
एमएसएमई निर्यातक जो भारत के निर्यात परिदृश्य की रीढ़ हैं, उन्हें पूर्व तथा पश्चात निर्यात ऋण के लिए ब्याज सब्सिडी को तीन प्रतिशत से बढ़ाकर पांच प्रतिशत करने से बहुत लाभ होगा। खासकर चमड़ा, इंजीनियरिंग, परिधान तथा रत्न व आभूषण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में..।
निर्यातकों के शीर्ष संगठन फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन (फियो) ने भी मांग की कि सरकार आगामी बजट में इस योजना को पांच साल के लिए बढ़ाए।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वित्त वर्ष 2025-26 के लिए एक फरवरी को बजट पेश करेंगी।
इसके अलावा, उन्होंने कहा कि बड़ी विदेशी परियोजनाओं के लिए ऋण पत्र सुविधाओं का विस्तार करने से निर्यातकों को बहुत आवश्यक सहायता मिल सकती है।
बुधिया ने कहा, ‘‘ बैंकों और वित्तीय संस्थानों को निर्यात ऋण गारंटी कार्यक्रमों के अंतर्गत ‘कवरेज’ को व्यापक बनाने की दिशा में काम करना चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि भारतीय निर्यात ऋण गारंटी निगम (ईसीजीसी) वर्तमान में 50 करोड़ रुपये तक की ऋण सीमा वाले निर्यातकों के लिए 90 प्रतिशत बीमा ‘कवर’ प्रदान करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘ इस कवरेज को 100 करोड़ रुपये तक बढ़ाया जा सकता है। साथ ही ऋण तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित करने के लिए अधिक बैंकों को इसमें शामिल किया जा सकता है।’’
बुधिया पैटन समूह के प्रबंध निदेशक भी हैं।
इस वर्ष देश की निर्यात संभावनाओं पर ‘हाई-टेक गियर्स’ के चेयरमैन दीप कपूरिया ने कहा, ‘‘ अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद का कार्य़भार संभालने के साथ ही 2025 में अमेरिकी की व्यापारिक नीति में बदलाव के आसार हैं। इसमें शुल्क बढ़ने का खतरा भी शामिल है जो वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं को बाधित और प्रमुख व्यापारिक साझेदारों को प्रभावित कर सकता है। ’’
उन्होंने कहा कि अंकटाड की ओर से व्यापार पर जारी नवीनतम मासिक जानकारी के अनुसार, व्यापार अधिशेष और उच्च शुल्क वाले देश अमेरिकी व्यापार नीति में बदलाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं और ट्रंप के अनुसार भारत दोनों ही स्थितियों के दायरे में आता है।
कपूरिया ने कहा, ‘‘ ऐसे एकतरफा कदमों से जवाबी कार्रवाई के आसार बढ़ जाते हैं और इसके व्यापक प्रभाव पड़ते हैं जिससे वैश्विक व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भारतीय उद्योग को अपनी व्यापार रणनीति बनाते समय वैश्विक व्यापार परिदृश्य पर इस संभावित उभरते परिदृश्य को ध्यान में रखना होगा, क्योंकि लंबे समय से जारी भू-राजनीतिक उथल-पुथल पहले से ही वैश्विक व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है।’’
भाषा निहारिका नरेश
नरेश
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