नयी दिल्ली, चार मई (भाषा) दूरसंचार उद्योग निकाय सीओएआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सौर ऊर्जा ड्रोन, गुब्बारे, हवाई जहाज आदि जैसे अधिक ऊंचाई वाले मंच उपग्रहों (एचएपीएस) की तुलना में कम लागत पर सुरक्षित और लचीला कवरेज प्रदान कर सकते हैं।
सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) के महानिदेशक एस पी कोचर ने कहा कि अमेरिका, जापान, ब्रिटेन जैसे देश तथा एयरबस (जेफिर) और सॉफ्टबैंक जैसी कंपनियां एचएपीएस प्रौद्योगिकियों में भारी निवेश कर रही हैं और भारत को एचएपीएस परिचालन, स्पेक्ट्रम आवंटन और हवाई क्षेत्र प्रबंधन के लिए नियामक ढांचे पर काम करना शुरू कर देना चाहिए।
कोचर की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब सीओएआई के प्रमुख सदस्य भारती एयरटेल और रिलायंस जियो ने उपग्रह सेवाओं के लिए एलन मस्क की स्टारलिंक के साथ हाथ मिलाया है, जबकि शुरुआत में उन्होंने भारतीय बाजार में प्रवेश के लिए स्टारलिंक के प्रयास का विरोध किया था और उसमें बाधा डाली थी।
स्टारलिंक को भारत में सेवाएं शुरू करने के लिए सरकार की मंजूरी मिलनी बाकी है, लेकिन सुरक्षा मंजूरी मिलने तक इंतजार करना होगा।
कोचर ने स्पष्ट करते हुए कहा, “एचएपीएस का मुख्य उद्देश्य उपग्रहों के समान है, लेकिन इसका लाभ यह है कि इसे तेजी से और कम लागत पर तैनात किया जा सकता है। एचएपीएस भूस्थिर या पृथ्वी की निचली कक्षा के उपग्रहों की तुलना में बहुत कम ऊंचाई (20-50 किमी) पर काम करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप काफी कम देरी होती है – जो वास्तविक समय के संचार और सैन्य अभियानों के लिए महत्वपूर्ण है।”
उन्होंने कहा कि एचएपीएस मंचों को तेजी से तैनात, पुनः स्थापित या पुनः प्राप्त किया जा सकता है, जिससे सामरिक लचीलापन प्राप्त होता है जो उपग्रह कक्षा में स्थापित होने के बाद प्रदान नहीं कर सकते हैं, जो उन्हें आपदा रिकवरी और आपातकालीन नेटवर्क के लिए, बाढ़ या भूकंप की स्थिति में आपातकालीन संचार और आपदा क्षेत्रों में निगरानी के लिए आदर्श बनाता है।
कोचर ने कहा, “एचएपीएस कुछ अंतरिक्ष-आधारित खतरों जैसे कि उपग्रह-रोधी (एएसएटी) हथियारों, कक्षीय मलबे या उच्च-कक्षा के बुनियादी ढांचे पर लक्षित जैमिंग हमलों के प्रति कम संवेदनशील हैं। सुरक्षा के दृष्टिकोण से, एचएपीएस अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष संधियों का उल्लंघन किए बिना या महंगे उपग्रह समूहों पर निर्भर हुए बिना संवेदनशील सीमा क्षेत्रों या समुद्री क्षेत्रों की लगातार निगरानी की अनुमति देता है।”
उपग्रह अधिक ऊंचाई पर काम करते हैं और इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि उनके सिग्नल देश की सीमा से बाहर भी पहुंच जाएं।
भाषा अनुराग
अनुराग
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.