मुंबई, पांच अगस्त (भाषा) अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों का अनुमान है कि रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) उस समय तक दरों में वृद्धि करती रहेगी जब तक कि नीतिगत दर चालू वित्त वर्ष के अंत तक 6-6.5 फीसदी की ‘तटस्थ दर’ तक नहीं पहुंच जाती।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को खुदरा महंगाई को काबू में लाने के लिये नीतिगत दर रेपो को 0.5 प्रतिशत बढ़ाकर 5.4 प्रतिशत कर दिया। नीतिगत दर में बढ़ोतरी का यह लगातार तीसरा मौका है। वित्त वर्ष 2022-23 में अब तक रेपो दर में 1.4 प्रतिशत की वृद्धि की जा चुकी है। इसके साथ ही प्रमुख नीतिगत दर महामारी-पूर्व से अधिक हो गई है। फरवरी, 2020 में रेपो दर 5.15 प्रतिशत पर थी।
इंडिया रेटिंग्स में प्रधान अर्थशास्त्री सुनील कुमार सिन्हा ने कहा, ‘‘आरबीआई ‘तटस्थ नीतिगत दर’ हासिल करने तक रेपो दर में वृद्धि का सिलसिला जारी रख सकता है।’’
सिन्हा ने कहा कि इसके अल्पकालीन नीतिगत दर होने से उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था दीर्घकाल में स्थिर होगी। उन्होंने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि मौजूदा माहौल में यह तटस्थ नीतिगत दर 6-6.5 फीसदी के बीच रह सकती है।’’
स्विस ब्रोकरेज फर्म यूबीएस सिक्योरिटीज ने अनुमान जताया है कि वित्त वर्ष के अंत तक एमपीसी रेपो दर को और बढ़ाकर 5.75 फीसदी तक ले जा सकती है। उसने कहा कि वृद्धि और मुद्रास्फीति के परिदृश्य में अनिश्चितताएं अधिक बनी हुई हैं और आगे जाकर दरों में वृद्धि आंकड़ों पर निर्भर करेगी।
यूबीएस सिक्योरिटीज इंडिया की मुख्य अर्थशास्त्री तन्वी गुप्ता जैन ने दरों में आगे और वृद्धि का अनुमान जताते हुए बढ़ते चालू खाता घाटे को इसकी वजह बताया। चालू खाते का घाटा वित्त वर्ष की पहली छमाही में जीडीपी का 3.5-4 फीसदी के बीच रह सकता है।
बार्कलेज इंडिया में मुख्य अर्थशास्त्री राहुल बजोरिया ने कहा कि रेपो दर में दिसंबर तक 0.50 फीसदी की वृद्धि और की जा सकती है। वहीं सिंगापुर के डीबीएस में वरिष्ठ अर्थशास्त्री राधिका राव ने कहा कि वित्त वर्ष 2023-24 की शुरुआत तक मुद्रास्फीति निर्धारित लक्ष्य के ऊपर बनी रह सकती है लिहाजा मार्च तक दर में 0.75 फीसदी की और वृद्धि देखी जा सकती है।
भाषा मानसी प्रेम
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