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Wednesday, 15 January, 2025
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प्रीमियम को युक्तिसंगत बनाने के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सुधार करेगी सरकार

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( लक्ष्मी देवी)

नयी दिल्ली, एक सितंबर (भाषा) सरकार की प्रमुख फसल बीमा योजना (प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना-पीएमएफबीवाई) में कुछ बीमा कंपनियों द्वारा मुनाफा कमाने की खबरों के बीच केंद्र प्रीमियम दर को युक्तिसंगत बनाने और अधिक बीमाकर्ताओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए इसमें सुधार की योजना बना रहा है।

सूत्रों के अनुसार, योजना में संभावित महत्वपूर्ण बदलाव फसल वर्ष 2023-24 (जुलाई-जून) से केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद लागू किए जाएंगे।

फरवरी, 2016 में शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) का उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली फसल के नुकसान/क्षति से पीड़ित किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।

इस योजना के तहत, किसानों द्वारा देय अधिकतम प्रीमियम खरीफ (गर्मी) के मौसम में उगाई जाने वाली सभी खाद्य और तिलहन फसलों के लिए दो प्रतिशत, रबी (सर्दियों) के मौसम में उगाई जाने वाली समान फसलों के लिए 1.5 प्रतिशत और वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए पांच प्रतिशत है।

किसानों द्वारा देय प्रीमियम और बीमा शुल्क की दर के बीच का अंतर केंद्र और राज्यों द्वारा समान रूप से साझा किया जाता है।

किसानों की स्वैच्छिक भागीदारी को संभव बनाने और किसी भी घटना के 72 घंटे के भीतर फसल के नुकसान की रिपोर्ट करने के लिए इस योजना को अंतिम बार वर्ष 2020 में संशोधित किया गया था।

सरकारी सूत्रों के अनुसार, योजना में और सुधार की आवश्यकता महसूस की गई क्योंकि पीएमएफबीवाई में बीमा कंपनियों की भागीदारी घट रही थी। इसके कारण प्रतिस्पर्धा की कमी हो रही थी जिसकी वजह से मौजूदा बीमाकर्ता अधिक प्रीमियम दर वसूलने के लिए बाध्य हुए।

नीति के अनुसार, बीमा कंपनियों को एक निविदा प्रक्रिया के माध्यम से तीन फसल वर्षों के लिए सूचीबद्ध किया जाता है। वर्ष 2019-20 से वर्ष 2022-23 तक की अवधि के लिए लगभग 18 बीमा कंपनियों को पैनल में रखा गया था। हालांकि, उनमें से आठ कंपनियां बाहर हो गई और 10 कंपनियां अब इस योजना में भाग ले रही हैं।

सूत्रों ने कहा कि उच्च दावा अनुपात के बाद भारी नुकसान के कारण आठ बीमा कंपनियों फसल वर्ष 2021-22 में कारोबार से बाहर हो गईं, जिनमें सरकारी और निजी क्षेत्र से चार-चार कंपनियां शामिल थीं।

हालांकि, प्रतिस्पर्धा के अभाव में जो बीमा कंपनियां मैदान में रह गई थीं, उन्होंने उच्च प्रीमियम तय किया। नतीजतन, कुछ कंपनियों ने पिछले फसल वर्ष के दौरान भारी मुनाफा कमाया क्योंकि फसल के नुकसान के दावे कम थे।

सूत्रों ने कहा कि इससे कुछ राज्य सरकारों को यह भरोसा हो गया कि पीएमएफबीवाई से केवल बीमा कंपनियों को फायदा हो रहा है, किसानों को नहीं।

सूत्रों ने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए कृषि मंत्रालय द्वारा 2021 में गठित एक कार्यसमूह ने पूरे मुद्दे की जांच की और एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की।

सूत्रों ने कहा कि कार्यसमूह ने पीएमएफबीवाई को लागू करने के लिए दो दृष्टिकोणों की सिफारिश की है।

एक ‘जोखिम हस्तांतरण दृष्टिकोण’ है, जिसका वर्तमान में पालन किया जा रहा है, जिसमें पूरा जोखिम, लागू करने वाली बीमा कंपनियों को स्थानांतरित किया जाता है। इसमें बीमा कंपनी द्वारा संपूर्ण दावा देयता वहन करना शामिल है।

दूसरा ‘जोखिम भागीदारी दृष्टिकोण’ है, जिसके तहत राज्यों को अपनाने के लिए तीन वैकल्पिक मॉडल की सिफारिश की जाती है। इसमें दावों के साथ-साथ अधिशेष प्रीमियम राशि (दावे को मंजूरी देने के बाद अर्जित) को इसे लागू करने वाले राज्यों और बीमाकर्ता के बीच पारस्परिक रूप से सहमत फॉर्मूले के अनुसार साझा किया जाता है।

तीन मॉडल हैं: लाभ और हानि साझा करने वाला मॉडल; कप और कैप मॉडल (60:130); और कप और कैप मॉडल (80-110)।

सूत्रों ने कहा कि लाभ और हानि के बंटवारे के मॉडल के तहत बीमा कंपनियों और सरकार के बीच लाभ और हानि को साझा करने के लिए एक राज्य विशिष्ट जोखिम दायरा बनाया जाएगा। उदाहरण के लिए, बिहार के लिए यह दायरा महाराष्ट्र से अलग होगा।

कप और कैप मॉडल (60:130) के तहत, बीमा कंपनियां तब भुगतान करेंगी जब दावा सकल प्रीमियम के 60 से 130 प्रतिशत के बीच होगा। मान लीजिए कि दावा, सकल प्रीमियम के 60 प्रतिशत से कम का है, तो इसे सरकार द्वारा भुगतान किया जायेगा। अगर यह दावा सकल प्रीमियम के 130 प्रतिशत से ऊपर राशि के लिए है तो सरकार बीमा कंपनियों के जरिये दावा राशि का भुगतान करेगी।

सूत्रों ने कहा कि तीसरा मॉडल कप और कैप मॉडल (80:110) का सुझाव दिया गया है जो ऊपर जैसा ही है। लेकिन यदि यह दावा सकल प्रीमियम के 80 से 110 प्रतिशत के बीच का है, तो बीमा कंपनियां दावों को मंजूरी दे देंगी। सूत्रों ने कहा कि यह मॉडल मौजूदा समय में महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में लागू किया जा रहा है।

सूत्रों के अनुसार कार्यदल ने फसल नुकसान के त्वरित आकलन और किसानों के दावों के शीघ्र भुगतान के लिए ड्रोन जैसी नवीनतम तकनीक के इस्तेमाल का भी सुझाव दिया है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020-21 में दावा अनुपात सकल प्रीमियम का 62.3 प्रतिशत रहा। रिपोर्ट किए गए दावे 19,022 करोड़ रुपये के लिए थे, जिसमें से अब तक 17,676 करोड़ का भुगतान किया जा चुका है।

आंकड़ों से पता चलता है कि फसल वर्ष 2022-23 के दौरान पीएमएफबीवाई के तहत दावे 9,867 करोड़ रुपये के लिए थे, जिसमें से अबतक 8793 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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