नयी दिल्ली, 16 अप्रैल (भाषा) सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को गति और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए खनिज क्षेत्र में तत्काल सुधार करने की जरूरत है। इसके साथ ही मौजूदा और भविष्य की सभी कैप्टिव खदानों (निजी उपयोग वाली खदानें) को मर्चेंट खदानों (व्यापारिक खदानें) में बदला जाए ताकि छोटे और मझोले व्यवसायों को खनिज और कोयले की आपूर्ति बढ़ाई जा सके।
‘‘जन आंदोलन: भारत में बदलाव के लिए’’ नाम की किताब में उद्यमी आर पी गुप्ता ने यह विचार जताए हैं। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष मौजूद ज्वलंत मुद्दों का जिक्र करते हुए कहा है कि भारतीय कारोबारियों को देश को समृद्ध और जीवंत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।
गुप्ता ने अपनी किताब में कहा है कि खनिज और प्राथमिक ऊर्जा (कोयला, पेट्रोलियम और गैस) आधुनिक औद्योगिक अर्थव्यवस्था के विकास के लिए बुनियादी कारक हैं और भारत को इन खनिज संसाधनों की अधिशेष उपलब्धता सुनिश्चित करने और आयात निर्भरता को कम करने के प्रयास करने चाहिए।
उन्होंने कहा है कि जीडीपी को गति देने और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत को खनिज संबंधी नीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए। इसमें बदलाव करने से अनेक रोजगार पैदा होंगे।
लेखक ने कहा कि 2001 के बाद लंबे समय तक भारत में 12 से 15 फीसदी की दर से औद्योगिक वृद्धि हुई लेकिन खनिज और कोयले की कमी से यह कायम नहीं रह पाई। अत्यधिक नियामकीय नियंत्रण से असुविधा बढ़ी और खदानें बंद होने लगीं जिससे किल्लत और बढ़ गई और नतीजा यह हुआ कि मुद्रास्फीति तथा व्यापार घाटा बढ़ गया।
अपने सुझावों में गुप्ता ने कहा कि मौजूदा खदानों के लिए भूमि अधिग्रहण, सतह का अधिकार (सरफेस राइट्स) और अन्य मंजूरियों को सुगम बनाया जाए जिससे उत्पाद में इजाफा हो सके।
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि निजी उपयोग वाली खदानों को व्यापारिक खदानों में बदला जाए ताकि ऐसे छोटे और मंझोले उपभोक्ताओं को खनिज और कोयले की आपूर्ति बढ़ सके जो अपने दम पर खदानों का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं हैं।
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मानसी प्रेम
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