नयी दिल्ली, 25 जनवरी (भाषा) सरकार ने मंगलवार को मानव बाल के निर्यात पर ‘अंकुश’ लगा दिए हैं। बाल उद्योग के अनुसार, यह एक ऐसा कदम है जिससे इस उत्पाद की भारत से कथित तस्करी को रोकने में मदद मिलेगी।
बालों के निर्यात की पहले बिना किसी अंकुश के अनुमति दी गई थी। लेकिन अब एक निर्यातक को वाणिज्य मंत्रालय के तहत विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) से अनुमति या लाइसेंस लेना होगा।
विदेश व्यापार महानिदेशक ( डीजीएफटी) संतोष कुमार सारंगी ने एक अधिसूचना में कहा, ‘‘मानव बाल की निर्यात नीति, चाहे उसको लेकर कोई काम न भी किया गया, चाहे उसे धोया गया हो या नहीं धोया गया हो, मानव बाल या किसी अन्य प्रकार के कच्चे मानव बाल … को तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित श्रेणी में रखा गया है।’’
इस पहल का स्वागत करते हुए भारतीय बाल एवं बाल उत्पाद विनिर्माण एवं निर्यातक संघ के सदस्य सुनील ईमानी ने कहा कि यह उनकी लंबे समय से लंबित मांग थी।
उन्होंने बार-बार आरोप लगाया है कि यह श्रम प्रधान उद्योग म्यामां और चीन जैसे देशों में कच्चे मानव बाल की तस्करी की एक अजीबोगरीब चुनौती का सामना कर रहा है, जिससे स्थानीय उद्योगों और निर्यात को नुकसान हो रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘अब इस प्रतिबंध के साथ, केवल वास्तविक निर्यातक ही उत्पाद का निर्यात कर पाएंगे।’
भारत में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु के अलावा पश्चिम बंगाल उद्योग का प्रमुख केंद्र है। भारत के प्रमुख प्रतियोगी चीन, कंबोडिया, वियतनाम और म्यामां हैं।
कच्चे मानव बाल मुख्य रूप से इन राज्यों के घरों और मंदिरों से एकत्र किए जाते हैं और ये मुख्य रूप से विश्वस्तर पर सौंदर्य बाजार की जरूरतों को पूरा करते हैं।
भारत में दो तरह के बाल एकत्र किए जाते हैं- रेमी और नॉन-रेमी बाल। रेमी बाल, सबसे अच्छा ग्रेड, मंदिरों से एकत्र किया जाता है जहां तीर्थयात्री धार्मिक व्रत के हिस्से के रूप में अपने बाल दान करते हैं। इस गुणवत्ता वाले बाल का उपयोग मुख्य रूप से हेयरपीस और विग बनाने के लिए किया जाता है। गैर-रेमी बाल गांवों और शहरों में लोगों के छोटे समूहों द्वारा एकत्र किया जाने वाला घरेलू कचरा है। वे उसे अलग करते हैं और डीलरों को बेचते हैं।
चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-नवंबर के दौरान बालों का निर्यात 14.42 लाख डॉलर रहा है, जबकि वर्ष 2020-21 में यह सिर्फ 1.52 करोड़ डॉलर रहा था।
भाषा राजेश राजेश अजय
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