नयी दिल्ली, तीन नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को दूरसंचार कंपनी वोडाफोन आइडिया को बड़ी राहत देते हुए कहा कि सरकार कंपनी के समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) से जुड़े सभी बकाया पर पुनर्विचार कर सकती है और राहत केवल वित्त वर्ष 2016-17 के अतिरिक्त एजीआर बकाये तक ही सीमित नहीं होगी।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने 27 अक्टूबर के अपने आदेश में हुई त्रुटि को स्पष्ट करते हुए कहा कि वोडाफोन आइडिया ने अपनी अपील में केवल अतिरिक्त एजीआर की देनदारी नहीं, बल्कि सभी एजीआर बकायों के पुनर्मूल्यांकन की भी मांग की थी।
वोडाफोन आइडिया के वकील ने शीर्ष अदालत से कहा कि पिछले आदेश के छठे पैरा में त्रुटि हुई है, जिसमें कहा गया था कि कंपनी ने केवल अतिरिक्त एजीआर देनदारी के लिए राहत मांगी है।
इस पर न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वोडाफोन आइडिया की याचिका में राहत का दायरा सभी बकाया देनदारी को शामिल करता है।
न्यायालय के इस स्पष्टीकरण से अब केंद्र सरकार को वोडाफोन आइडिया के सभी एजीआर बकायों पर पुनर्मिलान और राहत देने का रास्ता मिल गया है।
कर्ज के बोझ से डूबी कंपनी पर अतिरिक्त एजीआर बकाया लगभग 9,450 करोड़ रुपये का है जबकि दूरसंचार विभाग की उससे कुल एजीआर मांग मार्च, 2025 तक 83,500 करोड़ रुपये की है।
सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि दूरसंचार कंपनी में सरकार की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी होने और 20 करोड़ ग्राहकों के हितों को देखते हुए सरकार कंपनी के मुद्दों पर दोबारा विचार करने को तैयार है।
मुख्य न्यायाधीश ने आदेश में कहा, “केंद्र सरकार ने इस कंपनी में महत्वपूर्ण इक्विटी निवेश किया है और यह लाखों उपभोक्ताओं को प्रभावित करता है। इसलिए, हम सरकार को पुनर्विचार करने और जरूरी कदम उठाने से नहीं रोक सकते हैं।”
एजीआर के आधार पर दूरसंचार कंपनियां सरकार को लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम शुल्क का भुगतान करती हैं। इस पर विवाद 2000 के दशक से ही चलता आ रहा है कि एजीआर में गैर-दूरसंचार आय को भी शामिल किया जाए या नहीं।
उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2019 में एजीआर की परिभाषा को व्यापक रखते हुए सरकार के पक्ष में फैसला दिया था जिसके बाद वोडाफोन आइडिया, भारती एयरटेल सहित कई दूरसंचार कंपनियों पर भारी बकाया देनदारी आ गई थी।
भाषा प्रेम प्रेम अजय
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