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Sunday, 30 March, 2025
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‘बिजनेस के नज़रिए से अच्छा है’: जयशंकर ने अमेरिका और चीन दोनों के साथ बेहतर संबंधों की वकालत की

भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि मोदी और ट्रंप के बीच चर्चा से संकेत मिलता है कि अमेरिका भारत के साथ रक्षा और ऊर्जा संबंधों को गहरा करने का इच्छुक है, उन्होंने कहा कि चीन के साथ अच्छे संबंध 'हमारे आपसी हित में' हैं.

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नई दिल्ली: भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को राजधानी में एक बातचीत के दौरान नई दिल्ली और अमेरिका समेत चीन दोनों के बीच बेहतर संबंधों की वकालत की. जयशंकर ने जोर देकर कहा कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता “बिजनेस के नजरिए से अच्छा” है, जबकि चीन के साथ अच्छे संबंध हमारे “म्यूचुअल इंटरेस्ट” में हैं.

एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (एएसपीआई) और एशिया सोसाइटी इंडिया सेंटर द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए जयशंकर ने कहा, “अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए एक अच्छा व्यावसायिक मामला है. ध्यान रखें कि पहले [डॉनल्ड जे.] ट्रंप प्रशासन में, हमारे व्यापार वार्ताकारों और उनके वार्ताकारों ने वास्तव में एक सीमित सौदा करने की कोशिश में बहुत समय बिताया था…अमेरिका के साथ व्यापार समझौता वैचारिक रूप से नया नहीं है.” चर्चा का संचालन एशिया सोसाइटी के अध्यक्ष और सीईओ तथा कोरिया गणराज्य के पूर्व विदेश मंत्री क्यूंग-व्हा कांग ने किया.

अमेरिका के साथ समझौते पर जयशंकर ने कहा: “इस समय बहुत सक्रिय और गहन व्यापार चर्चा चल रही है.”

पिछले महीने जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाशिंगटन डी.सी. गए थे, तब अमेरिका और भारत ने यह ऐलान किया कि वे इस साल की शरद ऋतु (सर्दियों से पहले) तक अपने व्यापार समझौते के “पहले चरण” पर हस्ताक्षर करना चाहते हैं. इस महीने की शुरुआत में भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल की अमेरिका यात्रा के बाद बातचीत शुरू हुई थी.

वर्तमान में दक्षिण और मध्य एशिया के लिए अमेरिकी सहायक व्यापार प्रतिनिधि ब्रेंडन लिंच के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल सौदे की बातचीत जारी रखने के लिए 25 मार्च से 29 मार्च के बीच नई दिल्ली में है. पारस्परिक शुल्कों का खतरा मंडरा रहा है, जिसकी घोषणा ट्रंप ने की है. पारस्परिक शुल्क 2 अप्रैल को लगाए जाने की उम्मीद है.

यह संभावना है कि भारत, जिसने 2025-2026 के केंद्रीय बजट में बोरबॉन व्हिस्की और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे कुछ उत्पादों पर पहले ही शुल्क में कटौती कर दी है, समय सीमा से पहले और भी शुल्क में कटौती करेगा. ये शुल्क कटौती ऐसे समय में की गई है जब भारत ट्रंप प्रशासन के साथ अपने शुल्क दरों पर समझौता करने में अपनी रुचि दिखाने के लिए उत्सुक है. अमेरिका भारत का सबसे बड़ा वस्तु निर्यात बाजार है. 2023-2024 में, अमेरिका को भारतीय वस्तु निर्यात 77 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया.

हालांकि, इस तरह के सौदे के लिए एक व्यावसायिक मामला मौजूद है, लेकिन जयशंकर ने इस बात पर भी रौशनी डाली कि पिछले महीने मोदी और ट्रंप के बीच हुई चर्चाओं से संकेत मिलता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के साथ रक्षा और ऊर्जा दोनों संबंधों को गहरा करने के लिए उत्सुक हैं.

जयशंकर ने कहा, “हमने एक ऐसे राष्ट्रपति को देखा जो सुरक्षा-रक्षा साझेदारी बनाने में अधिक खुले और बहुत अधिक सक्रिय थे. [वे] अमेरिकी प्रौद्योगिकी संभावनाओं पर बहुत अधिक आगे थे…हम निश्चित रूप से इसके परिणामस्वरूप अधिक ठोस और उच्च गुणवत्ता वाले रक्षा संबंधों की उम्मीद करते हैं.”

जबकि भारतीय विदेश मंत्री भारत-अमेरिका संबंधों की गति के बारे में सकारात्मक थे, खासकर राष्ट्रपति ट्रंप के तहत, उन्होंने यह स्पष्ट किया कि रूस के साथ नई दिल्ली की दीर्घकालिक रक्षा साझेदारी 1965 से शुरू होने वाले सैन्य सौदों से वाशिंगटन के पीछे हटने का परिणाम थी.

ट्रंप प्रशासन ने भारत से रूसी सैन्य उपकरण खरीदना बंद करने का आग्रह किया है. खुद ट्रंप सहित वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक रूप से यही कहा है. जयशंकर ने बताया कि यह अमेरिका ही था, जिसने 1965 में भारत को उपकरण बेचने के संबंध में “खुद को खेल से बाहर” करने का विकल्प चुना, कम से कम 2005 तक.

चीन के साथ अच्छे संबंधों पर जयशंकर ने कहा, ‘म्यूचुअल इंटरेस्ट’

भारत-अमेरिका संबंधों पर चर्चा के बाद, जयशंकर ने इस बात पर भी चर्चा की कि नई दिल्ली और बीजिंग के बीच सकारात्मक संबंध कैसे “पारस्परिक रूप से लाभकारी” होंगे. भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि गलवान में हुई झड़पें भारत-चीन संबंधों के लिए बेहद “आघातकारी” थीं.

जयशंकर ने कहा, “मतभेद विवाद नहीं बनने चाहिए और प्रतिस्पर्धा संघर्ष नहीं बननी चाहिए. हम कई मुद्दों पर अलग-अलग हो सकते हैं, हम कई मुद्दों पर प्रतिस्पर्धा करते हैं. लेकिन क्योंकि हम प्रतिस्पर्धा करते हैं इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे बीच संघर्ष होना चाहिए. हम इस बारे में बहुत यथार्थवादी हैं.”

उन्होंने कहा: “अभी, हमें लगता है कि पिछले साल के अक्टूबर से, संबंधों में कुछ सुधार हुआ है. हम इसके विभिन्न पहलुओं पर काम कर रहे हैं…हम कदम दर कदम यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या हम 2020 में उनके कार्यों के परिणामस्वरूप हुए नुकसान को फिर से बना सकते हैं और उसे कम कर सकते हैं…हम वास्तव में, ईमानदारी से सोचते हैं कि यह हमारे पारस्परिक हित में है.”

2020 की गर्मियों में गलवान में हुई झड़पों ने भारत और चीन के बीच कूटनीतिक और राजनीतिक तनाव को बढ़ा दिया. अक्टूबर 2024 में, भारत ने पहली बार घोषणा की कि दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार घर्षण बिंदुओं पर पीछे हटने पर सहमत हुए हैं. उस समझौते के कुछ दिनों बाद, प्रधान मंत्री मोदी ने रूसी शहर कज़ान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की.

तब से, कई उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडलों की मुलाकात हुई है, जिसमें जयशंकर और उनके समकक्ष वांग यी शामिल हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी वांग के साथ चर्चा की है, और विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने इस साल जनवरी में बीजिंग में एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया.

चीन ने इस साल कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने की अनुमति देने पर सहमति व्यक्त की है, जबकि भारत ने आवश्यक तकनीकी मंजूरी के अधीन दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें फिर से शुरू करने पर सैद्धांतिक रूप से सहमति व्यक्त की है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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