नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने फैसला किया है कि 1 जनवरी 2020 से सोने के सभी आभूषण (ज्वैलरी) को बीआईएस हॉलमार्क से सत्यापित किया जाएगा. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है. उपभोक्ता मंत्रालय में एक अधिकारी ने बताया कि इस कदम से ग्राहक खुद को ठगा हुआ महसूस नहीं करेगा. इससे ज्वैलरी की गुणवत्ता को लेकर भी ग्राहक संतुष्ट हो सकेंगे.
केंद्र सरकार का ये फैसला उस वक्त आया है जब कुछ दिन बाद ही विश्व व्यापार संगठन द्वारा भारत को दी गई 8 दिसंबर की समयसीमा खत्म हो रही है. डब्ल्यूएचओ ने भारत में सोने की गुणवत्ता को लेकर बेंचमार्क तय करने को कहा था. अनुपालन करने में विफलता के परिणामस्वरूप अन्य डब्ल्यूटीओ हस्ताक्षरकर्ता देशों द्वारा भारतीय सोने के उत्पादों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है.
बीआईएस अधिनियम 2016 के मुताबिक ज्वैलरी बेचने वालों को सोने को मापन के तीन तरीकों में मार्क कराना होगा. जिसमें 14 कैरेट, 18 कैरेट और 22 कैरेट का सोना शामिल है. कैरेट एक मापन की प्रक्रिया है जो 24 भागों में से मिश्र धातु में सोने के अनुपात को दर्शाता है. जैसे कि एक 18 कैरेट सोना का मतलब 18/24 भाग से है.
सरकार गोल्ड हॉलमार्किंग को पूरे देश में चार फेस में लागू करने की योजना बना रही है. जिसकी शुरुआत मेट्रो शहरों से होगी. उपभोक्ता मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार ज्वैलर्स को एक साल का समय दिया जाएगा जिसमें उन्हें अपने सोने के उत्पादों को हॉलमार्क बनाना होगा, जो कि सरकार द्वारा नियम तय किया गया है.
सरकार देशभर में 861 हॉलमार्किंग केंद्र खोलने की भी योजना बना रही है. जहां ज्वैलर्स अपने को बीआईएस हॉलमार्किंग लाइसंस के लिए रजिस्टर करा सकेंगे. अधिकारी ने आगे बताया कि देश में 28 हज़ार ज्वैलर्स ने बीआईएस के अंतर्गत रजिस्टर कराया हुआ है.
ज्वैलर असोसिएशन ने कहा- इस कदम से बिजनेस प्रभावित हो सकता है
ज्वैलर असोसिएशन ने सरकार के इस कदम को लेकर कई चिंताएं खड़ी की है. उन्होंने कहा है कि इससे इस बिजनेस में थोड़े समय के लिए विघटन और प्रभावित हो सकता है.
इंडियन असोसिएशन ऑफ हॉलमार्किंग सेंटर्स में विजिलेंस कमिटी के चैयरमेन संतोष सालुनखे ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह कदम भारत में गोल्ड के सेल को प्रभावित कर सकता है, जो कि पहले से ही नोटबंदी और जीएसटी के कारण मंदी की मार झेल रहा है.’
यह भी पढ़ें : आरबीआई के महज सोना बेचने की अफवाह से ही क्यों देश की अर्थव्यवस्था में मच गई अफरा-तफरी
सालुनखे से इससे इतर ये भी कहा कि इस कदम से उद्योग और ग्राहकों को लंबे समय के लिए फायदा मिलेगा. ज्वैलरों और ग्राहकों के बीच पर्याप्त सूचना का अभाव काफी बड़ी समस्या है. हालांकि हॉलमार्क गोल्ड की कोई डिमांड नहीं है.
दिप्रिंट की पिछली रिपोर्ट के अनुसार, वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल ने कहा था कि भारत में इस साल गोल्ड की खरीद में भारी कमी आई है जो गिरकर 700-750 टन के बीच रह गई है. यह 2016 के बाद से सबसे निचला स्तर है. पिछले आंकड़ों से तुलना करें तो ये करीब 850 टन था. इसके इतर भारत में गोल्ड खरीदने वाले लोगों में भी कमी आई है. यह आंकड़ा जुलाई-सितंबर में 32 फीसदी की कमी से 123.9 टन पर आ गया है.
गोल्ड के निर्यात की मांग को बढ़ाने वाला फैसला
केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय द्वारा स्थापित जेम एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) के अनुसार अप्रैल-सितंबर 2018 में भारत 6,161 मिलियन डॉलर की गोल्ड ज्वैलरी का निर्यात करती थी. लेकिन इस साल इसी समयसीमा के भीतर इसमें 0.67 फीसदी की गिरावट आई है और अब ये निर्यात 6,119 मिलियन डॉलर है.
इंडियन असोसिएशन ऑफ हॉलमार्किंग सेंटर्स के अध्यक्ष उदय शिंदे ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरकार द्वारा किए गए फैसले से गोल्ड के बिजनेस और वैश्विक बाज़ार में इसकी विश्वसनीयता बढ़ेगी. उन्होंने कहा कि 2011-12 से भारतीय गोल्ड बाज़ार में ठहराव बना हुआ है. उस समय 2001 में इसका बिजनेस 1,0029 मिलियन डॉलर था और 2012 में 1,3267 डॉलर था.
शिंदे ने कहा कि हॉलमार्किंग के तीन नए विशिष्ट कैरेट घरेलू बाजार में भ्रम को कम करेंगे क्योंकि दक्षिण भारत में 22 कैरेट सोने के उत्पाद को अक्सर महाराष्ट्र में शुद्ध सोने के रूप में संदर्भित किया जाता है. इससे उत्पाद की गुणवत्ता पर संदेह होता है और खपत में कमी आती है.