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Tuesday, 19 November, 2024
होमदेशअर्थजगतवैश्विक आर्थिक सुस्ती भारत को झटका दे सकती है मगर 2023 की मंदी से चिंतित होने की जरूरत नहीं है    

वैश्विक आर्थिक सुस्ती भारत को झटका दे सकती है मगर 2023 की मंदी से चिंतित होने की जरूरत नहीं है    

आईएमएफ ने दुनिया की भावी आर्थिक दशा का जो अनुमान पेश किया है. उसने वैश्विक मंदी की आशंका को मजबूत कर दिया है जिसकी चिंता अमेरिका और विकसित देशों को करनी चाहिए, भारत में मंदी के आसार कम ही हैं.

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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने जुलाई की ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक’ अपडेट में चालू वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि दर में 80 ‘बेसिस प्वाइंट’ की गिरावट की भविष्यवाणी करते हुए कहा है कि यह दर 7.4 प्रतिशत रहेगी. आर्थिक वृद्धि के बारे में यह संशोधित अनुमान आधिकारिक अनुमानों के काफी करीब है और ज्यादा यथार्थपरक नज़र आती है. आईएमएफ ने अनुमान लगाया है कि अगले साल भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत रहेगी. यह संशोधन बाहरी स्थितियों और ब्याज दरों की ‘पॉलिसी’ को तेजी से सख्त बनाने के कारण किया गया है.  

2022 के लिए वैश्विक वृद्धि 3.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाते हुए आईएमएफ ने वैश्विक मंदी की आशंका जताई है (जिसे लगातार दो तिमाहियों में ऋणात्मक वृद्धि के रूप में परिभाषित किया जाता है). यह अमेरिका और दूसरे विकसित देशों के लिए चिंता का विषय है. भारत में मंदी की संभावना अभी तो कम ही दिखती है. 

अमेरिका में मंदी संभव 

आईएमएफ की रिपोर्ट ने 2022 में अमेरिकी आर्थिक वृद्धि 2.4 प्रतिशत रहने अनुमान लगाया है, जो अप्रैल की इसकी रिपोर्ट में दर्ज अनुमान से 1.4 प्रतिशत अंक कम है. 2023 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था एक फीसदी की दर से बढ़ सकती है. 2023 के उत्तरार्द्ध में यह दर और नीचे जा सकती है. 2023 की चौथी तिमाही में यह दर 0.6 फीसदी रह सकती है.  

आईएमएफ से विकास अनुमान (जुलाई) | ग्राफिक: सोहम सेन, दिप्रिंट टीम

अमेरिका में मंदी आने की संभावना को लेकर मिले-जुले अनुमान लगाए जा रहे हैं. जनवरी-मार्च की तिमाही में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सिकुड़न (कन्ट्रैक्शन) दर्ज की गई. एटलांटा के फेडरल रिजर्व बैंक के ‘जीडीपीनाउ’ के ताजा अनुमानों के मुताबिक अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी –1.6 प्रतिशत थी. इस पैमाने के मुताबिक अमेरिका में तो मंदी शुरू भी हो चुकी है. एटलांटा के फेडरल रिजर्व बैंक का विश्लेषण जीडीपी में वास्तविक वृद्धि का चालू अनुमान देता है, जबकि जीडीपी का आधिकारिक अनुमान अभी जारी किया जाना बाकी है. 

मुद्रास्फीति के कारण खर्चों पर रोक लगाना शुरू हो चुका है और उपभोक्ता निराशावादी हो रहे हैं. मिशिगन यूनिवर्सिटी का उपभोक्ता भावना सूचकांक अपने न्यूनतम स्तर तक गिर चुका है. एक साल बाद मुद्रास्फीति मध्यवर्ती अनुमान 5.2 प्रतिशत है, जो इसके 2 फीसदी के लक्ष्य से बहुत ऊपर है. लेकिन, दूसरे महत्वपूर्ण संकेतक भी हैं, मसलन कॉर्पोरेट सेल्स और रोजगार के आंकड़े, जो यह संकेत नहीं देते कि अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है. ‘ब्लूमबर्ग’ के अर्थशास्त्रियों द्वारा विविध संकेतकों के आधार पर किया गया सर्वे कहता है कि अगले साल तक अमेरिका में मंदी आने की संभावना 38 फीसदी है. 

मिशिगन विश्वविद्यालय के उपभोक्ता भावना का सूचकांक | ग्राफिक: सोहम सेन, दिप्रिंट टीम

आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुमान के मुताबिक इस साल वैश्विक मुद्रास्फीति 8.3 प्रतिशत के शिखर पर जा सकती है. अगले साल यह गिर कर 6 फीसदी से नीचे जा सकती है. विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति इस साल की 6.6 फीसदी से गिरकर अगले साल 3.3 फीसदी पर पहुंच सकती है. अगले साल तेल की कीमतों में 12 फीसदी की कमी आ सकती है. अगर वास्तविक मुद्रास्फीति इन्हीं अनुमानों के करीब रहती है तो ब्याज दरों में वृद्धि में अगली कुछ तिमाहियों के दौरान कमी आ सकती है. 


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अगले साल के लिए मुद्रास्फीति की उम्मीदें | ग्राफिक: सोहम सेन, दिप्रिंट टीम

भारत में मंदी के आसार कम हैं 

अर्थशास्त्रियों के ब्लूमबर्ग सर्वे के मुताबिक, भारत में मंदी की संभावना शून्य है. मुद्रास्फीति और वृद्धि दर में सुस्ती मुख्यतः बाहर से लगने वाले झटकों के कारण है. भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले बाहरी दबाव से थोड़ी राहत मिल सकती है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए अपनी ताजा बैठक में ब्याज दरों में 75 बेसिस प्वाइंट की वृद्धि करने का फैसला किया. उसने संकेत दिया कि वह आगे के लिए ठोस निर्देश देने की जगह हर बैठक में पॉलिसी तय करेगा. यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने मानक दर में 50 बेसिस प्वाइंट की वृद्धि करने का जो फैसला किया उसके कारण अमेरिकी डॉलर सूचकांक में कुछ कमी आई है. पूंजी के तेज बाह्य गमन की दिशा उलटने और कच्चे तेल तथा कमोडिटी की कीमतों में सुधार ने रुपये को अपनी कीमत में सुधार करने में मदद की है, जो प्रति डॉलर 80 की दर से ऊपर चली गई थी. 

उच्च आवृत्ति वाले संकेतक बताते हैं कि अर्थव्यवस्था में तीखी सुस्ती की कम संभावना है. एक जुलाई को खत्म हुए पखवाड़े में क्रेडिट में जबरदस्त 14.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई. एक उल्लेखनीय बात यह है कि उद्योगों को बैंक क्रेडिट में निरंतर उछाल दिख रही है. बैंक से विभिन्न सेक्टरों को दिए गए क्रेडिट के आंकड़े बताते हैं कि उद्योगों को बैंक क्रेडिट में तेजी मई 2022 में 8.7 फीसदी पर पहुँच गई. अति लघु, लघु और मझोले उद्योगों को क्रेडिट में सरकारी आपात क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम के कारण मजबूत वृद्धि हुई, हाल के दो महीनों ने दिखाया है कि बड़े उद्योगों को क्रेडिट में भी वृद्धि हो रही है. क्षमता के दोहन में बढ़ोतरी, इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च में वृद्धि और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन स्कीम को वित्त उपलब्ध कराए जाने के कारण कॉर्पोरेटों में भी उधार के लिए भूख बढ़ गई है. मुनाफे, पूंजी की स्थिति और परिसंपत्तियों की गुणवत्ता में सुधार के कारण बैंक क्रेडिट की मांग का समर्थन करने की बेहतर स्थिति में हैं. 

सेवा सेक्टर के अधिकतर संकेतकों में पिछले दो महीनों में बड़ी उछाल आई है. हाल के आंकड़े बताते हैं कि उपभोक्ता भी आर्थिक संभावनाओं को लेकर आशावादी हो रहे हैं. उपभोक्ता भावना सूचकांक (आइसीएस) में भी पिछले चार महीनों में हल्की वृद्धि के बाद जुलाई में सुधार होने ही वाला है.    

तेल की कीमतों में गिरावट के अनुमान भारत की मुद्रस्फीति के लिए अच्छी खबर है और यह भारतीय रिजर्व बैंक को ब्याज दरें बढ़ाने के लिए प्रेरित कर सकती है. 

वैश्विक आर्थिक सुस्ती का भारत की आर्थिक वृद्धि पर असर

अर्थव्यवस्था ने जुझारूपन दिखाया है, यह वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुस्ती और विकसित देशों में संभावित मंदी से अछूती नहीं रह सकती. 2021-22 में रेकॉर्ड वृद्धि दर्ज कराने के बाद आगामी महीनों में निर्यातों में संतुलन आ सकता है. खासतौर से अमेरिका में आर्थिक मंदी भारत से आईटी सेवाओं के निर्यात को प्रभावित कर सकती है. हालांकि, विदेशी क्लाएंटों की ओर से ऑर्डर अभी भी मजबूती से मिल रहे हैं लेकिन आइटी फ़र्मों के मुनाफे का मार्जिन सुस्ती की आशंकाओं के कारण सिकुड़ रहा है. 

अब पॉलिसी का ज़ोर मैक्रो-आर्थिक मजबूती, निर्यात में प्रतिस्पर्द्धी होने के कारण लाभ को बचाने, और मुद्रास्फीति को निशाना बनाने पर होना चाहिए. 

(राधिका पांडे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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