नयी दिल्ली, 24 जुलाई (भाषा) भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते में स्वदेश निर्मित कई पारंपरिक उत्पादों पर शुल्क में छूट दिए जाने के बाद भागलपुर सिल्क, पश्मीना शॉल, कोल्हापुरी चप्पल और तंजावुर डॉल (गुड़िया) अब ब्रिटेन के शॉपिंग मॉल और दुकानों में प्रमुखता से नजर आएगी।
इस व्यापार समझौते से लाभान्वित होने वाली अन्य वस्तुओं में बालूचरी साड़ियां (पश्चिम बंगाल), बंधिनी (गुजराती रंगाई कला), कांचीपुरम साड़ियां और तिरुपुर के बुने कपड़े भी शामिल हैं।
एक अधिकारी ने कहा, ‘‘बिहार का भागलपुर सिल्क अपनी चमकदार बनावट और उत्कृष्ट कारीगरी के लिए जाना जाता है। इस विशिष्ट उत्पाद को भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के जरिये ब्रिटेन में एक फलता-फूलता बाजार मिलेगा जिससे निर्यात के अवसर बढ़ेंगे और बिहार के स्थानीय कारीगरों को काफी लाभ होगा।’’
कृषि क्षेत्र में मखाना, शाही लीची, अराकू कॉफी और कश्मीरी केसर जैसी वस्तुओं की भी ब्रिटिश बाज़ार में पहुंच बढ़ेगी।
अधिकारी ने कहा, ‘‘शुल्क हटने के बाद अराकू कॉफी को ब्रिटेन में एक बड़ा बाजार मिलेगा। इससे इस जैविक कॉफी के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा और क्षेत्र के स्थानीय किसानों एवं समुदायों को समर्थन मिलेगा।’’
इसी तरह, भारतीय पारंपरिक खिलौने, जैसे नटुग्राम गुड़िया (पश्चिम बंगाल), सिक्की घास शिल्प (बिहार), तंजावुर गुड़िया (तमिलनाडु), और चन्नपटना खिलौने एवं गुड़िया (कर्नाटक) के निर्यात को भी काफी बढ़ावा मिलेगा।
वेल्लोर चप्पल (तमिलनाडु), शांतिनिकेतन चमड़ा (पश्चिम बंगाल), और कोल्हापुरी जूते (महाराष्ट्र) जैसे उत्पादों की ब्रिटेन के बाजार में आसान पहुंच होगी, जिससे इन पारंपरिक जूतों की मांग बढ़ेगी।
अधिकारी ने कहा, ‘‘जीआई (भौगोलिक संकेत) निशान के साथ कोल्हापुरी चप्पलों की ब्रिटेन में मांग बढ़ेगी, जिससे पारंपरिक दस्तकारी वाले फुटवियर के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय कारीगरों को समर्थन मिलेगा। इससे महाराष्ट्र की समृद्ध शिल्प विरासत को भी बढ़ावा मिलेगा।’’
इसके अलावा मोरबी सिरेमिक (गुजरात), बुलंदशहर के खुर्जा के बर्तन और कश्मीरी लकड़ी (कश्मीरी विलो) के क्रिकेट बैट को ब्रिटेन में बेहतर पहुंच मिलेगी।
व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौते पर लंदन में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटिश प्रधानमंत्री केअर स्टार्मर की मौजूदगी में हस्ताक्षर किए गए।
इस समझौते को लागू होने से पहले ब्रिटिश संसद से मंजूरी भी लेनी होगी। इस प्रक्रिया में लगभग एक साल लग सकता है।
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