नई दिल्ली: पिछले कुछ हफ्तों में सारा ध्यान विशेष रूप से पेट्रोलियम की बढ़ती कीमतों पर केंद्रित है लेकिन खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ाने वाले एक अन्य फैक्टर की काफी हद तक अनदेखी हुई है—और वो है खाद्य तेल.
जून में खुदरा मुद्रास्फीति का आंकड़ा 6.26 प्रतिशत था—जो भारतीय रिजर्व बैंक 6 प्रतिशत के अनुमान से अधिक था. इस महीने में जहां ईंधन मुद्रास्फीति 12.68 प्रतिशत रही, वहीं खाद्य तेल मुद्रास्फीति 34.78 प्रतिशत थी.
खाद्य तेल की कीमतों में पिछले कुछ महीनों से उछाल का रुख बना हुआ है.
चाहे सरसों, मूंगफली या पाम जैसे तेल हों, जिन्हें घरेलू उपयोग में लाया जाता है, या फिर व्यावसायिक रूप से इस्तेमाल होने वाले सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल, हाई टैक्स लेवी घटाकर कीमतों को काबू में लाने के सरकार के बावजूद इन खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई है.
इस विशेष सेगमेंट में मुद्रास्फीति आयातित खाद्य तेलों, खास तौर पर पाम ऑयल की कीमतों में वृद्धि के साथ नजर आई है, जिसने एक दशक से अधिक समय में अपने मूल्यों का 6 छुआ है. उपभोक्ता मामलों के विभाग के अनुसार, अन्य प्रमुख आयातित खाद्य तेलों मसलन सोयाबीन और सूरजमुखी तेल आदि का खुदरा मूल्य 150 रुपये प्रति किलोग्राम से ऊपर पहुंच गया है.
खाद्य तेल की कीमतों में उछाल ने देश में खाद्य और अन्य पदार्थों में मुद्रास्फीति को बढ़ा दिया है.
इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश में ताड़ के तेल से बने घी या मक्खन का सस्ता विकल्प और ज्यादातर कम आय वर्ग वाले परिवारों द्वारा तलने और खाने में इस्तेमाल किए जाने वाले वनस्पति की कीमत 1 जुलाई 2012 को दोगुनी होकर 140 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है जो कि 1 जुलाई 2020 को 72 रुपये/किलोग्राम थी.
खाद्य तेलों, मुख्यत: पाम ऑयल आदि के इस्तेमाल से तैयार होने वाले उत्पादों जैसे कॉमर्शियल इंस्टैंट फूड आइटम चिप्स और इंस्टेंट नूडल्स, पिज्जा ब्रेड के अलावा शेविंग क्रीम, टूथपेस्ट, लोशन, लिपस्टिक और अन्य पर्सनल केयर और सौंदर्य प्रसाधन से जुड़े उत्पादों की कीमतों में भी अच्छी-खासी वृद्धि हुई है.
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सरकारी प्रयासों का कीमतों पर कोई असर नहीं
अन्य वस्तुओं पर खाद्य तेल की कीमतों में वृद्धि का प्रभाव उसी तरह पड़ता है जैसे पेट्रोलियम के दाम पूरे औद्योगिक और कृषि क्षेत्र को प्रभावित करके मुद्रास्फीति बढ़ाते हैं. हालांकि, इसमें एक अपवाद है.
यद्यपि सरकार पेट्रोलियम उत्पादों और खाद्य तेलों दोनों पर भारी कर लगाती है लेकिन उसने खाद्य तेलों के मामले में कर संबंधी कुछ रियायतें देकर राहत प्रदान करने के प्रयास भी किए.
इसी माह जारी एक आदेश में नरेंद्र मोदी सरकार ने क्रूड पाम ऑयल पर बेसिक ड्यूटी 5 फीसदी घटाकर आयात शुल्क 30.25 फीसदी कर दिया. रिफाइंड पाम ऑयल पर आयात शुल्क भी पहले के 49.5 प्रतिशत से घटाकर 41.25 प्रतिशत कर दिया गया.
इस तरह के कदमों के बावजूद खाद्य तेलों की कीमतें में आए उछाल में कोई कमी नहीं आई है. यहां तक कि घरेलू स्तर पर उत्पादित होने वाले सरसों और मूंगफली जैसे तेलों की कीमतें भी आयातित और व्यावसायिक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले खाद्य तेलों के स्तर तक बढ़ गई हैं.
ऐसा इसलिए क्योंकि खाद्य तेल काफी ज्यादा विकल्पों वाले उत्पाद हैं, और कीमतों में इस तरह के उतार-चढ़ाव उपभोक्ताओं को सस्ते विकल्प अपनाने के लिए प्रेरित करता है.
कीमतों का दबाव जारी रहेगा
इसके अलावा, सख्त कोविड-19 लॉकडाउन के बीच सरसों और मूंगफली के तेल में भी घरेलू खपत का दबाव बढ़ा है क्योंकि घर के बने भोजन में इन तेलों का उपयोग बढ़ा है.
सरसों तेल की खुदरा कीमतें जहां जुलाई 2020 में 94 रुपये प्रति किलोग्राम के मुकाबले बढ़कर इस जुलाई में 168 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई हैं, वहीं मूंगफली तेल की कीमतें भी इसी अवधि में 105 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 178 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई हैं.
कीमतों में इस उछाल में जल्द कोई नरमी आने के आसार नहीं है क्योंकि भारत घरेलू मांग की आधे से ज्यादा आपूर्ति आयात के जरिये ही पूरा करता है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी से उछाल आने के कई फैक्टर हैं.
सोयाबीन तेल की कीमतें अमेरिका, ब्राजील और अन्य देशों में इससे रिन्यूएबल बायोडीजल ईंधन बनाने के प्रयासों के कारण बढ़ी है.
अन्य फैक्टर में चीन द्वारा सोयाबीन की थोक खरीद, मलेशिया में श्रम संबंधी मुद्दों के कारण पाम का उत्पादन प्रभावित होना, पाम और सोया उत्पादक क्षेत्रों पर मौसम का प्रतिकूल असर, साथ ही क्रूड पाम तेल पर हाई एक्सपोर्ट ड्यूटी शामिल हैं.
केंद्रीय तेल उद्योग और व्यापार संगठन के अध्यक्ष सुरेश नागपाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘चीन की तरफ से सोयाबीन की थोक खरीद, यूक्रेन जैसे सूरजमुखी का तेल उत्पादन करने वाले क्षेत्रों में मौसम के प्रतिकूल प्रभाव ने इन दोनों वस्तुओं की कीमतों के साथ क्रूड पाम ऑयल की कीमतों में तेजी ला दी है.’
उन्होंने कहा, ‘कई राज्यों में स्वाद और सुगंध के कारण सरसों के तेल का व्यापक इस्तेमाल किया जाता है, जिससे अच्छी फसल के बावजूद भी इसकी मांग अधिक रहती है. यही नहीं कोविड-19 के बीच सरसों को औषधीय गुणों पर भी ध्यान दिया गया, जिसने इसकी कीमतों को और बढ़ा दिया.’
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