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Friday, 15 November, 2024
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विदेशी निवेशकों ने 2021-22 में भारतीय शेयर बाजारों से रिकॉर्ड 1.4 लाख करोड़ रुपये निकाले

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नयी दिल्ली, छह अप्रैल (भाषा) विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने वित्त वर्ष 2021-22 में रिकॉर्ड 1.4 लाख करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेचे। जबकि इससे पहले 2020-21 में उन्होंने 2.7 लाख करोड़ रुपये मूल्य के शेयर खरीदे थे। पूंजी निकासी का मुख्य कारण कोरोना वायरस मामलों में तीव्र वृद्धि, आर्थिक वृद्धि को लेकर जोखिम और रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर वैश्विक स्तर पर उथल-पुथल रहा।

डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, किसी एक वित्त वर्ष में घरेलू शेयर बाजार से इतनी राशि की निकासी सर्वाधिक है। इससे पहले, 2018-19 में 88 करोड़ रुपये, 2015-16 में 14,171 करोड़ रुपये और 2008-09 में 47,706 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर एफपीआई ने बेचे थे।

विशेषज्ञों का मानना है कि कच्चे तेल की कीमतों में तेजी और मुद्रास्फीति में वृद्धि को देखते हुए निकट भविष्य में एफपीआई की तरफ से निवेश प्रवाह में घट-बढ़ बना रह सकता है।

एक अप्रैल, 2021 से मार्च, 2022 (2021-22) के दौरान एफपीआई घरेलू शेयर बाजार में शुद्ध बिकवाल रहे और उन्होंने 1.4 लाख करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेचे। उन्होंने वित्त वर्ष के 12 महीनों में से नौ महीनों में निकासी की। वे अक्टूबर, 2021 से लगातार घरेलू बाजार में शेयर बेच रहे हैं।

मार्निंग स्टार इंडिया के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि कई कारणों से एफपीआई ने पिछले वित्त वर्ष में निकासी की। इसमें एक कारण अप्रैल-मई, 2021 के दौरान कोरोना वायरस के मामलों में तेज वृद्धि भी है।

उन्होंने कहा, ‘‘देश में कोरोना वायरस महामारी के अचानक और तेजी से बढ़ने को देखते हुए विदेशी निवेशक अचंभित हुए। पिछले साल मई में कोविड-19 मामलों की दैनिक संख्या चार लाख के आंकड़े को पार कर गयी थी। इसकी रोकथाम के लिये विभिन्न राज्यों में लगायी गयी पाबंदियों को देखते हुए आर्थिक पुनरुद्धार को लेकर चिंता बढ़ी। इससे विदेशी निवेशकों की धारणा पर प्रतिकूल असर पड़ा।’’

कुल मिलाकर, एफपीआई ने 2021-22 की शुरुआत बिकवाली से की और अप्रैल-मई के दौरान 12,613 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेचे। हालांकि, मई के मध्य से संक्रमण के मामले घटने तथा पाबंदियों में ढील के साथ स्थिति में सुधार आया।

हालांकि, जून में बेहतर स्थिति के बाद एफपीआई जुलाई में शुद्ध बिकवाल बन गये और उन्होंने 11,308 करोड़ रुपये की निकासी की। इसका कारण अमेरिकी फेडरल रिजर्व का नीतिगत दर को लेकर आक्रामक रुख था। इसके अलावा, शेयरों का मूल्यांकन बढ़ना, तेल कीमतों में तेजी और अमेरिकी डॉलर में मजबूती के कारण भी एफपीआई बिकवाल बने।

हालांकि, अगस्त और सितंबर में वृहत आर्थिक परिवेश में सुधार तथा सकारात्मक परिदृश्य के साथ एफपीआई ने शुद्ध रूप से लिवाली की। लेकिन यह गति बरकरार नहीं रही और उन्होंने वैश्विक और घरेलू मोर्चे पर अनिश्चितता के बीच अक्टूबर से मार्च, 2022 तक बिकवाली की।

अपसाइड एआई के सह-संस्थापक अतनु अग्रवाल ने कहा कि बिकवाली का मुख्य कारण ब्याज दर को लेकर बदलता माहौल और प्रोत्साहन उपायों को समाप्त करने का अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व का संकेत था।

उन्होंने कहा, ‘‘इसके अलावा कच्चे तेल के दाम में तेजी, डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर में गिरावट, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भी एफपीआई ने सुरक्षित निवेश को तरजीह दी और शेयर बाजार से पैसा निकाला…।’’

दूसरी तरफ, विदेशी निवेशकों ने बांड बाजार में शुद्ध रूप से 2021-22 में 1,628 करोड़ रुपये का निवेश किया। जबकि एक साल पहले 2020-21 में 50,443 करोड़ रुपये की निकासी की थी।

भाषा

रमण अजय

अजय

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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