नयी दिल्ली, 19 जनवरी (भाषा) ऑटो एलपीजी के प्रसार के लिए नोडल निकाय इंडियन ऑटो एलपीजी कोलिशन (आईएसी) ने इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सरकार की अलग से नीति पर कड़े सवाल उठाये है।
आईएसी ने कॉर्बन उत्सर्जन में कमी के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) पर केंद्रित ‘असंतुलित’ नीति पर सवाल उठाते हुए कहा है कि पर्यावरण अनुकूल होने के बावजूद सरकार एलपीजी की अनदेखी कर रही है, जबकि इस मामले में यह भी एक उपयोगी समाधान हो सकता है।
उसने कहा कि भारतीय सड़कों पर लगभग 30 करोड़ वाहनों का दौड़ना बहुत मुश्किल है। इसके लिए इलेक्ट्रिक वाहन समाधान नहीं है और एलपीजी वर्तमान स्थिति में बुनियादी ढांचे के निवेश के मामले में ईवी से बहुत आगे है।
आईएसी ने कहा कि लिथियम-आयन या समकक्ष बैटरी तकनीक के लिए देश का अभी आत्मनिर्भर होना बहुत दूर है। वही ऑटो एलपीजी नयी महंगा इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने की तुलना में अधिक किफायती है।
आईएसी ने एक बयान में कहा, ‘‘सरकार ने फेम दो योजना के दूसरे चरण के तहत चार्जिंग के बुनियादी ढांचे के विकास और स्थापना के लिए 1,000 करोड़ रुपये के एक और आवंटन की घोषणा की है।’’
निकाय ने कहा, ‘‘इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए घोषणाओं की झड़ी के बीच, यह सवाल उठता है कि यह विशेष ध्यान केवल इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए ही क्यों आरक्षित है। यह एक ऐसी परियोजना है, जो न केवल विशाल बुनियादी ढांचे और बजट लागत से भरी हुई है, बल्कि अभी भी जमीन पर वास्तविकता से बहुत दूर है।’’
संघ ने कहा कि वह कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने के लिए वाहन ईंधन नीति के सरकार के दीर्घकालिक लक्ष्य का स्वागत करता है। लेकिन यह पूरी तरह से चौंकाने वाली बात है कि सरकार ऑटो एलपीजी की तात्कालिक क्षमता की अनदेखी कर रही है।
आईएसी ने कहा, ‘‘देशभर में 4,500 ईवी चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने की सरकार की योजना बेहद अपर्याप्त है। 2026 तक सड़कों पर 20 लाख इलेक्ट्रिक वाहन रखने के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए कम से कम चार लाख चार्जिंग स्टेशनों की आवश्यकता है।’’
वही देश के 600 शहरों में एलपीजी के पहले से ही लगभग 1,500 स्टेशन हैं और वह भी सरकार के बिना किसी समर्थन के।
भाषा जतिन अजय
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