केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 5.9 फीसदी रखा है. राजस्व और व्यय पर पहली तिमाही के रुझान चालू वित्तीय वर्ष की शेष तिमाहियों में सरकारी वित्त (Government Finances) के संभावित ट्रैजेक्टरी के कुछ शुरुआती संकेत देते हैं.
जहां जून में समाप्त तिमाही में टैक्स कलेक्शन में धीमी वृद्धि देखी गई है, वहीं केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में 59 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि देखी गई है, जो एक्सपेंडीचर मिक्स में लगातार सुधार का संकेत देता है.
टैक्स कलेक्शन में कमी के कारण पहली तिमाही में राजकोषीय घाटा बढ़कर बजटीय लक्ष्य का 25.3 प्रतिशत हो गया, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में यह 21.2 प्रतिशत था. बेहतरीन गैर-कर राजस्व संग्रह (Non-Tax Revenue Collections), टैक्स कलेक्शन में धीमेपन के कारण पड़ने वाले दबाव को कुछ कम कर सकता है.
चालू वर्ष की पहली तिमाही में बेहतर कर राजस्व संग्रह और बेहतर पूंजीगत व्यय के साथ राज्य वित्त एक उत्साहजनक तस्वीर पेश करता है. वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियां और केंद्रीय कर संग्रह (Central Tax Collections) में संभावित धीमापन राज्य के वित्त को प्रभावित कर सकती है.
टैक्स कलेक्शन में धीमापन
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में केंद्र सरकार की कुल प्राप्तियां 5.99 लाख करोड़ रुपये रहीं, जो बजट अनुमान का 22.1 फीसदी है.
पिछले साल इस समय तक सरकार अपने बजट अनुमान का 26 फीसदी हासिल करने में सफल रही थी.
प्राप्तियों में धीमेपन का कारण केंद्र सरकार के सकल कर राजस्व में कमजोर वृद्धि है. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल कर राजस्व केवल 3 प्रतिशत बढ़ा. सकल कर राजस्व संग्रह का वार्षिक लक्ष्य 10 प्रतिशत रखा गया है, जो पिछले वित्तीय वर्ष में प्राप्त 12.7 प्रतिशत की वृद्धि से कम है.
चालू वर्ष के लिए 10 प्रतिशत का कंज़रवेटिव ग्रोथ टारगेट रखने के बावजूद, पहली तिमाही में सकल कर राजस्व संग्रह कम रहा है.
जबकि सकल आधार (Gross Basis) पर, कर राजस्व में 3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, केंद्र सरकार के शुद्ध कर राजस्व में पहली तिमाही में कमी दर्ज की गई. जून में सामान्य मासिक किश्त के अलावा अतिरिक्त किश्त के साथ केंद्रीय करों के त्वरित हस्तांतरण ने पहली तिमाही में शुद्ध कर राजस्व में साल-दर-साल कमी में योगदान दिया.
टैक्स रेवेन्यू कलेक्शन का विवरण एक मिली-जुली तस्वीर पेश करता है. पहली तिमाही में कॉर्पोरेशन टैक्स से संग्रह में 14 प्रतिशत की गिरावट आई. कॉर्पोरेट टैक्स से राजस्व में 2022-23 की पहली तिमाही में 30 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि देखी गई थी. एक्साइज़ ड्यूटी कलेक्शन में भी पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में पहली तिमाही में 15 प्रतिशत की गिरावट आई है.
कॉर्पोरेट टैक्स कलेक्शन में गिरावट जून तिमाही में सूचीबद्ध कंपनियों के कुल दोहरे अंकों के मुनाफे के विपरीत प्रतीत होती है. नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि सूचीबद्ध कंपनियों के कर-पूर्व लाभ (profit-before-tax) में जून तिमाही में 29 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि दर्ज की गई. हालांकि, मुनाफे में क्षेत्रीय भिन्नताएं हैं. तेल और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनियों ने कमोडिटी की कीमतों में गिरावट और कम मांग के कारण कम मुनाफे की सूचना दी है. इससे कॉरपोरेट टैक्स कलेक्शन में कमी को समझा जा सकता है.
इसके विपरीत, व्यक्तिगत आयकर, सीमा शुल्क और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से राजस्व में पिछले वर्ष की पहली तिमाही की तुलना में दोहरे अंक की वृद्धि दर्ज की गई. व्यक्तिगत आयकर और जीएसटी संग्रह में वृद्धि पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में कम रही.
हालांकि केवल पहली तिमाही के रुझानों के आधार पर टैक्स कलेक्शन की ट्रैजेक्टरी का आकलन करना जल्दबाजी होगी, लेकिन यदि टैक्स कलेक्शन में मंदी जारी रहती है, तो सरकार के लिए 5.9 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
अच्छी खबर गैर-कर राजस्व के मोर्चे पर है, जहां सरकार पहली तिमाही में बजट लक्ष्य का 51 प्रतिशत से अधिक हासिल करने में सफल रही.
गैर-कर राजस्व में वृद्धि आरबीआई के अपेक्षा से अधिक (higher-than-expected) 87,000 करोड़ रुपये के सरप्लस ट्रांसफर के कारण हुई है. आरबीआई ने इस साल अपना वार्षिक सरप्लस ट्रांसफर तीन गुना कर दिया है. इससे कमजोर विनिवेश प्राप्तियों (Disinvestment Receipts) के बीच राजकोषीय समेकन रोडमैप (Fiscal Consolidation Roadmap) से विचलन की चिंताओं को कम करने में मदद मिलेगी.
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राजस्व व्यय स्थिर रहा जबकि कैपेक्स में बढ़ोत्तरी हुई
सरकार के तिमाही राजकोषीय रुझानों की एक प्रमुख विशेषता व्यय की गुणवत्ता में दिखाई देने वाला सुधार है. पहली तिमाही में सरकार का पूंजीगत व्यय पिछले वर्ष की समान तिमाही की तुलना में 59 प्रतिशत बढ़ गया. पिछले साल की पहली तिमाही में भी सरकार के पूंजीगत व्यय में 57 प्रतिशत की जोरदार वृद्धि हुई थी. पहली तिमाही में बजटीय पूंजीगत व्यय का लगभग 28 प्रतिशत खर्च किया जा चुका है. यह पूंजीगत व्यय के लिए मजबूत बजटीय प्रोत्साहन के अनुरूप है. चालू वित्त वर्ष के बजट में पिछले वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान (आरई) की तुलना में 37 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है.
इसके विपरीत, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में राजस्व व्यय वृद्धि लगभग स्थिर रही. विशेष रूप से, सरकार ने चालू वर्ष के लिए राजस्व व्यय में 1.3 प्रतिशत की मामूली वृद्धि का लक्ष्य रखा है. यदि ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के लिए अतिरिक्त आवंटन की आवश्यकता होगी तो राजस्व घाटा लक्ष्य से अधिक होने का जोखिम हो सकता है.
चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में, 60,000 करोड़ रुपये की बजट की राशि के आधे से अधिक को पहले ही वितरित किया जा चुका है. कीमतों को कम करने के लिए सरकार के आपूर्ति पक्ष के हस्तक्षेप से सब्सिडी पर अधिक आवंटन हो सकता है. इससे राजस्व घाटे के लक्ष्य में मामूली कमी हो सकती है.
राज्य की वित्तीय स्थिति
केंद्र सरकार की तरह राज्यों के पूंजीगत व्यय में भी सुधार देखा गया है.
19 बड़े राज्यों के वित्त के विश्लेषण से पता चलता है कि चालू वित्त वर्ष में पूंजीगत व्यय के लिए आवंटित 7.8 लाख करोड़ रुपये में से, राज्यों ने पहली तिमाही में 1.04 लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जो बजट अनुमान का 13 प्रतिशत है.
19 राज्यों में से, 14 राज्यों ने पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में पहली तिमाही में पूरे वर्ष के पूंजीगत व्यय लक्ष्य का अधिक हिस्सा खर्च किया है. चार्ट में आंध्र प्रदेश सबसे ऊपर है, जिसने जून तक लगभग 41 प्रतिशत खर्च किया है, जबकि पिछले साल यह 7 प्रतिशत था.
तेलंगाना, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, केरल और मध्य प्रदेश ने भी बजट अनुमान के अनुपात में अधिक खर्च किया है. महाराष्ट्र, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ पूंजीगत व्यय पर कम खर्च करने वाले राज्य हैं.
साल-दर-साल आधार पर, राज्यों के पूंजीगत व्यय में 75 प्रतिशत की भारी उछाल देखी गई है, लेकिन राज्यों के बीच विकास में व्यापक असमानता है.
पहली तिमाही में 19 राज्यों का टैक्स रेवेन्यू कलेक्शन, बजटीय कर राजस्व (budgeted tax collection) का 21.2 प्रतिशत था. फिर, जबकि अधिकांश राज्यों ने पिछले वर्ष की समान तिमाही की तुलना में चालू वर्ष की पहली तिमाही में बेहतर प्रदर्शन किया है, कुछ स्पष्ट बदलाव भी हैं.
बिहार एक ऐसा राज्य है जो पहली तिमाही में अपने बजटीय कर संग्रह का केवल 4 प्रतिशत ही जुटा पाया है. जबकि अधिकांश राज्य पहली तिमाही में अपने बजटीय कर राजस्व का 20 प्रतिशत से अधिक हासिल करने में कामयाब रहे हैं, पर, अस्थिर वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण और कमजोर निर्यात राज्य के निर्यात से जुड़े सेक्टर पर और इसकी वजह से राजस्व पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं.
(राधिका पांडेय एसोसिएट प्रोफेसर हैं और रचना शर्मा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) में फेलो हैं.)
(व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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