नयी दिल्ली, आठ फरवरी (भाषा) भारतीय फुटवियर एवं चमड़ा विकास कार्यक्रम (आईएफएलडीपी) को वर्ष 2025-26 तक बढ़ाने के फैसले से घरेलू विनिर्माण, रोजगार सृजन एवं निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। चमड़ा निर्यात परिषद (सीएलई) ने मंगलवार को यह उम्मीद जताई।
उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय ने पिछले हफ्ते आईएफएलडीपी को 31 मार्च, 2026 तक बढ़ाने की घोषणा की थी। इसके लिए 1,700 करोड़ रुपये भी आवंटित किए गए हैं। इसके जरिये चमड़ा उत्पादों एवं फुटवियर (जूता-चप्पल) उद्योग का ढांचागत विकास करने का लक्ष्य है।
भारत इस समय दुनिया का दूसरा बड़ा फुटवियर उत्पादक और चमड़ा परिधानों का निर्यातक है।
चमड़ा निर्यात परिषद (सीएलई) के चेयरमैन संजय लीखा ने कहा कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य घरेलू चमड़ा बाजार एवं निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विश्वस्तरीय ढांचा तैयार करना है। इस कार्यक्रम में छह उप-योजनाएं समाहित हैं जिनमें भारतीय चमड़ा उत्पादों के ब्रांड का प्रोत्साहन और एकीकृत विकास भी शामिल है।
लीखा ने कहा कि आईएफएलडीपी की समयावधि बढ़ाने से चमड़ा उद्योग उत्पादन इकाइयों के आक्रामक आधुनिकीकरण एवं विस्तार की दिशा में आगे बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि उत्पादन और कारोबार बढ़ाने के लिए यह काम बेहद जरूरी है।
सीएलई के उपाध्यक्ष राजेंद्र के जालान ने कहा कि यह कार्यक्रम टिकाऊ चमड़ा प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी में अहम भूमिका निभाएगा। इसके अलावा पर्यावरण संबंधी नियमों के अनुपालन में भी इससे मदद मिलेगी।
भारतीय फुटवियर एवं चमड़ा उद्योग का आकार करीब 17 अरब डॉलर है जिसमें निर्यात 5.09 अरब डॉलर का है। यह क्षेत्र बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार देता है। एक अनुमान के अनुसार करीब 44 लाख लोग इस क्षेत्र में कार्यरत हैं।
भाषा
प्रेम रमण
रमण
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.