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Wednesday, 6 November, 2024
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कर कानून में अपवाद या छूट प्रावधान को उसकी मंशा के आधार पर ही समझा जाना चाहिए : न्यायालय

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नयी दिल्ली, 23 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि कर कानून में अपवाद और छूट के प्रावधान को उसकी भाषा और मंशा के अनुसार ही समझा जाना चाहिए और अदालत नीति में निर्धारित शर्तों और उसके संबंध में जारी अधिसूचनाओं की अनदेखी नहीं कर सकती है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि छूट अधिसूचना को विधायी मंशा के अनुसार अर्थ दिया जाना चाहिए और ऐसे वैधानिक प्रावधानों की व्याख्या ‘उसमें नियोजित शब्दों’ के परिप्रेक्ष्य में जानी चाहिए।

न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्न की पीठ ने सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (सीईएसटीएटी), की प्रधान पीठ द्वारा पारित फैसले से उत्पन्न अपीलों के एक बैच को खारिज कर दिया।

सीईएसटीएटी ने कहा था कि राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में स्थित अपीलकर्ता ‘कृषि उपज मंडी समिति’ 30 जून, 2012 तक की अवधि के लिए ‘अचल संपत्ति के किराये’ के तहत सेवा कर का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार थी।

अपने 18-पृष्ठ के फैसले में पीठ ने कहा कि शीर्ष न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार कर कानून में प्रावधान की सरल भाषा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यह भाषा अर्थ को परिभाषित करने में सक्षम होनी चाहिए।

पीठ ने कहा, ‘‘कर कानून में अपवाद और/या छूट के प्रावधान को उसमें उपयोग की गयी भाषा और मंशा से समझा जाना चाहिए और संबंधित नीति में निर्धारित शर्तों और उस संबंध में जारी छूट अधिसूचनाओं की अदालत अनदेखी नहीं कर सकती।’’

भाषा अजय अजय रमण

रमण

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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