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विदेशी बाजारों में तेजी के बावजूद ज्यादातर देशी तेल-तिलहनों में गिरावट

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नयी दिल्ली, 20 नवंबर (भाषा) बैंकों का ऋण साख-पत्र चलाते रहने की मजबूरी के कारण बंदरगाहों पर आयातित खाद्य तेल लागत से कम दाम पर बेचे जाने की वजह से देश के तेल-तिलहन बाजारों में सोमवार को सरसों तेल-तिलहन, सोयाबीन डीगम तेल को छोड़कर सोयाबीन तेल-तिलहन और बिनौला तेल के भाव गिरावट के साथ बंद हुए, जबकि सामान्य कारोबार के बीच कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन और सोयाबीन डीगम तेल पूर्वस्तर पर ही बने रहे।

कारोबारी सूत्रों ने कहा कि शिकॉगो और मलेशिया एक्सचेंज में तेजी है लेकिन इसके बावजूद आयातक बैंकों का अपना ऋण-साखपत्र चलाते रहने के लिए आयातित खाद्य तेलों को लागत से 2-3 रुपये किलो नीचे बेच रहे हैं। उनकी स्थिति पिछले कुछ माह से इतनी खराब है कि वे आयातित तेल का स्टॉक जमा रखकर हालत सुधरने का इंतजार नहीं कर सकते और आयातित तेल को बंदरगाहों पर ही लागत से 2-3 रुपये किलो नीचे दाम पर बेच रहे हैं। इस घाटे के सौदों को लंबा नहीं खींचा जा सकता और अगर यही घाटे का सौदा ज्यादा समय चलता रहा तो आगे आयात प्रभावित होगा जिससे जाड़े में सॉफ्ट ऑयल (नरम तेल) की कमी बढ़ सकती है।

नवंबर-दिसंबर में पहले से ही आयात घटने के आसार नजर आ रहे हैं। ऐसे में पूरी स्थिति अधिक उलझने का खतरा है।

सूत्रों ने कहा कि सरकार ने अभी हालात को नहीं संभाला तो आगे जाकर स्थिति जटिल हो जायेगी। सरसों, मूंगफली, सूरजमुखी, सोयाबीन, बिनौला आदि का उत्पादन बढ़ाने की ओर ठोस प्रयास करने होंगे क्योंकि इससे देश के बढ़ते दुग्ध उद्योग के लिए अहम मवेशियों के लिए खल और मुर्गीदाने के लिए डी-आयल्ड केक (डीओसी) की आसानी से प्राप्ति होगी।

सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि कपास की खेती का रकबा कम हुआ है। ऐसी चर्चा है कि कपास का उत्पादन कम होने की स्थिति में सरकार रुई आयात कर सकती है पर हमें यह भी देखना होगा कि कपास से बिनौला अलग करने वाली देश की जिनिंग मिलें और पेराई मिलों का क्या होगा। यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि हमें सबसे अधिक खल की प्राप्ति बिनौले से ही होती है। सरकार को समग्र स्थिति और सबके हितों को ध्यान में रखकर एक तेल-तिलहन नीति बनानी होगी और यह स्पष्ट संकल्प लेना होगा कि देश तिलहन उत्पादन बढ़ाने की राह पर जायेगा या आयात पर निर्भर होने का फैसला करेगा। अगर सार्वजनिक हित में तिलहन उत्पादन बढ़ाने का रास्ता अख्तियार किया जाता है तो देशी तेल- तिलहनों का बाजार भी विकसित करने की स्पष्ट नीति बनानी होगी, ताकि किसानों की तिलहन उपज आसानी से बाजार में खपे और उन्हें फसल के अच्छे दाम मिलें। खाद्य तेलों की महंगाई बढ़ाने में यदि बिचौलियों की समस्या आ रही हो तो खाद्य तेलों के अंधाधुंध आयात का रास्ता चुनने के बजाय उसे राशन की दुकानों से वितरित करने का रास्ता भी अपनाया जा सकता है।

सूत्रों ने कहा कि सरकार को इस ओर ध्यान देना होगा कि देश की मंडियों में सरसों, सूरजमुखी और मूंगफली न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे बिक रहे हैं जिससे किसान परेशान हैं। सरकार की ओर से दीवाली के बाद मूंगफली खरीद किये जाने का भी किसानों को इंतजार है।

सोमवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:

सरसों तिलहन – 5,725-5,775 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली – 6,650-6,725 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 15,500 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली रिफाइंड तेल 2,305-2,590 रुपये प्रति टिन।

सरसों तेल दादरी- 10,700 रुपये प्रति क्विंटल।

सरसों पक्की घानी- 1,815 -1,910 रुपये प्रति टिन।

सरसों कच्ची घानी- 1,815 -1,925 रुपये प्रति टिन।

तिल तेल मिल डिलिवरी – 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 10,500 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 10,300 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 8,900 रुपये प्रति क्विंटल।

सीपीओ एक्स-कांडला- 8,475 रुपये प्रति क्विंटल।

बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 9,050 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 9,300 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन एक्स- कांडला- 8,500 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।

सोयाबीन दाना – 5,350-5,400 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन लूज- 5,150-5,200 रुपये प्रति क्विंटल।

मक्का खल (सरिस्का)- 4,050 रुपये प्रति क्विंटल।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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