नयी दिल्ली, दो मार्च (भाषा) सरकार के द्वारा बीते सप्ताह आयातित खाद्य तेलों के आयात शुल्क मूल्य में वृद्धि किये जाने के बावजूद गत सप्ताहांत में शिकॉगो एक्सचेंज में भारी गिरावट रहने के कारण करोबारी दवाब बढ़ने से अधिकांश तेल-तिलहनों के दाम गिरावट दर्शाते बंद हुए।
उपलब्धता घटने और सस्ता होने की वजह से मांग बढ़ने के कारण अकेला बिनौला तेल सुधार के साथ बंद हुआ।
बाजार सूत्रों ने कहा कि बीते सप्ताह विदेशों में पाम, सूरजमुखी और सोयाबीन तेल के दाम टूटे हैं और हमारे देश में इस गिरावट का असर व्यापक तेल-तिलहनों पर भी देखा गया जिससे उनके दाम में गिरावट आई। चूंकि देश में फरवरी महीने में आयात कम हुआ है, इसलिए स्टॉक की कमी है, इस वजह से सोयाबीन तेल पर विदेशी बाजार में आई गिरावट का उतना असर नहीं आया।
सूत्रों ने कहा कि सरकार को तेल-तिलहन बाजार की समग्र स्थिति पर निरंतर ध्यान कायम रखना होगा। किसी भी नीति, फैसले की वजह से अगर बाजार धारणा खराब होती है तो उसका असर लंबे समय तक रहता है। इस लिए हर कदम को पूरी समग्रता को देखकर उठाना होगा क्योंकि देश तेल-तिलहन मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने की ओर बढ़ना चाह रहा है। सरकार की ओर से तिलहनों की थोड़ी बहुत खरीद कर लेने या न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित कर देने भर से काम नहीं पूरा होगा बल्कि बाजार पर गहरी नजर रखनी होगी। तमाम खाद्य तेल संगठनों को भी इस बात के लिए जवाबदेही स्वीकार करनी होगी कि उन्होंने जो भी सुझाव दिये हैं, उससे क्या देश आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ पाया है? या निरंतर आयात पर ही निर्भर होता चला गया है? इस जिम्मेदारी को आखिर कौन स्वीकार करेगा?
सूत्रों ने कहा कि तमाम खाद्य तेल विशेषज्ञों, समीक्षकों को भी विचार करना चाहिये कि दक्षिण भारत में एक समय पर्याप्त मात्रा में मूंगफली उत्पादन होता था आज आंध्र प्रदेश से मूंगफली लगभग लुप्त क्यों हो चली है? आखिर यहीं किसान धान खेती की ओर क्यों रुख कर बैठे जिसका स्टॉक सिर्फ गोदामों की शोभा बढ़ा रहा है। सूरजमुखी उत्पादन में 90 के दशक की आत्मनिर्भरता कैसे खत्म हो गयी और इस मामले में लगभग पूरी तरह से आयात पर कैसे निर्भर हो चले हैं? आखिर चूक कहां हुई और कैसे उसे दुरुस्त किया जाये।
उन्होंने कहा कि सरकार के किसी नीति या फैसले का देश के तेल-तिलहन कारोबार पर उल्टा असर होने की स्थिति में उस फैसले को तत्काल बदला जाना चाहिये। इस बार किसानों ने मूंगफली, सोयाबीन के मामले में जो झटका खाया है उससे नहीं लगता कि वे अगली बार इन फसलों की बुवाई में अधिक दिलचस्पी लेंगे।
बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 50 रुपये की गिरावट के साथ 6,250-6,350 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल का थोक भाव 200 रुपये की गिरावट के साथ 13,600 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल का भाव क्रमश: 15-15 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 2,350-2,450 रुपये और 2,350-2,475 रुपये टिन (15 किलो) पर आ गया।
समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और सोयाबीन लूज का थोक भाव क्रमश: 80-130 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 4,200-4,250 रुपये और 3,900-3,950 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। इसी तरह, सोयाबीन दिल्ली एवं सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम के दाम क्रमश: 200 रुपये, 200 रुपये और 150 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 14,150 रुपये, 13,750 रुपये और 10,100 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए।
समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तिलहन का भाव 50 रुपये की गिरावट के साथ 5,600-5,925 रुपये क्विंटल पर बंद हुआ। वहीं, मूंगफली तेल गुजरात और मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल का भाव क्रमश: 100 रुपये और 10 रुपये की गिरावट के साथ 14,300 रुपये और 2,200-2,500 रुपये प्रति टिन पर बंद हुआ।
कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का दाम 250 रुपये की गिरावट के साथ 3,150 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पामोलीन दिल्ली का भाव 250 रुपये की गिरावट के साथ 14,700 रुपये प्रति क्विंटल तथा पामोलीन एक्स कांडला तेल का भाव 200 रुपये की गिरावट के साथ 13,650 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
गिरावट के आम रुख के उलट, सबसे सस्ता होने के कारण मांग के चलते समीक्षाधीन सप्ताह में बिनौला तेल 50 रुपये की तेजी के साथ 13,450 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
भाषा राजेश
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