नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में लाखों लोग गरीबी के गर्त में चले गए, लेकिन शुरुआती कड़े लॉकडाउन के बाद की अवधि में, देश आय की असमानताओं में भी कमी देखी गई- ये खुलासा पिछले महीने प्रकाशित एक वर्किंग पेपर में किया गया है.
‘कोविड के दौरान भारत में असमानता घटी’ शीर्षक से इस पेपर में जिसे अर्थशास्त्र पर शोध और उसका प्रसार करने वाली, अमेरिका में स्थित एक गैर-मुनाफा संस्था नेशनल ब्यूरो ऑफ इकनॉमिक रिसर्च (एनबीएईआर) ने प्रकाशित किया है, कहा गया है कि भारत में महामारी का असमानता घटने से दो मायनों में संबंध था. पहला तो ये था कि अधिक आय समूह वाले लोगों की आमदनियों में गरीबों के मुकाबले ज्यादा गिरावट आई और दूसरा ये कि उपभोग की असमानता में भी कमी आई हालांकि वो कम ही थी.
इस स्टडी की अगुवाई, जिसकी सहकर्मी समीक्षा नहीं हुई है- तीन स्कॉलर्स ने की है- न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के स्टर्न स्कूल ऑफ बिजनेस के अर्पित गुप्ता और शिकागो यूनिवर्सिटी के लॉ स्कूल से अनूप मलानी और बार्तोज वोडा.
शोधकर्त्ताओं के डेटा का मुख्य स्रोत, कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे (सीपीएचएस) था. जिसे सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी ने किया था, जिसमें 1.97 लाख परिवारों के नमूने लिए गए जिनकी वित्तीय स्थिति पर जनवरी 2015 से जुलाई 2021 तक की मासिक जानकारी उपलब्ध थी.
स्टडी का सबसे उल्लेखनीय निष्कर्ष- कि लॉकडाउन उठाए जाने के बाद के महीनों में आमदनी की असमानताओं में कमी आई है- उस सब के विपरीत नजर आता है, जो भारत में आय की विषमताओं के बारे में हाल की स्टडीज में कहा गया है.
विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार, शीर्ष 10 प्रतिशत भारतीयों की औसत आय, निचले 50 प्रतिशत से करीब 96 गुना अधिक थी. इसी तरह, ऑक्सफैम इंटरनेशनल का दावा था कि 2021 में देश की 77 प्रतिशत दौलत भारत के शीर्ष 1 प्रतिशत के पास थी.
लेकिन एनबीईआर पेपर में इसके निष्कर्षों के साथ-साथ ये भी कहा गया था कि गिनी गुणांक – जिससे किसी आबादी में मौजूद विषमता की मात्रा को सांख्यकीय रूप से नापा जाता है- ‘महामारी के दौरान असमानता’, खासकर ‘जुलाई 2020 तक महामारी-पूर्व के असमानता स्तरों तक लौटने की’ कोई बहुत अच्छी तस्वीर पेश नहीं करते.
दूसरे, असमानता में ये गिरावट दरअसल 2018 में शुरू हुई थी, जिस प्रवृत्ति को लॉकडाउन ने ‘बाधित’ किया था, लेकिन जो बाद में फिर शुरू हो गई.
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अंतराल कैसे कम हुआ?
आय की असमानता बुनियादी रूप से अमीर और गरीब की आमदनियों के बीच का औसत अंतराल होता है. इस असमानता में गिरावट तब आती है, जब या तो अमीर की आय घट जाए या गरीब की आय बढ़ जाए.
स्टडी में पता चला है कि भारत में आय की असमानता में कमी को महामारी के दौरान ऊंची आमदनी वाले घरों की कमाई से जोड़ा जा सकता है.
लेखकों ने इस बात को माना, कि महामारी के दौरान ‘गरीबी में भारी इजाफा’ हुआ था लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि ‘गरीबी में वृद्धि, असमानता के लिए पर्याप्त आंकड़ा नहीं है’.
स्टडी के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में आय की गरीबी जो महामारी से पहले 40 प्रतिशत थी, लॉकडाउंस के दौरान उछलकर लगभग 70 प्रतिशत हो गई. इस मामले में गरीबी को विश्व बैंक के 1.9 डॉलर प्रतिदिन (या कम) के मानदंड से परिभाषित किया गया. रिसर्चर्स ने कहा कि लॉकडाउन के बाद गरीबी में कमी आई और आमदनी तथा उपभोग बढ़ गए, ‘लेकिन ये बढ़कर महामारी-पूर्व के स्तरों तक नहीं पहुंचे’.
लेकिन, गरीबी बढ़ने के बावजूद, शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में, आय की विषमता में कमी आई, काफी हद तक इसलिए कि अमीर परिवारों की आमदनियां घट गईं.
स्टडी मे कहा गया, ‘ग्रामीण क्षेत्रों में निचली चौथाई के लोगों की आय की अपेक्षा, शीर्ष चौथाई परिवारों के लोगों की सापेक्ष आय लॉकडाउन से पहले घटी, उसके दौरान और कम हुई, और उसके बाद भी कम ही बनी रही. शहरी इलाक़ों में भी यही पैटर्न नज़र आता है, सिवाय इसके कि लॉकडाउन के दौरान इन दोनों चौथाइयों में आई गिरावट समान थी’.
इसी तरह, स्टडी से पता चलता है कि उपभोग की असमानता में भी लॉकडाउन की अवधि के दौरान गिरावट देखी गई, लेकिन इसकी रफ्तार आय की असमानता जितनी तेज़ नहीं थी.
महामारी से पहले, आमदनी में 10 प्रतिशत कमी के परिणामस्वरूप, उपभोग खर्च में 0.98 प्रतिशत गिरावट आती थी, जिसका अर्थ है कि आय में हर 100 रुपए की गिरावट पर कोई व्यक्ति अपने उपभोग में 9.8 रुपए की कमी कर देता था. महामारी के दौरान लेखकों ने पाया कि आय में आई 10 प्रतिशत की गिरावट से, उपभोग में 0.869 प्रतिशत की कमी आई, या हर 100 रुपए की कमी के साथ एक व्यक्ति अपना उपभोग 8.6 रुपए कम कर रहा था- जो कि बहुत छोटा सा अंतर था.
लेखक इसका कारण ‘उपभोग के सपाट करने’ को बताते हैं, जिससे तात्पर्य ये होता है कि उपभोग का आदतों को स्थिर रखते हुए, ख़र्च और बचत की आदतों के बीच समायोजन किया जाए.
अमीर लोगों की आय क्यों कम हुई?
स्टडी के अनुसार, भारत में अमीरों की आमदनी का स्रोत सेवाओं और पूंजीगत आय (बुनियादी रूप से लाभांश और ब्याज जैसे धन से कमाया गया धन) में ‘अनुपातहीन’ हिस्सेदारी होता है, जो दोनों ‘महामारी के दौरान अनुपातहीन ढंग से प्रभावित हुए थे’. अमीरों के विपरीत, अपेक्षाकृत ग़रीब परिवारों की कमाई में पूंजिगत आय की हिस्सेदारी ज़्यादा नहीं होती.
लेखकों ने ये भी कहा कि श्रम की मांग भी इसके पीछे एक कारक थी. स्टडी में कहा गया, ‘शीर्ष चौथाई की आय का एक बड़ा हिस्सा सेवा क्षेत्र से आता है…और महामारी के दौरान इस क्षेत्र में उपभोक्ता खर्च में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई’.
स्टडी में आगे कहा गया, ‘आय की असमानता में गिरावट काफी हद तक दबे हुए घंटेवार मेहनताने और कुछ हद तक शीर्ष चौथाई में रोज़गार दरों में कमी से आई है’.
स्टडी में कहा गया, ‘समाज के ग़रीब वर्गों में रोजगार दर में ज़्यादा गिरावट आई, लेकिन वो तेजी से उबर भी गए. बल्कि, स्टडी में कहा गया कि लॉकडाउन के बाद रोज़गार दर, सभी चौथाइयों के लिए तकरीबन पूरी तरह उबर गई- सिवाय शीर्ष चौथाई के’.
उसमें आगे कहा गया कि निचली चौथाइयों का प्रदर्शन ‘विशेष रूप से उल्लेखनीय’ था, चूंकि अमेरिका के विपरीत, भारत में आय हस्तांतरण के रूप में वित्तीय प्रोत्साहन बहुत कम थे.
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