नयी दिल्ली, 15 अप्रैल (भाषा) वाणिज्य मंत्रालय ने अनुपालन जरूरतें कम करने और कारोबारी सुगमता के लिए निर्यात संवर्द्धन पूंजी वस्तु (ईपीसीजी) योजना के विभिन्न मानकों में ढील देने का फैसला किया है।
इस योजना के तहत पूंजीगत उत्पादों के शुल्क-मुक्त आयात की मंजूरी दी जाती है। ईपीसीजी योजना में एक निर्यातक को छह साल के भीतर वास्तविक आयात शुल्क पर बचाई गई राशि के छह गुना मूल्य का तैयार उत्पाद निर्यात करना होता है।
इस योजना का मकसद गुणवत्तापूर्ण उत्पादों एवं सेवाएं तैयार करने के लिए पूंजीगत उत्पादों का आयात सुगम बनाना है। इसकी मदद से भारत की विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धा क्षमता बढ़ाने का भी इरादा है।
विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने एक सार्वजनिक सूचना में कहा कि कारोबारी सुगमता बढ़ाने और अनुपालन बोझ कम करने के लिए ईपीसीजी योजना की प्रक्रियागत पुस्तिका के पांचवें अध्याय में बदलाव किए गए हैं। ये बदलाव विदेश व्यापार नीति (2015-20) के तहत जारी होने वाले ईपीसीजी प्राधिकारों से संबंधित हैं।
संशोधित नियमों के तहत अब निर्यातक 30 अप्रैल के बजाय हर साल 30 जून तक अपनी निर्यात बाध्यताओं के बारे में जानकारी दे सकते हैं। लेकिन इसमें विलंब होने पर उन्हें 5,000 रुपये का जुर्माना देना होगा।
निर्यात दायित्व में विस्तार का अनुरोध पूर्णता अवधि खत्म होने के छह महीने पहले किया जाना चाहिए जबकि अभी तक इसके लिए 90 दिनों का प्रावधान था। हालांकि छह महीने के बाद भी छह साल बीतने के पहले आवेदन किए जा सकते हैं लेकिन उसके लिए 10,000 रुपये का विलंब शुल्क भरना होगा।
इसके अलावा ईपीसीजी के तहत नियमों में किसी चूक की स्थिति में पावती के जरिये सीमा शुल्क के भुगतान की सुविधा खत्म कर दी गई है।
भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (फियो) के महानिदेशक अजय सहाय ने इन बदलावों का स्वागत करते हुए कहा कि नियमों के अनुपालन बोझ में कमी लाना और कारोबारी सुगमता बढ़ाना इसका मकसद है।
भाषा
प्रेम रमण
रमण
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.