मुंबई, आठ अप्रैल (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने नकदी प्रबंधन को महामारी-पूर्व के स्तर पर ले जाने की दिशा में शुक्रवार को कदम उठाते हुए वित्तीय प्रणाली में मौजूद अतिरिक्त तरलता को ‘सोखने’ के लिए स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) लागू करने और तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) को 0.50 प्रतिशत पर लाने की घोषणा की।
चालू वित्त वर्ष की पहली मौद्रिक समीक्षा के बाद आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इन कदमों का ऐलान करते हुए कहा कि एसडीएफ को रेपो दर से 0.25 प्रतिशत कम यानी 3.75 प्रतिशत पर रखा जाएगा जो सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) से 0.50 प्रतिशत कम होगा। एमएसएफ बैंकों को जरूरत पड़ने पर कोष के मामले में मदद करता है।
एसडीएफ की शुरुआत आरबीआई अधिनियम में वर्ष 2018 में किए गए संशोधन से हुई थी। यह किसी भी तरह के दुष्प्रभाव के बगैर व्यवस्था में मौजूद तरलता को दूर करने का एक साधन है।
दास ने कहा कि एसडीएफ आरबीआई पर बाध्यकारी गतिरोधों को हटाकर मौद्रिक नीति के परिचालन प्रारूप को सशक्त करता है। उन्होंने कहा कि यह वित्तीय स्थिरता का भी एक उपकरण है।
दास ने कहा, ‘‘एसडीएफ एलएएफ कॉरिडोर की मंजिल के तौर पर निर्धारित रिवर्स रेपो दर (एफआरआरआर) की जगह लेगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘एलएएफ कॉरिडोर नीतिगत रेपो दर के इर्गगिर्द होगा जिसमें तत्काल प्रभाव से एमएसएफ दर ऊपरी स्तर होगी जबकि एसडीएफ निचला स्तर होगा।’’
उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक के विवेकाधिकार से तय होने वाले रेपो एवं रिवर्स रेपो, ओएमओ और सीआरआर के उलट एसडीएफ एवं एमएसएफ बैंकों के विवेकाधिकार पर होगा। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एफआरआरआर 3.35 प्रतिशत पर बना रहेगा।
गवर्नर ने कहा कि हालात सामान्य होने के साथ केंद्रीय बैंक ने नकदी की स्थिति में नए सिरे से संतुलन साधने के लिए कदम उठाए हैं। इसके साथ ही रिजर्व बैंक ने ध्यान रखा कि ये कदम चुस्त-दुरुस्त होने के साथ सही समय पर भी उठाए गए हों।
दास ने कहा कि पिछले दो वर्षों में रिजर्व बैंक ने 17.2 लाख करोड़ रुपये की तरलता सुविधाएं मुहैया कराईं जिसमें से 11.9 लाख करोड़ रुपये का इ्स्तेमाल किया गया। इस तरलता राशि में से पांच लाख करोड़ रुपये या तो लौटाए जा चुके हैं या वापस लिए जा चुके हैं लेकिन महामारी के दौरान उठाए गए कदमों से व्यवस्था में अब भी 8.5 लाख करोड़ रुपये का तरलता आधिक्य बना हुआ है।
उन्होंने कहा, ‘‘आरबीआई इस तरलता को क्रमिक रूप से कुछ साल में वापस ले लेगा जिसकी शुरुआत इसी साल से होगी।’’ इसके पीछे रिजर्व बैंक का मकसद यह है कि व्यवस्था में मौद्रिक नीति के मौजूदा रुख के अनुरूप तरलता अधिशेष का आकार बहाल हो जाए।
इसके साथ ही दास ने कहा कि बैंकों को इस वित्त वर्ष में अपने निवेश पोर्टफोलियो के बेहतर प्रबंधन के लिए एसएसआर योग्य प्रतिभूतियों के समावेश की सीमा बढ़ाकर 23 प्रतिशत करने का फैसला किया गया है।
भाषा
प्रेम अजय
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