नई दिल्ली: भारतीय रसोई में इस्तेमाल की जाने वाली सबसे जरूरी सब्जी ‘प्याज’ की कीमतें एक बार फिर आसमान छूने वाली हैं. हाल ही में आई क्रिसिल की एक रिसर्च के मुताबिक सितंबर-नवंबर के महीने में प्याज के दाम बढ़ जाएंगे. इस साल होने वाले अनियमित मानसून और खराब मौसम इसकी कीमत बढ़ने के पीछे की वजहें हैं. अनियमित मानसून के कारण खरीफ फसल प्रभावित हुई जिसके कारण और सितंबर और नवंबर के महीने में प्याज सप्लाई पर असर पड़ेगा. इसके अलावा त्योहार के सीजन को देखते हुए बाजार में प्याज की मांग भी बढ़ जाएगी लेकिन सप्लाई कम होने के कारण इसकी कीमतों में उछाल देखने को मिलेगा.
वास्तविकता ये है कि इस साल मानसून अपने समय से पहले 3 जून को ही आ गया. इस बात से किसान खुश थे क्योंकि उन्हें लगा कि अब खरीफ फसल की अच्छी शुरुआत होगी. इसलिए किसानों ने जल्दी खराब हो जाने वाले टमाटर की जगह प्याज और मिर्च को चुना. हालांकि बाद में आई रिपोर्ट से पता चला कि मानसून ब्रेक लग गया है. साल के उस समय में औसत 2 प्रतिशत बारिश दर्ज की गई थी, लेकिन अगस्त के आते-आते बारिश 9 प्रतिशत तक कम हो गई. अगस्त का महीना कृषि के लिहाज से बेहद जरूरी होता है, यही वह समय होता है जब किसान खरीफ फसल की तैयारियों में लगते है.
आमतौर पर प्याज की फसल जून-जुलाई में बोई जाती है और अक्टूबर नवंबर तक तैयार हो जाती है. सितंबर से नवंबर के बीच का समय प्याज की फसल को लेकर बहुत तनाव वाला होता है और इसी दौरान इसकी कीमतों में आग लगती है. तब तक रबी फसल में पैदा हुई प्याज की फसल लगभग खत्म होने को आती है और प्याज की नई फसल बाजार में बिकने के लिए तैयार होती है. लेकिन मानसून की अनियमितता के कारण इस साल यह संभव होता नजर नहीं आ रहा है.
खरीफ फसल में पैदा की गई प्याज की फसल अधिक नमी वाले माल के रूप में बनकर तैयार होती है और उसका जीवन भी कम होता है यानी वह जल्दी सड़ जाती है. लेकिन सितंबर से नवंबर के बीच, त्योहारों के मौसम में बढ़ती मांग के दौरान यह सप्लाई की चेन को बनाए रखने में काफी मददगार होती है.
इस साल भंडार में रबी की फसल में पैदा हुई प्याज भी ताउते चक्रवात की वजह से प्रभावित हो गई. महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में जहां प्याज की खेती ज्यादा होती है, यहां ताउते का असर देखने को मिला जिसके कारण प्याज की फसल प्रभावित हुई. इसी के कारण अब प्याज की सप्लाई पर असर पड़ेगा और कीमतों में उछाल देखने को मिलेगा.
पिछले दो साल से इस समय में प्याज की कीमतें आसमान छूती आ रही हैं. साल 2019 और 2020 में खराब मौसम, चक्रवात और भारी बारिश से बर्बाद हुई फसल के बाद प्याज की कीमतें 100 रुपये किलो तक पहुंच गई थीं. कीमत की बात करें तो आखिरी बार साल 2018 में प्याज की कीमतें सामान्य थीं क्योंकि उस साल प्याज की फसल ठीक हुई थी.
क्रिसिल की रिपोर्ट कहती है कि साल 2018 के मुकाबले पिछले साल प्याज की कीमतें लगभग दोगुनी इसलिए हो गई थीं क्योंकि आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों को अनियमित मानसून और खराब मौसम से जूझना पड़ा था.
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महाराष्ट्र में कम वर्षा
क्रिसिल की रिपोर्ट में कहा गया है कि रोपाई की अवधि के दौरान प्याज की फसलों के लिए वर्षा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह रोपाई को मिट्टी में मजबूती से जड़ने देती है और अच्छे बल्ब विकास को सुनिश्चित करती है. हालांकि, इस साल के उतार-चढ़ाव वाले मानसून ने महाराष्ट्र में फसल की रोपाई में चुनौतियों का सामना किया, जो देश में उत्पादित कुल खरीफ प्याज की फसल का 35 प्रतिशत है.
नासिक, जो महाराष्ट्र में उत्पादित खरीफ प्याज का एक तिहाई से अधिक योगदान देता है, अगस्त के महत्वपूर्ण रोपाई महीने के अंत तक 33 प्रतिशत की वर्षा की कमी का सामना करना पड़ा. पुणे, जो 13 प्रतिशत योगदान देता है, में 30 अगस्त तक 65 प्रतिशत की वर्षा की कमी देखी गई.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अच्छे रिटर्न की उम्मीद में नर्सरी स्थापित करने वाले कई किसान अनिश्चित मानसून के कारण रोपाई करने में असमर्थ थे. इससे प्रक्रियाओं में देरी होने की संभावना है और इसके परिणामस्वरूप प्याज की फसल देर से आ सकती है, जिससे आपूर्ति-मांग के अंतर को और बढ़ा सकता है.
यह भी कहा गया है कि अगर सितंबर और अक्टूबर में महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे प्रमुख खरीफ प्याज उत्पादक राज्यों में बेमौसम बारिश होती है, तो फसल की क्षति ‘ऊंची कीमत और कम आपूर्ति के साथ और अधिक आंसू ला सकती है.’
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